इस लेख से जानेंगे अधिगम का अर्थ और प्रकार (Types of Learning) में कैसे बालको में सीखने की प्रकिया का विकास होता है करके सीखने से लेकर समूह अभिगम तक विस्तार से अधिगम के विषय में जानेंगे। अधिगम (सीखने) की अनेक प्रभावशाली विधियाँ हैं। इन्हीं के आधार पर सीखने के मुख्य प्रकार इस प्रकार हैं-
अधिगम का अर्थ ( Meaning of Learning)
अधिगम के प्रकार (Types of Learning)
- करके सीखना ।
- अनुकरण के द्वारा सीखना ।
- निरीक्षण करके सीखना ।
- परीक्षण करके सीखना ।
- सूझ से सीखना ।
- प्रयत्न एवं त्रुटि द्वारा सीखना ।
- सामूहिक विधि ।
- प्रोजेक्ट विधि ( योजना पद्धति) ।
- समूह अधिगम ।
अधिगम के प्रकार (Types of Learning) की व्याख्या।
(1) करके सीखना – बालक जिस कार्य को स्वयं करता है उसे वह अतिशीघ्र - सीख जाता है । स्वयं करने में बालक की रुचि तथा उत्सुकता रहती है और लक्ष्य भी रहता है। जिस कार्य को बालक स्वयं करता है उससे अधिगम शीघ्र प्राप्त होता है।
(2) अनुकरण के द्वारा सीखना — अनुकरण (Imitation) से आशय किसी व्यक्ति के द्वारा किये गये कार्य को फिर से करना है। व्यक्ति सभी व्यक्तियों के कार्य का अनुकरण नहीं करता है। वह केवल अपने से अधिक योग्य व्यक्तियों का ही अनुकरण करता है । बालक प्रायः अनुकरण से ही सीखते हैं। अनुकरण दो प्रकार का होता है— (i) अनजाने में, (ii) जानबूझ कर ।
बालक अनुकरण करने के लिए प्रयास करते हैं। उनके द्वारा अनुकरण किये जाने का उद्देश्य होता है । वे जानते हैं कि अनुकरण से वे कुछ सीख रहे हैं।
(3) निरीक्षण करके सीखना - निरीक्षण (Observation) वास्तव में प्रत्यक्षीकरण ही है। उसमें अवधान भी सम्मिलित कर लिया जाता है। निरीक्षण से हमारा आशय किस केन्द्र-बिन्दु पर अवधान केन्द्रित करना है। इसी कारण कहा जाता है कि बालक की शिक्षा में मूर्त वस्तुओं का प्रयोग किया जाना चाहिए। अमूर्त वस्तुओं पर बालक अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकता। छात्र जिस वस्तु का निरीक्षण करते हैं, उसके विषय में वे शीघ्र सीख जाते हैं ।
(4) परीक्षण करके सीखना - अधिगम का अर्थ और प्रकार (Types of Learning) में नये तथ्यों की खोज करना वास्तव में सीखना है। छात्र परीक्षण (Experiment) द्वारा किसी नवीन बात की खोज कर सकता है। परीक्षण के पश्चात् ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है। इस प्रकार बालक जिन तथ्यों को सीखता है उसकी जान के विभिन्न अंग बन जाते हैं के आधार पर भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु यह सीखना उतना महत्त्वपूर्ण नहीं होता। स्वयं परीक्षण करके सोखना अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
(5) सूझ से सीखना - निरीक्षण घटनाओं के विषय में सही विचार प्राप्त करने का साधन है। 'सूझ' (Insight) निरीक्षण की अन्तिम क्रिया समझी जाती है। निरीक्षण में किसी वस्तु पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। इस क्रिया से किसी वस्तु की सही और पूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती है परन्तु सूझ में व्यक्ति किसी वस्तु से अपने मस्तिष्क का एकीकरण करता है अत: सूझ को एक मानसिक संगठन कहा जा सकता है। सूझ में व्यक्ति के सामने समस्या बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। किसी समस्या होने पर हल इसी सूझ पर निर्भर होता है।
सभी सीखने की क्रियाओं में सूझ की आवश्यकता पड़ती है। जब बालक सूझ के द्वारा सीखता है तो उसको दो क्रियाएँ करनी पड़ती हैं। ये क्रियाएँ निम्न प्रकार हैं-
(i) सामान्यीकरण (Generalisation) - में व्यक्ति किसी निष्कर्ष पर पहुँच जाता है । वह उसके विषय में एक सामान्य नियम बना लेता है। फिर इसके फलस्वरूप व्यक्ति नई समस्या आने पर अपने पुराने अनुभवों का लाभ उठाता है। इस प्रकार वह किसी समस्या का समाधान करने में सफल होता है।
(ii) विभेदीकरण (Differentiation) - में व्यक्ति अपने पुराने अनुभवों का लाभ उठाता है वह इस बात का चयन करता है कि पुराने अनुभवों में से समस्या के समाधान के लिए उसे किस अनुभव को प्रयोग में लाना चाहिए। इस चयन के पश्चात् ही वह अपनी सूझ का प्रयोग करता है और सीखने का प्रयोग करता है।
(6) प्रयत्न एवं त्रुटि द्वारा सीखना- अधिगम का अर्थ और प्रकार (Types of Learning) में व्यक्ति जब किसी कार्य को सीखने का प्रयत्न करता है तो आरम्भ में वह त्रुटि करता है । परन्तु लगातार प्रयत्न करने के पश्चात् वह उस कार्य को करने में सफल हो जाता है। इसी कारण इस प्रकार के सीखने की सफल प्रतिक्रियाओं के अयन द्वारा सीखना (Learning by Selection of the Successful Variation) भी कहते हैं। इस विधि में प्रत्यन अधिक करने पड़ते हैं। परन्तु फिर भी इसे एक व्यर्थ विधि नहीं कहा जा सकता। इस विधि से बालक जब किसी कार्य को करता है तो उसे भूल हो जाती है। परन्तु बार-बार प्रयत्न करने पर वह उस कार्य को सीख जाता है। वुडवर्थ (Woodworth) ने भी प्रयास एवं त्रुटि को स्पष्ट किया है।
प्रयास तथा त्रुटि सीखने का अपना महत्त्व है। सीखने की यह विधि अभ्यास पर आधारित होने के कारण सीखे हुए कार्य को स्थायी रूप प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त यह विधि बालकों को अपनी पहली गलतियों से होने वाले अनुभवों से लाभ उठाने का अवसर देती है। जब बालक किसी कार्य को करने का प्रयास करता है तो वह सफल भी हो सकता है और असफल भी। असफल होने पर वह फिर प्रयत्न करता है। इस प्रकारसीखने में बालक की एक दिशा निश्चित हो जाती है। वह असफल प्रयत्नों को तो छोड़ देता है और सफल प्रयत्नों को अपना लेता है। इसी प्रकार बालक किसी नवीन ज्ञान को ग्रहण करता है बालक जब इस विधि से सीखते हैं तो उनमें धैर्य तथा परिश्रम के गुण आ जाते हैं। गणित तथा विज्ञान विषयों में इस विधि से सीखने में विशेष सहायता मिलती है।
(7) सामूहिक विधि - द्वारा सीखना सीखने के लिए सामूहिक विधि को बहुत उपयोगी माना जाता है। अधिगम के प्रकार (Types of Learning) प्रमुख सामूहिक विधि इस प्रकार है-
(अ) वर्कशाप विधि- इस विधि में कार्यशाला का आयोजन करके छात्र वाद-विवाद करते हैं तथा समस्याओं पर आपस में विचार-विमर्श करते हैं।
(ब) सम्मेलन एवं विचारगोष्ठी विधि - यह विधि वर्कशाप का मिला-जुला रूप है। सम्मेलन द्वारा विचारगोष्ठी करके छात्रों को नई बातें सीखने को मिलती है।
(8) प्रोजेक्ट विधि ( योजना पद्धति) - अधिगम का अर्थ और प्रकार (Types of Learning) में आधुनिक प्रयोजनवादी विचारधारा ने योजना विधि का प्रादुर्भाव किया। प्रो. जान ड्यूवी तथा उनके शिष्य किलपैट्रिक ने इस विधि का प्रयोग कोलम्बिया विश्वविद्यालय में किया। यह विधि शिक्षा के कृत्रिम वातावरण को समाप्त करने तथा शिक्षा को जीवन से सम्बन्ध स्थापित करने हेतु महत्वपूर्ण है प्रारम्भ में इसका प्रयोग छात्रों द्वारा किये जाने वाले गृह कार्यों के लिए किया जाता था जिसमें योजना बनाना तथा शारीरिक श्रम करना निहित होता था।
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योजना विधि के सिद्धान्त - किलपैट्रिक ने योजना विधि के प्रमुख तीन सिद्धान्त बताए हैं-
1. योजना को क्रियान्वित करना छात्रों के लिए सम्भव हो और शिक्षक छात्रोंमा र्गदर्शन करें।
2. योजना का उद्देश्य छात्रों व शिक्षकों को स्पष्ट होना चाहिए।
3. योजना कक्षा से दूर सामाजिक वातावरण में पूर्ण की जाये जिसमें व्यावहारिकता व यथार्थता उसमें विद्यमान रहे।
(9) समूह अधिगम - इस विधि में बालकों को समूह के रूप में एक साथ बैठाकर उनको चित्र अथवा अन्य सामग्री देकर सिखाने का प्रयास किया जाता है। समूह अधिगम सीखने में बहुत सहायक है यह विधि बहुत प्रचलित है। इसमें बालकों का मानसि विकास सम्भव है तथा बालक शीघ्रतापूर्वक सीखते हैं।