Sharirik Shiksha ka Arth, Paribhasha शारीरिक शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा

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शारीरिक शिक्षा का अर्थ sharirik Shiksha ka Arth

शारीरिक शिक्षा का शाब्दिक अर्थ (Meaning of Physical Education) है। शरीर की शिक्षा परन्तु भाव केवल शरीर तक ही सीमित नहीं है बल्कि काफी विस्तृत है कभी इसको शारीरिक प्रशिक्षण कहा गया है तो कभी शारीरिक संस्कृति, एक आम व्यक्ति शारीरिक शिक्षा को शारीरिक क्रिया ही मानता है। शारीरिक शिक्षा को केवल शारीरिक क्रिया या शारीरिक क्रियाओं का समूह मानना शारीरिक शिक्षा के साथ अन्याय करना है। क्योंकि शिक्षा शब्द का उपयोग शरीर के साथ किया गया है। वहाँ शारीरिक शिक्षा से अभिप्राय उस शिक्षा से है जिसका सम्बन्ध शारीरिक क्रियाओं व शरीर से होता है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति विशेष का सर्वागीण विकास सम्भव होता है। इस शिक्षा का क्षेत्र काफी व्यापक है, क्योंकि शारीरिक शिक्षा में शिक्षा शब्द का प्रयोग किया गया है। 

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Sharirik Shiksha ka Arth evam Paribhasha शारीरिक शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा

 शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्य (Sharirik Shiksha ka uddeshy)

लक्ष्य शब्द से अभिप्राय ऐसे उच्चतम तथा सुन्दर अभूर्त निर्दिष्ट स्थान से है जिसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति संस्था एवं संगठन प्रयास करता है। लक्ष्य उपलब्धि का अन्तिम बिन्दु एवं आदर्श होता है। लक्ष्य के अन्तर्गत कई उद्देश्य होते है जो इसकी तुलना में अधिक सकारात्मक, विशिष्ट, ठोस, बोधगम्य होते है किसी विशेष स्थिति में लक्ष्य तो एक ही होता है परन्तु उस तक पहुँचने के उद्देश्य कई होते हैं। उद्ददेश्य वह महामार्ग है।

शारीरिक शिक्षा, अध्यापक को यह समझाने में सहायता करती है कि उसे क्या तथा कैसे प्राप्त करना है। उद्देश्यों के ज्ञान से शारीरिक शिक्षक लक्ष्य की प्राप्ति के लिये अधिक शक्तिशाली तथा प्रभावशाली ढंग से प्रयास करता है। अर्थपूर्ण तथा उचित कार्य प्रणाली को निश्चित करने में उद्देश्य पथ-प्रदर्शक का कार्य करते हैं।

शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों की स्पष्ट जानकारी से शारीरिक शिक्षा के अध्यापक को अपने अनुभाग के महत्व से सम्बन्धित समस्याओं के विषय में तत्काल तथा उचित निर्णय लेने में हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। उद्देश्यों के ज्ञान से ही शारीरिक शिक्षा अध्यापक अपने क्षेत्र के कार्यक्रमो नीतियों, रीतियों तथा कार्यप्रणालियों की व्याख्या अधिक अर्थपूर्ण ढंग से करने में सफल होगा।

ऐतिहासिक दृष्टि से वस्तुतः यूनान ही ऐसा प्रथम सभ्य राष्ट्र था, जिसने शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों के स्पष्ट उद्देश्यों की नींव रखी। जिसमें सुकरात, प्लेटो तथा अरस्तु के विचारों तथा तत्वज्ञान ने शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य तथा उद्देश्यों को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। आज उनके विचारों की उतनी ही सार्थकता है, जितनी तब थी ।

किसी समय यूनानियों को शारीरिक शिक्षा का अग्रणी कहा जाता था, अमेरिका को आज आधुनिक शारीरिक शिक्षा का पथ-प्रदर्शक माना जाता है। यहाँ के व्यवसायी संगठनों ने शारीरिक शिक्षा की एक आकर्षक छवि को विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करने में अकथनीय परिश्रम किया है। स्वास्थ्य, शारीरिक शिक्षा तथा मनोरंजन के अमेरिकी संगठन (AAHPERD) ने शारीरिक शिक्षा के पाँच मुख्य उद्देश्य बताये हैं। 

शारीरिक शिक्षा की परिभाषा Sharirik Shiksha ki Paribhasha


Definition of physical education : शारीरिक शिक्षा, विषय में व्यक्ति की समस्त शारीरिक गतिविधियों, क्षमताओं, क्रियाओं, विकास के समस्त पहलुओं, विकास में गति अवरोध करने वाले तत्वों तथा उनके समाधान का अध्ययन किया जाता है। विभिन्न शिक्षा शास्त्रियों ने शारीरिक शिक्षा की परिभाषा निम्न प्रकार से दी है।

डैर्बट ओबर्टीओफर (Delbert Oberteuffer) के अनुसार "शारीरिक शिक्षा उन अनुभवों का सामूहिक प्रभाव है जो व्यक्ति विशेष की प्रक्रिया (शारीरिक आन्दोलन) से प्राप्त होते हैं"

ब्राउन बैल (Brown Well ) के अनुसार "शारीरिक शिक्षा उन सन्तुलित अनुभवों का जोड़ है जो व्यक्ति को वृहत पेशी प्रक्रियाओं में भाग लेने से भी प्राप्त होते हैं "

जे0एफ0 विलियम्स (J.F. Williams) द्वारा शारीरिक शिक्षा की परिभाषा कुछ इस प्रकार दी है, “शारीरिक शिक्षा मनुष्य की उन शारीरिक क्रियाओं को कहते हैं जिन का प्रयत्न और प्रयोग उनके प्रभाव की दृष्टि के अनुसार किया जाता है।"


भारतीय शारीरिक शिक्षा तथा मनोरंजन के केन्द्रिय सलाहाकार बोर्ड की परिभाषा के अनुसार "शारीरिक शिक्षा, शिक्षा ही है यह वह शिक्षा है। जो बच्चे के सम्पूर्ण व्यक्तित्व तथा उसकी शारीरिक प्रक्रिया कलाप द्वारा शरीरिक, मानसिक आत्मा की पूर्ण रूप से विकास हेतु दी जाती है।"

सैकण्डरी शिक्षा कमीशन के अनुसार, "शारीरिक शिक्षा स्वास्थ्य कार्यक्रमों का एक अति आवश्यक भाग है। इसकी भिन्न-भिन्न क्रियाओं को इस प्रकार करवाया जाये कि विद्यार्थियों के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य का विकास हो, उनकी मनोरंजन क्रियाओं में रूचि बढ़े तथा उनके भीतर सामूहिक भावना खेल भावना, दूसरों का आदर करने की भावना विकसित हो। शारीरिक शिक्षा इसलिये केवल शारीरिक हिल या नियमित व्यायाम से अत्याधिक ऊँची वस्तु है। इसमें सभी प्रकार की शारीरिक क्रियायें तथा खेल सम्मिलित है जिनके द्वारा शारीरिक और मानसिक विकास होता है"

शारीरिक शिक्षा का महत्व (Sharirik Shiksha ka mahatva.)

Importance of Physical Education :आधुनिक युग में अनावश्यक तनाव, पर्यावरण, प्रदूषण, धार्मिक असहिष्णुता, सामाजिक विघटन, आदि प्रतिकूल परिस्थितियों ने सामाजिक सन्तुलन बिगाड़ दिया है जिससे हमारी सभ्यता का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है, जिसे बचाने के लिए मानव को शारीरिक, मानसिक, भावात्मक, सामाजिक, बौधिक दृढता की आवश्यकता है जिसके लिए शारीरिक शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आधुनिक युग में शारीरिक शिक्षा के महत्व को निम्न प्रकार से समझाया गया है।

1. बालक का सर्वांगीण विकास (Overall Development of Child) :- शारीरिक क्रियालापों के माध्यम से बालक का सर्वांगीण विकास होता है, क्योंकि इन क्रियाकलापो में भाग लेने पर उसे समय-समय पर सामाजिक, नैतिक, मानसिक गुणों का प्रयोग करना होता है।

2. प्राकृतिक विकास (Nature Development ) :- बालक का विकास गर्भ से वृद्धावस्था तक एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, परन्तु शारीरिक क्रियाकलापों द्वारा इसे सुचारू व सुव्यवस्थित किया जा सकता है। बालक को क्रियाशीलता के विकास के साथ ही स्वस्थ बनाती है।

3. शारीरिक विकास (Physical Development ) :- जीवन के सफल यापन में शारीरिक विकास का महत्वपूर्ण योगदान है। यदि बालक की काया पुष्ट सुडौल हो तो वह आसानी से शारीरिक श्रम कर पाएगा। स्वस्थ काया निरोगी भी रहती है। 

4. सामाजिक विकास (Social Development ) :- शारीरिक क्रियाओं में भाग लेने पर सामाजिक गुणों जैसे ईमानदारी, खेल भावना, दूसरों का सम्मान, मित्रता व भाईचारा, सहयोग, सामूहिकता, राष्ट्रीय भक्ति, शिष्टाचार आदि का विकास होता है। शारीरिक शिक्षा आदर्श नागरिक बनाने में सहयोग करती है। स्वहित की सोच से परे हटकर समाज कल्याण व देशहित की भावना रखते है।

5. आत्मविश्वास का विकास (Development of Self Confidence ) :- बालक को जीवन में कई तरह की कठिन परिस्थितियों से जूझना होता है जिसके लिए उसमें आत्मविश्वास का होना अत्यन्त आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा के माध्यम से बालक प्रतियोगिता के दौरान विभिन्न परिस्थितियों व संकटों का मुकाबला दृढ़ता से करता है जिससे उसमें आत्मविश्वास जाग्रत होता है जो उसे अपने जीवन में भी संकटो से जूझने की प्रेरणा मिलती है।

6. बौद्धिक विकास (Mental Development ) :- शारीरिक क्रियाकलापों में भाग लेने से बालक क्रियाओं के हर पहलू पर चिन्तन करने के लिए उत्प्रेरित होता है जो उसके बौद्धिक विकास में सहायक होते है।

7. चारित्रिक विकास (Character Development ) :- बालक के उत्तम विकास के लिए नैतिक गुणों का होना अत्यन्त आवश्यक है, जैसे अनुशासन, टीम के प्रति वफादारी, आदि। शारीरिक शिक्षा से बालक में आत्म-अनुशासन बढ़ता है व स्वच्छन्दता पर नियन्त्रण होता है। इससे बालका के ईर्ष्या, हिंसात्मक व्यवहार, घृणा, गन्दी प्रतिस्पर्धा, आदि चारित्रिक विकारों के नियंत्रण में सहायता मिलती है व बालक मानवता को अपनाकर अमानवीयता को त्याग देता है।

8. नेतृत्व के गुणों का विकास (Development of Leadership Quality ) :- शारीरिक शिक्षा बालक में नेतृत्व के गुणों का विकास करती मौका खेल के मैदान पर मिलता है। अच्छा नेता वही हो सकता है जिसमें आत्मविश्वास, ईमानदार, दृढ़ता, बफादारी, सभी को साथ लेकर चलने का गुण हो।
9. खाली समय का सदुपयोग (Use of Free time ) :- व्यक्ति अपने दैनिक क्रियाकलापों को करने के पश्चात् कुछ समय विश्राम करना चाहता है जिससे वह अपनी दैन-दैनिक शारीरिक व मानसिक थकान को उतार सकें तथा इसके लिए शारीरिक क्रियाकलापों, खेलकूद से बढ़कर कोई अच्छा विकल्प नही है, क्योंकि विविध मनोरंजनात्मक क्रियाएं व्यक्ति का स्वस्थ मनोरंजन, शारीरिक विकास भी करती है। 
10. सांस्कृतिक विकास (Development of Culture) :- सम्पूर्ण विश्व विभिन्न सांस्कृतिक धरोहर समेटे है तथा व्यक्ति विभिन्न खेलों प्रतियोगिताओं के माध्यम से एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं। जिनसे वे परिवेश रीति-रिवाजो, मान्यताओं, परम्पराओं, जीवन-शैली, आदि से परिचित होते हैं जिससे सांस्कृतिक विकास व उत्थान के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

11. राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय एकता व भाईचारे का विकास Development of National & International Integration and Brotherhood) :- विभिन्न स्पर्द्धाओं के दौरान बालक अपनी धार्मिक भावनाओं, नस्ल, भाषा, जाति आदि भेद की भावना को परे रखकर एक परिवार के सदस्य की तरह अपनी टीम के साथ खेलता है जिससे उसमें एकता, भाईचारे व विश्व बन्धुत्व की भावना का विकास होता है, क्योंकि आज के युग में सीमाओं के अवरोध को तोड़ना मानव सभ्यता के विकास व उत्थान के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

12. हमारा सामाजिक ढ़ाचा (Our Social Structure) :- लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है, अतः व्यक्ति को लोकतांत्रिक सिद्धांत के आधार पर ही कार्य करना होता है जिनका ज्ञान बालक को शारीरिक क्रियाकलापों में भाग लेकर मिलता है।


13. सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास (Development of Positive Attitude) खेलो में भाग लेने से बालक जीत या हार को शालीनता से स्वीकार करने, नियमों का पालन करने, साथी खिलाड़ियों के साथ संयमित व्यवहार तथा कठिन परिस्थितियों से भी जूझने हेतु क्षमता का विकास होता है। इससे व्यक्ति की सोच पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।

14. स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान में वृद्धि (Gain in Health related Knowledge) :- शारीरिक शिक्षा बालको को स्वस्थ जीवन के लिए प्रेरित करती है। उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान प्रदान करती है जिससे मानव अपना सम्पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त कर स्वस्थ जीवन यापन कर सकता है।

15. रोजगारोन्मुखी पाठ्क्रम (Employment based Curriculum) :- शारीरिक शिक्षा एक रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रम है। इससे चालक स्वत व विभिन्न संस्थाओं में रोजगार के अवसर प्राप्त कर सकता है, जैसे खेल, खेल उपकरण व सामग्री का निर्माण खेल पत्रकारिता, विभिन्न में प्रशिक्षण हेतू प्रशिक्षक आदि।

अतः यह कहा जा सकता है कि आधुनिक युग में शारीरिक शिक्षा मनुष्य के जीवन को सुव्यस्थित सन्तुलित शान्ति पूर्ण जीने की कला में तथा उसमें राष्ट्र भक्ति व विश्व कल्याण की भावना का विकास करती है।

शारीरिक शिक्षा का सिद्धांत (Sharirik Shiksha ka Siddhant)

शारीरिक शिक्षा का सिद्धांत विभिन्न हो सकते हैं, लेकिन इसके मूल उद्देश्य शारीरिक शक्ति, स्थायित्व और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देना होता है। इसमें शारीरिक शिक्षा की महत्वपूर्ण विशेषताओं में से कुछ निम्नलिखित होते हैं:

  1. आरोग्य की सुरक्षा: यह सिद्धांत कहता है कि शारीरिक शिक्षा आरोग्य के लिए महत्वपूर्ण है। शारीरिक शिक्षा जैसे खेल और व्यायाम शरीर को स्वस्थ और आरोग्यमय बनाए रखने में मदद करते हैं।
  2. संतुलित जीवनशैली: यह सिद्धांत कहता है कि शारीरिक शिक्षा एक संतुलित जीवनशैली बनाए रखने में मदद करती है। इसके लिए व्यायाम, खेल और योग जैसी शारीरिक गतिविधियों को नियमित रूप से किया जाना चाहिए।
  3. उत्तेजित शिक्षण तकनीक: यह सिद्धांत कहता है कि शारीरिक शिक्षा उत्तेजित शिक्षण तकनीक है जो विद्यार्थियों को विभिन्न कौशलों का विकास करने में मदद करती है। शारीरिक शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों को सामाजिक और सांस्कृतिक कौशलों, जैसे टीमवर्क, नेतृत्व और सहयोग का विकास होता है।
  4. विकासशील शिक्षा: यह सिद्धांत कहता है कि शारीरिक शिक्षा विकासशील शिक्षा है, जो छात्रों को न केवल शारीरिक रूप से बलवान बनाती है, बल्कि उनकी मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास भी करती है।
  5. व्यावहारिक शिक्षा: यह सिद्धांत कहता है कि शारीरिक शिक्षा व्यावहारिक शिक्षा होती है, जो छात्रों को अनुभवों के माध्यम से सीखने का मौका देती है। इसमें विभिन्न खेल, योग और व्यायाम के माध्यम से छात्रों को अपने शरीर को कैसे नियंत्रित करना है और स्वस्थ जीवनशैली के लिए कौन से अभ्यास करने चाहिए, इसे सिखाया जाता है।
इन सिद्धांतों के आधार पर, शारीरिक शिक्षा छात्रों को विभिन्न शारीरिक गतिविधियों जैसे खेल, व्यायाम, योग, ताइची आदि के माध्यम से अभ्यास करने का मौका देती है। इससे वे स्वस्थ शारीरिक जीवनशैली के साथ-साथ अच्छी मानसिक स्थिति भी बनाए रख सकते हैं। यह शिक्षा उन्हें जीवन भर के लिए स्वस्थ बनाती है और उनकी सामाजिक और व्यक्तिगत विकास में मदद करती है। इससे वे अधिक सक्रिय रहते हैं, उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और उन्हें संयुक्त रूप से काम करने का मौका मिलता है।

शारीरिक शिक्षा का महत्व विद्यार्थियों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास के लिए होता है। इससे वे स्वस्थ रहते हैं और उन्हें अपनी समस्याओं का सामना करने के लिए तैयार किया जाता है। इसके साथ ही ये विद्यार्थियों को उनके भविष्य के लिए तैयार करता है, जहाँ शारीरिक शक्ति और एक स्वस्थ जीवनशैली का होना बहुत जरूरी है।

शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता (Sharirik Shiksha ki avashyakta.)

शारीरिक शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जो शरीर के विकास, स्वस्थ रहने और जीवन भर की अच्छी सेहत के लिए आवश्यक होती है। यह शिक्षा शारीरिक गतिविधियों, खेल, व्यायाम, योग आदि के माध्यम से दी जाती है।

शारीरिक शिक्षा आमतौर पर स्कूलों और कॉलेजों में दी जाती है और यह छात्रों को स्वस्थ और फिट रखने के साथ-साथ सभी शारीरिक गतिविधियों के समझ और उन्हें निरंतर अभ्यास करने की सलाह देती है। इसके साथ ही, शारीरिक शिक्षा के माध्यम से छात्रों के मनोवैज्ञानिक विकास, टीम वर्क, सहनशीलता, स्वतंत्रता, अनुशासन आदि के विकास में भी सहायता मिलती है।

शारीरिक शिक्षा छात्रों के शारीरिक विकास के साथ-साथ उनके मानसिक और सामाजिक विकास में भी मददगार होती है। छात्रों को समय-समय पर शारीरिक गतिविधियों में हिस्सा लेने की सलाह दी जाती है जो उन्हें सक्रिय रखती है और उनकी अच्छी सेहत बनाए रखने में मदद करती है।

इसके अतिरिक्त, शारीरिक शिक्षा न केवल फिजिकल फिटनेस का विकास करती है, बल्कि यह मानसिक संतुलन, तनाव नियंत्रण और सामाजिक विकास को भी बढ़ाती है। शारीरिक शिक्षा के अभ्यास करने से छात्रों का मानसिक संतुलन बढ़ता है जो उन्हें अधिक तनाव-मुक्त बनाता है और उनकी अधिक उत्साहित रखता है।

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 पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs

Q1.शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य एवम् उद्देश्य ।
A .शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है सर्वांगीण विकास करना।
Q2. खेल एवं शारीरिक शिक्षा क्या है।
A. शारीरिक शिक्षा के माध्यम से खेल में कुशलता प्राप्त करना।

निष्कर्ष: आशा करते हैं कि इस लेख (Sharirik Shiksha ka Arth evam Paribhasha शारीरिक शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा) से आपको कुछ नया सीखने को मिला होगा । इस लेख से संबंधित अगर आपके पास कोई प्रश्न या सुझाव है तो कृपया नीचे कमेंट बॉक्स का प्रयोग कर सकते हैं हम तत्काल उसका उत्तर देने का प्रयास करेंगे लेख पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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