इस लेख से जाने भाषा सीखने में पियाजे का सिद्धांत |जीन का पियाजे संज्ञानात्मक सिद्धांत | जीन पियाजे के चार अवस्था सिद्धान्त क्या है।
जीन पियाजे के बारे में।
जीन पियाजे (Jean Piaget) 9 अगस्त, 1896 को स्विट्जरलैंड के नोशाटेल में जन्मे। उनके पिता का नाम आर्थर पियाजे था और वे अच्छे दांत चिकित्सक थे। पियाजे के दो बड़े भाई और एक छोटी बहन थी।
जीन पियाजे की बचपन की शिक्षा में विशेष रूप से विज्ञान, दर्शन, और राजनीति का ध्यान था। उन्होंने विश्वविद्यालय ऑफ नीचतेल में बाल मनोविज्ञान में स्नातक अध्ययन किया। उन्होंने फिर जेनेवा विश्वविद्यालय में दायित्व लिया और वहां प्रायोगिक मनोविज्ञान और लॉजिक अध्ययन किया।
जीन पियाजे ने अपने शोध के दौरान नवजात शिशुओं और बच्चों के मानसिक विकास पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने अपनी प्रतिष्ठित किताब "जन्म से बच्चे के बड़े होने तक" ("The Language and Thought of the Child") के माध्यम से अपने सिद्धांतों को प्रस्तुत किया। इससे उन्हें विश्वविद्यालयी पद की प्राप्ति हुई और उन्होंने बाद में विभिन्न अन्य प्रमुख अध्ययनों और पुस्तकों के माध्यम से अपने सिद्धांतों को विस्तारित किया।
पियाजे के द्वारा प्रस्तुत किए गए सिद्धांतों ने मनोविज्ञान, शिक्षा, और पाठ्यक्रम विकास के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाए। उन्होंने 1980 तक अपना समय व्यतीत किया और 84 वर्ष की आयु में 16 सितंबर, 1980 को जेनेवा, स्विट्जरलैंड में निधन हो गए। उनके सिद्धांत और अद्यतन आज भी विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
जीन पियाजे का सिद्धांत
जीन पियाजे के सिद्धांतों का मुख्य ध्यान बाल मनोविज्ञान और विकास मनोविज्ञान पर था। उन्होंने अपनी अवधारणाओं के माध्यम से बच्चों के मानसिक विकास की चर्चा की। उनके सिद्धांतों का मूल आधार यह था कि व्यक्ति का मानसिक विकास स्टेजवाइज़ रूप से होता है और यह मनोविज्ञानिक प्रक्रिया के माध्यम से निर्माण होता है। यहां नीचे जीन पियाजे के प्रमुख सिद्धांतों की एक संक्षेप में व्याख्या की गई है। पियाजे का सिद्धांत शिशुओं और बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास को चार मुख्य स्तरों में वर्गीकृत करता है-
1. संवेदनशीली चरण (सेंसोरीमोटर स्तर): यह चरण शिशुओं के जन्म से लेकर लगभग 2 वर्ष की आयु तक तक होता है, जब उन्हें अपने प्रगति और अभिरुचियों को संवेदनशील तरीके से समझने और उसके साथ इंटरैक्ट करने की क्षमता विकसित होती है।
2. प्री-ऑपरेशनल चरण: यह चरण लगभग 2 से 7 वर्ष के बीच तक चलता है और इसमें शिशुओं की भाषा विकास, मन की प्रतीक्रिया, व्याख्यात्मक योजनाओं की क्षमता, लोगिक और समकालिकता का अभिप्रेत होना शामिल होता है।
3. कॉन्क्रीट ऑपरेशनल चरण: इस चरण में (7 से 11 वर्ष) बच्चे बहुत सारे प्रकार की मानसिक क्रियाओं को समझने और उन्हें न्यायपूर्वक विचार करने की क्षमता विकसित करते हैं।
4. फॉर्मल ऑपरेशनल चरण: इस चरण में (11 से 15 वर्ष) बच्चों का मानसिक विकास विशेष रूप से लॉजिकल और अभिव्यक्तिक चिन्तन पर केंद्रित होता है। वे अब संभावनाओं, अभिप्रेतियों, और ह्य्पोथेसिस बना सकते हैं।
जीन पियाजे के सिद्धांतों ने मनोविज्ञान और शिक्षा क्षेत्र में गहरा प्रभाव डाला है। उनके अनुसार, बाल मनोविज्ञान की अध्ययन ने हमें बच्चों की सोच और अभिव्यक्ति को समझने में मदद की है और इससे हमें उन्हें बेहतर ढंग से समर्थन करने और प्रशिक्षण देने की क्षमता प्राप्त हुई है।
पियाजे (Jean Piaget 1952) के अध्ययनों का आधुनिक बाल विकास पर अधिक प्रभाव पड़ा। उसने मनोवैज्ञानिकों का ध्यान विकास की अवस्थाओं की ओर तथा संज्ञान (Cognition) के महत्व को अधिक आकर्षित किया है।
पियाजे के सिद्धान्त के कुछ प्रमुख विचार निम्न प्रकार हैं।
1. निर्माण और खोज (Construction and Invention)- प्रत्येक बालक अपने अनुभवों का अर्थपूर्ण बनाने के लिए क्रियाशील होता है वह यह जानने के लिए प्रयत्नशील होता है कि उसके विचार सम्बद्धतापूर्ण (Coherent Whole) से मेल खाते हैं या नहीं बच्चे उन व्यवहारों और विचारों की समय-समय पर खोज और निर्माण करते रहते हैं जिन व्यवहारों और विचारों का उन्होंने कभी पहले प्रत्यक्ष नहीं किया होता है। पियाजे का विचार है कि ज्ञानात्मक विचार केवल नकल (Copying) न होकर खोज (Invention) पर आधारित है। नवीनता या खोज (Novelty or Invention) को उद्दीपक अनुक्रिया सामान्यीकरण के आधार पर नहीं समझाया जा सकता है. उदाहरण के लिए एक चार साल का बालक यदि भिन्न-भिन्न आकार के प्यालों को प्रथम बार क्रमानुसार लगा देता है, तो यह उसके बौद्धिक विवृद्धि की खोज और निर्माण से सम्बन्धित है।
2. कार्य क्रिया का अर्जन (Acquisition of Operation) आपरेशन का तात्पर्य उस विशिष्ट प्रकार के Mental Routine से है, जिसकी मुख्य विशेषता उत्क्रमणशीलता (Reversibility) है। प्रत्येक आपरेशन का एक तर्क पूर्ण विपरीत होता है। उदाहरण के लिए एक मिट्टी के चक्र को दो भागों में तोड़ना तथा दो टूटे हुए भागों को पुनः एक पूर्ण चक्र के रूप में जोड़ना एक आपरेशन है आपरेशन की सहायता से बच्चे मानसिक रूप से वहीं पुनः पहुँच सकते हैं जहाँ से उन्होंने कार्य प्रारम्भ किया था बौद्धिक विवृद्धि (Growth) का केन्द्र इन्हीं आप्रेशन्स का अर्जन है। पियाजे का विचार है कि जब तक बालक किशोरावस्था तक नहीं पहुँच जाता है तब तक वह भिन्न-भिन्न विकास अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न वर्गों के आपरेशन्स का अर्जन करता रहता है। एक विकास अवस्था से दूसरी में पदार्पण के लिए निम्न वो मैकेनिज्म आवश्यक हैं-
(i) सात्मीकरण (Assimilation)- सात्मीकरण का अर्थ है-बालक में उपस्थित एक विचार (Idea or Schema) में किसी नए विचार या वस्तु का समावेश हो जाना। पियाजे के अनुसार विचार (Idea or Schema) का अर्थ बालक में प्रत्याक्षात्मक गत्यात्मक समन्वय (Perceptual Motor Coordinations) से है। प्रत्येक बालक में प्रत्येक आयु स्तर पर कुछ न कुछ क्रियाओं या आपरेशन्स के सेट विद्यमान होते हैं। इन पुराने आपरेशन्स में नवीन विचार या क्रियाओं का समावेश हो जाता है। अतः सात्मीकरण का अभिप्राय पुराने विचारों और आदतों को नवीन वस्तुओं में प्रयुक्त करना है तथा घटनाओं को वर्तमान विचारों को, एक भाग के रूप में समझना है।
(ii) व्यवस्था तथा संतुलन स्थापित करना (Accommodation and Equilibration ) - व्यवस्थापन का अर्थ नई वस्तु या विचार के साथ समायोजन करना है या अपने विचारों और क्रियाओं को नवीन विचारों और वस्तुओं में फिट करना है। बालकों में बौद्धिक विवृद्धि जैसे-जैसे बढ़ती है, वैसे-वैसे वह नयी परिस्थितियों के साथ समायोजन करना सीखता है। मानसिक विवृद्धि में सात्मीकरण और व्यवस्थापन में उपस्थित अथवा उत्पन्न तनाव का हल (Resolution) निहित होता है।
यह तनाव नई परिस्थितियों में पुरानी अनुक्रियाओं को नयी समस्याओं के समाधान में फिट करता है। बालक हर समय नई घटनाओं या समस्याओं के साथ अपने को व्यवस्थित करता रहता है, जिससे उसका बौद्धिक विकास परिपक्वता की ओग अग्रसर होता है। इस प्रकार का व्यवस्थापन सन्तुलन (Equilibration) कहलाता है।
3. क्रमिक विकासात्मक अवस्थाएँ (Sequential Development Stages)- पियाजे ने विकास की चार मुख्य अवस्थाओं का वर्णन किया है-
जीन पियाजे के चार अवस्था सिद्धान्त।
(i) संवेदी पेशीय अवस्था (Sensory motor Period)- यह जन्म से चौबीस महीने तक की अवस्था है। इस आयु में उसकी बुद्धि उसके कार्यों द्वारा व्यक्त होती है। उदाहरण के लिए, चादर पर बैठा बालक चादर पर दूर पड़े खिलौने को प्राप्त करने के लिए चादर को खींचकर खिलौना प्राप्त कर लेता है। पियाजे के अनुसार यह एक बौद्धिक कार्य है। पियाजे इस कार्य को आप्रेशन न कहकर Schema of Action की संज्ञा देते हैं। इस आयु में बच्चों में Schema of action के अनेक सेट पाए जाते हैं। पियाजे ने सवेदी-पेशीय अवस्था को पुनः निम्न छ: अवस्थाओं में विभाजित किया है-
(1) Reflexes - यह जन्म से एक माह की अवस्था ।
(2) Primary Circular Reactions- एक माह से तीन माह तक की अवस्था ।
(3) Secondary Circular Reactions-यह चार से छः माह तक की अवस्था ।
(4) Co-ordination of Secondary Reaction- यह सात से दस माह तक की अवस्था है।
(5) Tertiary Circular Reaction- यह ग्यारह से अठारह माह तक की अवस्था है।
(6) Final Stage of this Period-यह अवस्था वह है जो बालक लगभग चौबीस माह तक की आयु में प्राप्त करता है।
(ii) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Pre-operational Period) - यह दो से सात वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था में वह नई सूचनाओं और अनुभवों का संग्रह करता है अथवा प्रथम अवस्था की अपेक्षा अधिक समस्याओं का समाधान करने योग्य हो जाता है। इस अवस्था में उसमें आत्म- केन्द्रितता (Egocentricity) का उदय होता है। इस अवधि के अन्त तक जब बालक में कुछ सामाजिक विकास उत्पन्न हो जाता है तब उसकी यह आत्मकेन्द्रितता कुछ कम होने लगती है (Piaget and Inhelder) इस अवस्था में मुख्यतः भाषा और वस्तुओं तथा घटनाओं के अर्थ का विकास होता है।
(iii) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operation Period)- यह अवस्था सात से ग्यारह वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था में वह विश्वास करने लगता है कि लम्बाई, भार अंक आदि स्थित रहते हैं। वह अनेक कार्यों की मानसिक प्रतिभा प्रस्तुत कर सकता है। वह किसी पूर्व और उसके अंश के सम्बन्ध में तर्क कर सकता है। संक्षेप में वह अपने चारों ओर के पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने के लिए अनेक नियमों को सीख लेता है।
(iv) औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operations Period) - यह अवस्था ग्यारह वर्ष से प्रौदावस्था तक की अवस्था है। इस अवस्था में वह परिकल्पनात्मक ढंग से समस्याओं पर विचार कर सकता है। वह अनेक संक्रियाओं को संगठित कर उच्च स्तर की संक्रियाओं का निर्माण कर सकता है और विभिन्न प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए अमूर्त नियमों का निर्माण कर सकता है। संक्षेप में, वह इस योग्य हो जाता है कि वह इस समस्या विशेष का प्रत्येक सम्भव तरीके से समाधान कर सके।
जीन पियाजे के नैतिक विकास की अवस्थाएं।
नैतिक विकास की व्याख्या के लिए पियाजे ने अपने सिद्धान्त में दो अवस्थाओं का उल्लेख किया है एवं नैतिकता के सम्यक विकास के लिए संज्ञानात्मक योग्यताओं के विकास को महत्त्वपूर्ण बताया है।
1. नैतिकता प्रथम अवस्था को परतन्त्र नैतिकता (Heteronomous Morality) कहते हैं। इस अवस्था में बच्चों में तर्क- क्षमता का विकास कम हुआ रहता है, अतः उनके मन में धारणा बनी रहती है कि नैतिक नियम परिवर्तनशील नहीं होता है और अपने व्यवहार के परिणाम (Outcome) से व्यवहार के वांछित होने का अनुमान लगाते हैं। इससे उनका व्यवहार परिमार्जित होता है (Piaget, 1965, 1970, 1971)।
2. स्वायत्त नैतिकता दूसरी अवस्था को स्वायत्त नैतिकता (Autonomous Morality) कहते हैं। यह अवस्था लगभग सात वर्ष के बाद की है। इस अवस्था में संज्ञानात्मक विकास काफी सीमा तक हो चुका होता है। बच्चे यह महसूस करने लगते हैं कि नैतिकता के नियमों में अन्य लोगों की सहायता से कुछ न कुछ परिवर्तन सम्भव है। वे दूसरों की भावनाओं एवं इरादों की विश्वसनीयता का भी अपेक्षा करके सटीक अनुमान लगा लेते हैं।
निष्कर्ष: इस लेख से आप ने जाना जीन पियाजे का सिद्धांत, जीन पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धांत, जीन पियाजे के चार अवस्था और अंत में जाना जीन पियाजे की नैतिक विकास । पियाजे के सिद्धांत सम्बन्धित सवाल जवाब है तो कृपया कमेंट बॉक्स में लिख कर कर सकते हैं।
पूछे जाने वाले प्रश्न : FAQS
Q - पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएं क्या है?
A- पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की 4 अवस्थाएं है जो निम्न लिखित है 1.संवेदी पेशीय अवस्था 2.पूर्व संक्रियात्मक अवस्था 3.मूर्त संक्रियात्मक अवस्था 4.औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था।
Q- जीन पियाजे की अवस्थाएं क्या है?
A- जीन पियाजे की 4 अवस्थाएं है।