अपवाह तंत्र से क्या आशय है (Apvah Tantra kya hai )एवं अपवाह द्रोणी किसे कहते हैं

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अपवाह तंत्र से क्या आशय है।

अपवाह तन्त्र एवं प्रतिरूप दीर्घकाल तक चलने वाली एक क्रमिक प्रक्रिया है। यह नदियों के वर्गीकरण का आधार है। यह दीर्घकाल में जलधारा की उत्पत्ति व विकास को दर्शाता है। 'अपवाह' (Drainage) किसी क्षेत्र विशेष के नदी तन्त्र (River System) की व्याख्या है। भारत की विभिन्न दिशाओं में छोटी-छोटी धाराएँ मिलकर मुख्य नदी का निर्माण करती हैं और अन्ततः किसी बड़े जलाशय; जैसे-झील (Lake), समुद्र व महासागर में गिरती हैं। नदी तन्त्र द्वारा जिस क्षेत्र का जल प्रवाहित होता है, उसे अपवाह द्रोणी (Drainage Basin) कहते हैं। विश्व की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी अमेजन नदी (दक्षिणी अमेरिका) की है। दो पड़ोसी अपवाह द्रोणियों को जब कोई ऊँचा क्षेत्र; जैसे-पर्वत या उच्च भूमि अलग करता है, तो उस क्षेत्र को जल विभाजक (Water Divide) कहते हैं। आप ने जाना अपवाह तंत्र से क्या आशय है अब आगे जाने अपवाह तंत्र के प्रकार ।

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अपवाह प्रतिरूप (प्रकार)

अपवाह तंत्र

अपवाह प्रतिरूप में धाराएँ एक निश्चित प्रतिरूप का निर्माण करती हैं, जो उस क्षेत्र की भूमि की ढाल, जलवायु सम्बन्धी अवस्थाओं तथा अधःस्थ शैल संरचना (Underlying Rock Structure) पर आधारित होते हैं। अपवाह प्रतिरूप को निम्न चार वर्गों में विभाजित किया जाता है।

(i) द्रुमाकृतिक प्रतिरूप (Dendritic Drainage) जब धाराएँ किसी स्थान के भूस्थल के ढाल के अनुसार बहती हैं, तब द्रुमाकृतिक प्रतिरूप का निर्माण होता है। इस प्रतिरूप में मुख्य धारा तथा उनकी सहायक नदियाँ एक वृक्ष की शाखाओं की भाँति प्रतीत होती हैं।

(ii) जालीनुमा प्रतिरूप (Trellis Drainage ) जब सहायक नदियाँ मुख्य नदी से समकोण पर मिलती हैं, तब जालीनुमा प्रतिरूप का निर्माण करती हैं। जालीनुमा प्रतिरूप वहाँ विकसित होता है, जहाँ कठोर और मुलायम चट्टानें समानान्तर पाई जाती हैं।

(iii) आयताकार अपवाह प्रतिरूप (Rectangular Drainage ) यह प्रतिरूप प्रबल सन्धित शैलीय भू-भाग पर विकसित होता है।

(iv) अरीय प्रतिरूप (Radical Drainage) यह प्रतिरूप तब विकसित होता है, जब केन्द्रीय शिखर या गुम्बद जैसी संरचना धाराएँ विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित होती हैं।

विभिन्न प्रकार के अपवाह प्रतिरूप का संयोजन एक ही अपवाह द्रोणी में पाया जा सकता है। अभी तक आप ने जाना अपवाह तंत्र से क्या आशय है, प्रकार और अब आगे जाने भारत में अपवाह तंत्र ।

 भारत में अपवाह तन्त्र

भारत के अपवाह तन्त्र का नियन्त्रण भौगोलिक आकृतियों द्वारा होता है। भौगोलिक आकृतियों के आधार पर भारतीय नदियों को मुख्य दो वर्गों में विभाजित किया गया है

1. हिमालय की नदियाँ

2. प्रायद्वीपीय नदियाँ

1. हिमालय की नदियाँ

हिमालय क्षेत्र की नदियाँ बारहमासी (Perennial) होती हैं। इन नदियों में वर्षभर पानी की उपलब्धता बनी रहती है। इन्हें वर्षा जल के अतिरिक्त ऊँचे पर्वतों से पिघलने वाली हिम द्वारा भी जल प्राप्त होता है। हिमालय की नदियों में सिन्धु और ब्रह्मपुत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है, जो हिमालय पर्वत श्रृंखला के उत्तरी भाग से निकलती हैं। इन नदियों ने अपने अपवाह मार्ग में पर्वतों को काटकर गॉर्ज (Garge) का निर्माण किया है।

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ पर्याप्त मात्रा में जल का बहाव करती है। परिणामतः ये अपने उत्पत्ति स्थान (Source) से समुद्र तक की लम्बी दूरी को तय करने में सक्षम होती है। इस क्रम में ये नदियाँ अपने मार्ग में कई निक्षेपण आकृतियों (Depositional Features) का निर्माण करती हैं। ये नदियाँ अपने मार्ग के शीर्ष भागों में तीव्र अपरदन (Intensive Erosional) क्रिया करती हैं। इस क्रिया में सिल्ट (Silt) और बालू (Sand) का भारी मात्रा में संवहन होता है।

• मध्य और निचले भागों में ये नदियां विसर्प (Meander) व गोखुर झील (Ox-bow Laken) जैसी आकृतियों का निर्माण करती हैं। हिमालयी नदियाँ पूर्ण विकसित डेल्टाओं (Deltan) का भी निर्माण करती हैं। मुख्य नदी और उसकी सहायक नदियों (Tributary) के मिलने से नदी तन्त्र का निर्माण होता है, जोकि निम्न प्रकार है अभी तक आप ने जाना अपवाह तंत्र से क्या आशय है, अपवाह तंत्र के प्रकार , अब जाने हिमालय से निकलने वाले नदियों के अपवाह तंत्र के बारे में।

(i) सिन्धु नदी तन्त्र

• सिन्धु नदी का उद्गम तिब्बत में मानसरोवर झील के समीप है। अर्थात् कैलाश पर्वत श्रेणी में बोखर चू के निकट एक ग्लेशियर है। तिब्बत में इसे सिंगी खम्बान कहा जाता है। यह नदी अपने उद्गम स्थान से पश्चिम दिशा में बहती है। भारत में इसका प्रवेश जम्मू-कश्मीर से है। इस क्षेत्र में जास्कर, नूबरा, श्योक तथा हुंजा जैसी सहायक नदियाँ सिन्धु नदी से मिलती हैं।

• सिन्धु नदी पाकिस्तान में बलूचिस्तान और गिलगित से बहते हुए अटक में पर्वतीय क्षेत्र से बाहर निकलती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ सतलुज, व्यास, रावी, चेनाब तथा झेलम आपस में मिठानकोट (पाकिस्तान) के पास मिलती हैं। इसके पश्चात् सिन्धु नदी तन्त्र के बहाव की दिशा में परिवर्तन आता है, जिसके परिणामस्वरूप यह दक्षिण की ओर बहने लगती है। अन्ततः कराची से पूर्व की ओर अरब सागर में मिल जाती है।

• सिन्धु नदी विश्व की सबसे लम्बी नदियों में से एक है। यह 2900 किमी लम्बी है, जिसमें भारत में इसकी लम्बाई 1,114 किमी ही है। सिन्धु नदी का अपवाह क्षेत्र 11,65,000 वर्ग किमी है। सिन्धु द्रोणी का एक तिहाई से अधिक भाग भारत के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पंजाब के अपवाह क्षेत्र में है एवं शेष भाग पाकिस्तान में स्थित है। दोनों देशों ने जल विवाद से बचने के लिए वर्ष 1960 में इस सन्धि पर हस्ताक्षर किए थे।

• यह सन्धि सिन्धु जल समझौता (Indus Water Treaty) के नाम से जानी जाती है। इस समझौते के अनुसार, भारत सिन्धु नदी तन्त्र का केवल 201% जल ही उपयोग कर सकता है। इस जल का उपयोग पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भागों में सिंचाई के लिए किया जाता है।

(ii) गंगा नदी तन्त्र

• गंगा नदी अपनी जल प्रणाली तथा सांस्कृतिक महत्त्व के कारण भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह नदी उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले के समीप गोमुख हिमनद से निकलती है। 

• यहाँ यह भागीरथी के नाम से जानी जाती है यह गंगा नदी की मुख्य धारा भी है। देवप्रयाग में यह अलकनन्दा से मिलकर गंगा के नाम से जानी जाती है।

• हरिद्वार के निकट गंगा नदी पर्वतीय भाग को छोड़कर मैदानी भाग में प्रवेश करती है। गंगा नदी की लम्बाई 2,500 किमी है। इसमें यमुना, घाघरा, गण्डक व कोसी जैसी प्रमुख नदियाँ आकर मिलती हैं। ये सभी सहायक नदियाँ हिमालय पर्वत श्रृंखला से निकलती हैं ये गंगा के दाहिने किनारे के समानान्तर बहती है। घाघरा, गण्डक एवं कोसी का उद्गम नेपाल में हिमालय से होता है। यमुना इलाहाबाद/प्रयाग (उत्तर प्रदेश) में गंगा से मिल जाती है। यमुना नदी हिमालय की यमुनोत्री हिमानी (Yamunotri Glacier) से निकलती है। यमुना गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है।

• प्रायद्वीपीय उच्च भूमि (Peninsular Uplands) से गंगा की मुख्य सहायक नदियों में चम्बल, बेतवा और सोन शामिल हैं। ये नदियाँ अर्द्ध-शुष्क (Semi Arid) क्षेत्रों से निकलती हैं। इन नदियों की लम्बाई कम होने के साथ-साथ इनमें पानी की मात्रा भी कम होती है।

• गंगा नदी अपनी सहायक नदियों के जल के साथ पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर फरक्का (Farakka) (पश्चिम बंगाल) तक बहती है। फरक्का, गंगा नदी डेल्टा (Ganga Delta) का सर्वाधिक उत्तरी बिन्दु है। फरक्का में प्रवेश कर गंगा नदी दो भागों में बंट जाती है। इनमें से इसकी एक वितरिका (Distributary) भागीरथी हुगली, दक्षिण दिशा में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

• गंगा की मुख्य धारा दक्षिण की ओर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है, जो ब्रह्मपुत्र नदी से मिलती है। गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के इस संगम को समुद्र में विलीन होने से पूर्व मेघना (Meghna) के नाम से जाना जाता है। अन्ततः इन नदियों का वृहत जल बंगाल की खाड़ी में मिल जाता है। इन नदियों के द्वारा बनाए गए डेल्टा को सुन्दरबन डेल्टा (Sunderban Delta) के नाम से जाना जाता है। इस डेल्टा का नामकरण उस क्षेत्र में बहुतायत में पाए जाने वाले 'सुन्दरी पादप' (Sundari Tree) के कारण हुआ है। यह विश्व का सबसे बड़ा और तीव्र वृद्धि वाला डेल्टा है। यहाँ 'रॉयल बंगाल टाइगर' (Royal Bengal Tiger) भी पाए जाते हैं।

(ii) ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र

• विश्व की सबसे बड़ी नदियों में से एक ब्रह्मपुत्र का उद्गम कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर के निकट चेमयुंगडुंग हिमनद से होता है। यह स्रोत सिन्धु और सतलुज नदी के स्रोतों से अधिक पास है। ब्रह्मपुत्र नदी का अधिकांश भाग भारतीय सीमा से बाहर है।

• यह हिमालय पर्वत श्रृंखला के समानान्तर पूर्व दिशा में बहती है तिब्बत स्थित नामचा बरवा शिखर (7,767 मी) के पास पहुँचकर यह अंग्रेजी के 'यू' (U) अक्षर जैसा मोड़ बनाती है। यहाँ यह भारत के अरुणाचल प्रदेश में गॉर्ज के माध्यम से प्रवेश करती है तथा इसे यहाँ दिहांग नदी (Dihang River) के नाम से जाना जाता है। अभी तक आप ने जाना अपवाह तंत्र से क्या आशय है, अपवाह तंत्र के प्रकार , हिमालय से निकलने वाले नदियों के अपवाह तंत्र के बारे में, अब जाने प्रायद्वीपीय नदियों के बारे में।

2. प्रायद्वीपीय नदियाँ

अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी (Seasonal) होती हैं, क्योंकि इन नदियों का प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है। वर्षा की जल पर निर्भरता के कारण शुष्क (Dry) मौसम में यहाँ की बड़ी नदियों का जल भी कम होकर छोटी-छोटी धाराओं में बहने लगता है।

प्रायद्वीपीय नदियों का अपवाह तन्त्र

• यह हिमालयी नदियों के अपवाह तन्त्र से पुराना है। यह तथ्य नदियों की प्रौढ़ावस्था तथा नदी घाटियों के चौड़े व उथले होने से स्पष्ट होता है। पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों एवं अरब सागर में गिरने वाली छोटी नदियों के बीच जल विभाजक का कार्य करती है। पश्चिमी घाट अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियों का स्रोत भी है।

हिमालय क्षेत्र की नदियों की तुलना में ये नदियाँ कम लम्बाई वाली और छिछली (Shallow) हैं। इनमें से कुछ नदियाँ केन्द्रीय उच्च भूमि (Central Highlands) से निकलती हैं तथा पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती हैं। इस क्षेत्र में अधिकांश मुख्य नदियों का प्रवाह पूर्व की ओर है, जिनमें महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी प्रमुख हैं। ये नदियाँ अपने मुहाने अर्थात् अपने मुख की ओर डेल्टा का निर्माण करती हैं।

• नर्मदा और ताप्ती को छोड़कर पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ छोटी हैं। नर्मदा और ताप्ती ज्वारनदमुख (Estuary) का निर्माण करती हैं। ज्वारनदमुख पर नदी कोई निक्षेपण (Deposit) नहीं करती। यहाँ सीधे किनारों वाले नदी मुख का निर्माण होता है, जहाँ ढाल तीव्रता अधिक होती है। प्रायद्वीपीय नदियों की मुख्य द्रोणियाँ निम्नलिखित हैं।

(i) नर्मदा द्रोणी

नर्मदा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश की अमरकण्टक पहाड़ी है। यह पश्चिम की ओर एक भ्रंश घाटी (Rin Valley) में बहती है। मध्य प्रदेश में जबलपुर के निकट यह नदी संगमरमर के शैलों में गहरे गॉर्ज से अपवाहित होती है। यहाँ यह तीव्र ढाल से गिरती है और 'धुआंधार प्रपात' (Dhuandhar Falls) का निर्माण करती है। नर्मदा की सभी सहायक नदियाँ छोटी है। इनमें से अधिकांश नदियाँ समकोण पर मुख्य धारा से मिलती हैं। नर्मदा नदी तन्त्र (द्रोणी) का विस्तार मध्य प्रदेश और गुजरात के कुछ भागों तक विस्तृत है।

(ii) ताप्ती द्रोणी

पश्चिम की ओर बहने वाली यह दूसरी प्रमुख प्रायद्वीपीय नदी है। यह नदी मध्य प्रदेश के बैतूल जिला स्थित सतपुड़ा श्रृंखला से निकलती है। यह भी नर्मदा के समानान्तर एक भ्रंश घाटी में बहती है। इसकी द्रोणी मध्य प्रदेश सहित गुजरात और महाराष्ट्र में भी है।

अरब सागर और पश्चिमी घाट के बीच के तटीय मैदान बहुत संकरे हैं। अतः तटीय नदियाँ कम लम्बी हैं। पश्चिम की ओर अपवाहित अन्य मुख्य नदियाँ साबरमती, माही, भारतपूझा तथा पेरियार है।

(iii) गोदावरी द्रोणी

गोदावरी भारत की सबसे बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है, यह महाराष्ट्र स्थित नासिक जिले के पश्चिमी घाट के ढालों से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

1.500 किमी लम्बी नर्मदा नदी का अपवाह तन्त्र प्रायद्वीपीय नदियों में सबसे बड़ा है। इसकी द्रोणी चार राज्यों महाराष्ट्र (द्रोणी का 50% भाग), मध्य प्रदेश,ओडिशा (उड़ीसा) और आन्ध्र प्रदेश में विस्तृत है। इसकी सहायक नदियाँ पूर्णावर्धा, प्राणहिता, मंजरा, वेनगंगा और पेनगंगा हैं।

(iv) महानदी द्रोणी

महानदी छत्तीसगढ़ की उच्च भूमि से निकलती है। ओडिशा से बहते हुए यह बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इस नदी की लम्बाई 860 किमी है। इसकी द्रोणी ओडिशा सहित महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ व झारखण्ड में विस्तृत है।

(v) कृष्णा द्रोणी

कृष्णा का उद्गम महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में महाबलेश्वर के निकट है। 1,400 किमी लम्बी यह नदी बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी सहायक नदियाँ तुंगभद्रा, कोयना, घाटप्रभा, मूसी और भीमा हैं। कृष्णानदी द्रोणी महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश में विस्तृत है।

(vi) कावेरी द्रोणी

कावेरी प्रायद्वीपीय भारत की महत्त्वपूर्ण व बड़ी नदियों में से एक है। इसे दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है। यह पश्चिमी घाट की ब्रह्मगिरि श्रृंखला से निकलती है और कुडलूर (तमिलनाडु) के निकट दक्षिण बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। 760 किमी लम्बी इस नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ अमरावती, भवानी, हेमावती तथा काविनि हैं। इसकी द्रोणी तमिलनाडु सहित केरल व कर्नाटक राज्य में विस्तृत है।

भारत का दूसरा सर्वाधिक बड़ा जलप्रपात कावेरी नदी बनाती है, जिसका नाम शिवसमुन्दरम् जलप्रपात है। इससे उत्पादित विद्युत का वितरण मैसूर, बंगलुरु तथा कोलार स्वर्ण क्षेत्र को किया जाता है। प्रायद्वीपीय भारत में उपरोक्त वर्णित बड़ी नदियों के अतिरिक्त कुछ छोटी नदियाँ भी हैं, जिनका बहाव पूर्व दिशा में है। इनमें दामोदर, वैतरणी, ब्राह्मणी तथा सुवर्णरेखा प्रमुख हैं।

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