मापन का अर्थ एवं परिभाषा(Meaning and Definition of Measurement)
मापन की परिभाषा (Definition of Measurement)
(1) लिण्डमैन "मापन की परिभाषा इस प्रकार से की जा सकती है कि इसमें पूर्ण निश्चित नियमों के अनुसार लोगों अथवा वस्तुओं को निश्चित अंक प्रदान किये जाते हैं।
(2) ब्रैडफील्ड— "मापन किसी मापी जाने वाली वस्तु के गुणों को अंकों के रूप में प्रकट करने की वह प्रक्रिया है जो उस वस्तु की स्थिति को जहाँ तक सम्भव हो ठीक-ठीक अंकित कर सके।
मापन के उपर्युक्त वर्णित अर्थ एवं परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि मापन के मुख्य रूप से तीन कार्य हैं।
(1) मापन वस्तुओं की श्रेणी को व्यक्त करता है।
(2) मापन संख्याओं की श्रेणी को व्यक्त करता है।
(3) मापन वस्तुओं को अंक प्रदान करने वाले नियमों को व्यक्त करता है।
मापन की आवश्यक विशेषता (Essential Characteristics of Psychological Measurement)
नॉल (Noll) महोदय ने मनोवैज्ञानिक मापन की निम्नलिखित आवश्यक विशेषता बताई हैं।
(1) मनोवैज्ञानिक मापन सापेक्ष होता है, निरपेक्ष नहीं (Psychological Measurement is generally relative, not absolute ) — मनोवैज्ञानिक मापन के द्वारा प्राप्त अंकों या आँकड़ों का तुलनात्मक रूप में अध्ययन करने पर कोई न कोई अर्थ प्राप्त अवश्य होता है। उदाहरणार्थ यदि कोई छात्र गणित में 100 में 80 अंक प्राप्त करता है तो इस छात्र की स्थिति का सही ढंग से मूल्यांकन करने के लिए इस कक्षा या इस उम्र के अन्य छात्रों के प्राप्तांकों का औसत जानना पड़ेगा। इस प्रकार तुलना करके किसी फलांक या स्थिति के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। इसी कारण मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन में निरपेक्ष मापन के स्थान पर सापेक्ष मापन को प्राथमिकता दी जाती है।
(2) मनोवैज्ञानिक मापन संख्यात्मक होता है (Psychological Measurement is Quantitative)—मनोवैज्ञानिक मापन संख्या से सम्बन्धित होता है, अन्यथा इसे मापन की संज्ञा मिल ही नहीं सकती है। मनोवैज्ञानिक मापन के उपयोग से एक व्यक्ति को अंकों के मानक, औसत आदि प्राप्त होते हैं।
(3) मनोवैज्ञानिक मापन सामान्यतया अप्रत्यक्ष होता है प्रत्यक्ष नहीं (Psycho- logical Measurement is generally indirect rather than direct ) – मनोवैज्ञानिक मापन में निरपेक्ष रूप से मापन नहीं होता है। किसी आदमी की लम्बाई प्रत्यक्ष रूप से मापी जा सकती है, परन्तु किसी व्यक्ति की बुद्धि प्रत्यक्ष रूप से नहीं मापी जा सकती है। उसके द्वारा किये गये कुछ कार्यों तथा व्यवहारों के आधार पर केवल इस सन्दर्भ में अनुमान ही लगाया जा सकता है। अनुमान के आधार पर किसी की बुद्धि के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
(4) मापन को सदैव स्थिर इकाइयों में व्यक्त किया जाता है (Measurement is always expressed in extent units) - मनोविज्ञान के क्षेत्र में तुलनात्मक अध्ययन के लिए वास्तविक फलांकों (Raw scores) को किसी समान आधार पर व्युत्पन्न 'फलांकों (Derived scores) में परिवर्तित कर लेते हैं। प्रमापित फलांक (Standard scores) तथा टी. फलांक (T. scores) व्युत्पन्न फलांकों के उदाहरण हैं।
(5) मनोवैज्ञानिक मापन में अशुद्धियों की उपस्थिति रहती है (Errors are present in Psychological measurement )—अन्य क्षेत्रों के समान मनोवैज्ञानिक मापन में भी अशुद्धियों की उपस्थिति रहती है। इस कमी को सभी लोग मानते हैं। कुछ महत्वपूर्ण त्रुटियाँ इस प्रकार हैं-
(i) आकस्मिक त्रुटियाँ (Chance errors)—ये त्रुटियाँ परिस्थितियों के अचानक उपस्थित होने के कारण उत्पन्न होती हैं, जैसे किसी परीक्षार्थी के शरीर में एकाएक पीड़ा होने से परिणाम में अशुद्धता आ जाती है।
(ii) क्रमिक त्रुटियाँ (Biased errors ) — व्यक्तिगत पक्षपात तथा पूर्वाग्रहों के कारण परिणाम में शुद्धता नहीं रहती है।
(iii) व्यक्तिगत त्रुटियाँ (Personal errors) – व्यक्तिगत त्रुटियों का जन्म परीक्षा के विषयगत तत्वों (Subjective elements) के प्रभाव के कारण होता है। इसमें परीक्षक अपनी व्यक्तिगत विचारधाराओं से प्रभावित होता है। इसी कारण दो परीक्षकों के द्वारा किसी एक छात्र के विषय में दिये गये निर्णयों में प्रायः अन्तर होता है।
(iv) मानक त्रुटियाँ (Standard errors) – यह एक ऐसा मान है जो यह बताता है कि प्रतिवर्ष का मध्यमान मूलक जनसंख्या में वास्तविक मध्यमान से कितना कम या कितना अधिक है।
इन त्रुटियों का जन्म प्रायः परीक्षकों के दोषों के मापन के औजारों की कमियों तथा जिनका मापन होता है, इनमें एकरूपता के अभाव आदि के कारण होता है।
मापन के उपयोग या महत्व (Uses or Importance of Measurement)
वर्तमान वैज्ञानिक युग को कभी-कभी 'मापन का युग' (Age of Measurement) के नाम से सम्बोधित किया जाता है क्योंकि आज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र या भौतिक जीवन में जो प्रगति हुई है वह मापन क्रिया के विकास के कारण ही सम्भव हुई है। विज्ञान के क्षेत्र में भी मापन के महत्व को उल्लेखनीय दृष्टि से देखा जाता है। संक्षेप में मनोवैज्ञानिक मापन का महत्व उसके निम्नलिखित उपयोग या लाभ से स्पष्ट हो जाता है-
(1) मापन किसी भी वस्तु का आंशिक वर्णन बिल्कुल शुद्ध रूप से करता है। मनोवैज्ञानिक मापन इस बात को स्पष्ट इंगित करता है कि कोई बालक औसत बुद्धिलब्धि से कितना अधिक उच्च या निम्न है।
(2) मापन के द्वारा हम आसानी से परिणाम को दूसरों को संचारित (Communicate) कर सकते हैं क्योंकि इसमें आत्मनिष्ठ निर्णयों (Subjective judgement) को कोई स्थान नहीं दिया जाता है। उदाहरण के लिए हम यदि यह कहें कि एक छात्र की बुद्धि उसकी आयु समूह के छात्रों की बुद्धि से 99 प्रतिशत अधिक है तो इस निष्कर्ष को हम आसानी से अन्य व्यक्तियों के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं।
(3) मापन व्यक्ति के मूल्यांकन (Evaluation) में सहायक सिद्ध होता है। (4) यदि मानकीकृत मापकों द्वारा किसी व्यक्ति की व्यावहारिक विशेषताओं का मापन किया जाता है तो उसके परिणाम विश्वसनीय (Reliable) एवं वैध (Valid) हों।
(5) आत्मनिष्ठ मूल्यांकन की तुलना में मापन का प्रयोग अधिक मितव्ययी (Economical), सरल (Easy) तथा शुद्ध (Accurate) होता है अर्थात् आत्मनिष्ठ साधनों जैसे साक्षात्कार आदि के सापेक्ष मानसिक परीक्षण जैसे बुद्धि परीक्षण मितव्ययी, साफ तथा अधिक शुद्ध निष्कर्ष प्रदान करने वाले होते हैं।
मापन के आवश्यक तत्व व चरण (Essential Elements or Steps of Measurement)
मापन का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति की विशेषताओं को मात्रात्मक रूप में व्यक्त करना है। इसके लिए कुछ गुणों का चयन करना पड़ता है। इस प्रक्रिया के तीन आवश्यक तथ्य व चरण होते हैं-
(1) गुणों को पहचानना एवं परिभाषित करना (Identifying and Defining the Attributes)— मापन के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यक्तित्व के समस्त गुणों का मापन करने पर बल नहीं दिया जाता है। इसका सम्बन्ध केवल कुछ गुणों के मापन से ही रहता है। इसलिए प्रथम स्तर पर इन गुणों को पहचानना और उराकी परिभाषा करनी होती है जिनका मापन करना है। उदाहरण के लिए यदि बुद्धि का मापन करना है तो सर्वप्रथम हमें यह स्पष्ट करना होगा कि बुद्धि से हमारा क्या आशय है ? इस प्रकार मापन के प्रथम चरण में व्यक्ति के इस गुण को पहचानना पड़ता है तथा इसकी परिभाषा देनी पड़ती है जिसका मापन करना है।
(2) गुणों का मापन करने वाले औजारों को निश्चित करना (Determining the role of instruments by which attributes may be measured ) – इस स्तर पर जिस गुण का मापन करना है उसकी परिभाषा देने के पश्चात् उचित औजारों कोश्चित करना पड़ता है। उदाहरणार्थ यदि किसी बालक की सृजनशीलता के गुण का मापन करना है तो उन साधनों या औजारों का चयन करना पड़ेगा जिनसे इस गुण (सृजनशीलता) का मापन ठीक ढंग से हो सके।
(3) गुणों को संख्या में व्यक्त करना (To express attributes in quantity)— उचित एवं उपयोगी साधनों के प्रयोग से जिस परिणाम की प्राप्ति होती है उसको संख्या में व्यक्त किया जाता है। दूसरे शब्दों में किसी व्यक्ति के मापित गुणों को मात्रा एवं संख्या में व्यक्त किया जाता है।
मापन के मापदण्ड (Scale of Measurement)
वस्तुत: मापन का सम्बन्ध संख्या से होता है। व्यक्तियों एवं वस्तुओं के गुणों को संख्या में व्यक्त करने के लिए कुछ नियमों की सहायता ली जाती है। इन्हीं नियमों को मापन का मापदण्ड कहा जाता है। इसके स्वभाव को स्पष्ट करते हुए टकमैन (Tuckman) ने कहा है — "मापन का मापदण्ड नियमों का एक समूह है जिसके द्वारा किसी चर को संख्या में व्यक्त किया जाता है अथवा उसको किसी संख्या का अंक प्रदान किया जाता है।' सामान्यतया मापदण्ड चार प्रकार के होते हैं जो इस प्रकार हैं-
(1) शाब्दिक व वर्गात्मक स्तर (Nominal or Classificatory Level),
(2) क्रमसूचक या क्रमागत मापदण्ड (Ordinal Scales),
(3) अन्तरात्मक मापदण्ड (Interval Scales),
(4) आनुपातिक मापदण्ड (Ratio Scale),
(1) शाब्दिक व वर्गात्मक स्तर (Nominal or Classificatory Level) — संख्या प्रदान करने की सबसे सरल विधि यही है। इसमें हम अंकों या प्रतीकों का उपयोग केवल वर्गीकरण करने के लिए करते हैं, जैसे-फुटबाल के खिलाड़ियों की जर्सी पर नम्बर को प्रदान करना। इसके अन्तर्गत प्रयुक्त होने वाली संख्याओं को कभी जोड़ा या घटाया नहीं जाता है बल्कि केवल इनकी गणना की जाती है।
(2) क्रमसूचक या क्रमागत मापदण्ड (Ordinal Scales ) — इसमें किसी गुण के आधार पर लोगों का केवल वर्गीकरण ही नहीं किया जाता है बल्कि क्रम भी निर्धारित किया जाता है। अर्थात् लोगों को गुणों के आधार पर सर्वोत्तम से निम्नतम के क्रम में रखा जाता है। उदाहरण के लिए अगर 10 लड़कों की ऊँचाई का मापन किया जाये और सबसे ऊँचे लड़के को पहला क्रम दिया जाये, इसके बाद वाले ऊँचे लड़के को दूसरा क्रम दिया जाये और इसी क्रम से अन्य लड़कों का क्रम देते हुए सबसे कम ऊँचाई वाले का 10वाँ क्रम दिया जाये।
वर्गात्मक एवं क्रमसूचक मापदण्ड में मौलिक अन्तर यह है कि वर्गात्मक मापदण्ड में साम्य का सम्बन्ध रहता है, जबकि क्रमागत मापदण्ड में समानता तथा आपेक्षित रूप से बड़ा दोनों प्रकार का सम्बन्ध पाया जाता है। इस मापदण्ड का उदाहरण निम्नलिखित है-
अनुक्रम (Rank) : 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10
ऊँचाई (Height) : 6.4" 6.2" 5.8" 5.7" 5.6" 5.5" 5.4" 5.3" 5.2" 5.1"
उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि 6-4" की ऊँचाई को पहला क्रम दिया गया है। सबसे कम 5.1" को 10वाँ क्रम मिला है। यद्यपि इस मापदण्ड में क्रम रहता है परन्तु दो अनुस्थितियों के बीच में अन्तर बराबर नहीं रहता है-प्रथम अनुस्थिति और द्वितीय अनुस्थिति में जो अन्तर पाया जाता है वही अन्तर तृतीय या चतुर्थ में नहीं पाया जा सकता है।
(3) अन्तरात्मक मापदण्ड (Interval Scales)- जब निरीक्षण से प्राप्त संख्याएँ तथ्यों में वास्तविक अन्तर अथवा दूरी के बारे में सही सूचनाएँ प्रदान करती हैं तब इसे अन्तरात्मक मापदण्ड कहते हैं। इसमें दो संख्याओं के बीच की दूरी या अन्तर ज्ञात होता है। शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धि परीक्षण (Achievement tests), अभिरुचि परीक्षण (Aptitude tests), बुद्धि परीक्षण (Intelligence tests) आदि अन्तरात्मक मापदण्ड का प्रतिनिधित्व करते हैं। जब हम अंकों की बात करते हैं तब अन्तरात्मक मापदण्ड की उपस्थिति आवश्यक होती है। जब अंकों के समान अन्तराल की मान्यता होती है तब यह माना जाता है कि 30 और 40 अंकों में वह अन्तर होता है जो 60 अंकों में है। इन बातों के अलावा अन्तरात्मक मापदण्ड की प्रमुख विशेषता यह होती है कि इसके अंकों को जोड़ा या घटाया जा सकता है। उदाहरण के लिए किसी उपलब्धि परीक्षण में एक छात्र 90 अंक प्राप्त करता है और दूसरा उसी परीक्षण में 45 अंक प्राप्त करता है। पहला छात्र 45 अंक अधिक प्राप्त होता है। परन्तु यह नहीं कहा जा सकता है कि पहला छात्र दूसरे छात्र से दो गुनी जानकारी रखता है।
(4) आनुपातिक मापदण्ड (Ratio Scale)- सीगेल (Siegel) के शब्दों में, “जब किसी मापनी में अन्तरात्मक मापदण्ड के सभी गुण विद्यमान हों तथा इसके साथ ही इसमें आकार स्वरूप निरपेक्ष शून्य की भी मान्यता होती है। "
ऊँचाई, वजन तथा समय आदि आनुपातिक मापदण्ड की मुख्य तीन विशेषताएँ होती हैं—यथा (i) इसमें निरपेक्ष शून्य (Absolute zero), (ii) सम्पूर्ण मापनी की समान इकाइयाँ होती हैं तथा (iii) एक संख्या से दूसरी संख्या में भाग देकर दोनों के बीच व्याप्त अनुपात को ज्ञात किया जा सकता है। जैसे, एक किलोग्राम चीनी व दो किलोग्राम चीनी व शून्य किलोग्राम चीनी। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि दो किलोग्राम चीनी व एक किलोग्राम चीनी में 2: 1 का अनुपात है।
मानसिक मापन एवं भौतिक मापन में अन्तर (Difference between Mental Measurement and Physical Measurement)
मानसिक मापन का मुख्य रूप से सम्बन्ध मानसिक परिस्थितियों के अन्तर्गत किये गये मापन से होता है। दूसरे शब्दों में विद्यालय में, कक्षा में तथा सम्पूर्ण विद्यालयी वातावरण और उसमें सम्पन्न होने वाले विभिन्न क्रिया-कलापों के सन्दर्भ में बालक का मूल्यांकन किया जाता है। अतः शिक्षण अधिगम की परिस्थितियों के आधार पर छात्रों के व्यवहार में आने वाले परिवर्तन, उनका मापन तथा वर्गीकरण यही उद्देश्य प्रमुख रूप से होते हैं-मानसिक मापन के। भौतिक मापन वह है, जो हम अपने दैनिक जीवन में विभिन्न वस्तुओं की नाप- तौल से लेते हैं, जैसे—किसी वस्तु की लम्बाई, चौड़ाई, मात्रा इत्यादि। इन दोनों मापनों में मौलिक रूप से समानता पाई जाती है। दोनों में ही कुछ निश्चित सिद्धान्तों एवं नियमों के अनुसार, वस्तुओं को अंक प्रदान किये जाते हैं। इस सम्बन्ध के बावजूद भी दोनों में मौलिक विभिन्नताएँ हैं जिन्हें हम निम्न प्रकार से प्रस्तुत कर सकते हैं-
मानसिक मापन(Mental Measurement)
- मानसिक मापन एक सापेक्षिक मापन है अर्थात् यहाँ पर शैक्षिक गुणों या उपलब्धि आदि के लिए जो अंक निर्धारित किये जाते हैं वे सापेक्षिक महत्व रखते हैं।
- मानसिक मापन हेतु प्रयुक्त परीक्षणों के लिए कोई शून्य बिन्दु नहीं होता है।
- मानसिक मापन हेतु परीक्षणों का निर्माण अध्यापकों द्वारा कर लिया जाता है।
- मानसिक मापन विषयगत तथा बालक के सम्पूर्ण व्यवहार परिवर्तन के दृष्टिकोण से किया जाता है।
- मानसिक मापन अत्यधिक परिवर्तन- शील होते हैं।
- मानसिक मापन हेतु दक्ष एवं कुशल अध्ययनकर्ताओं की आवश्यकता होती है।
भौतिक मापन(Physical Measurement)
- जबकि भौतिक मापन निरपेक्ष मापन होता है अर्थात् यहाँ पर अंकों की स्थिति निर्धारित एवं शुद्ध होती है तथा वे उस वस्तु एवं गुणों को शुद्ध रूप में प्रकट करते हैं।
- जबकि भौतिक मापन में प्रयुक्त की जाने वाली समस्त मापों एवं इकाइयों में एक शून्य बिन्दु होता है।
- जबकि मापन की इकाइयाँ स्थिर तथा मानकीकृत होती हैं।
- जबकि भौतिक मापन में जिन पदार्थों का मापन किया जाता है उनकी सार्वभौमिक इकाइयाँ होती हैं।
- जबकि भौतिक मापन अपरिवर्तनीय होते हैं ।
- जबकि इन सभी गुणों का भौतिक मापन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
- जबकि यह व्यक्ति आसानी से कर सकता है इसके अतिरिक्त कुशलताओं की आवश्यकता नहीं होती है।
FAQ
निष्कर्स : शारीरिक शिक्षा में मापन एवं मूल्यांकन का महत्वपूर्ण अध्याय दिया गया है हमारा उद्देश्य है कि मापन एवं मूल्यांकन से संबंधित समस्त जानकारी अपने पाठकों तक सरल व आसान शब्दों में प्रदान करना है । आशा करते हैं कि हमारे द्वारा प्रदान की गई जानकारी आपको समझ में आई होगी । अगर आपको फिर भी कहीं कुछ समझने में कठिनाई हुई हो तो हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर सूचित करें । अगर आपको शारीरिक शिक्षा में मापन एवं मूल्यांकन से संबंधित और अधिक नोट्स चाहिए तो नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर सूचित करे। मापन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Measurement) लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद।