मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा - विधियां, कार्यक्षेत्र, महत्व, उद्देश्य, विशेषताएं (Meaning and Definition of Evaluation) - शारीरिक शिक्षा

इस लेख से जानेंगे शारीरिक शिक्षा में मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Evaluation) क्या है शैक्षणिक उद्देश्य क्या है छात्रों का मूल्यांकन क्षेत्र क्या है छात्रों पर कैसे मूल्यांकन करें इन सभी बिंदुओं पर विस्तार पूर्वक लेख में पढ़ेंगे।

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मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा(Meaning and Definition of Evaluation) 

शिक्षा के उद्देश्यों, शैक्षणिक अनुभव तथा मूल्यांकन में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। उद्देश्यों के आधार पर अनुभों की योजना बनाई जाती है और उद्देश्य प्राप्त हुए या नहीं, इसको जानने के लिए मूल्यांकन किया जाता है। अनुभवों की किसी भी स्थिति या स्तर या हम इस बात का मूल्यांकन कर सकते हैं कि किस सीमा तथा स्तर तक अनुभवों द्वारा अपेक्षित परिवर्तन हो रहा है।

परीक्षा की अपेक्षा मूल्यांकन अधिक व्यापक शब्द है। मूल्यांकन की छात्र की अध्ययन आदतों पर तथा शिक्षक की शिक्षा पद्धति पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।

मूल्यांकन का अर्थ (Meaning Evaluation)

मूल्यांकन का मापन से अधिक व्यापक अर्थ है और इसमें गुणात्मक तत्वों को भी संख्यात्मक पद्धति द्वारा व्यक्त किया जाता है। मूल्यांकन में परीक्षणों के नियम, सिद्धान्त, उनका निर्माण, मानकीकरण, प्रशासन तथा उनके द्वारा प्राप्त परिणामों की व्याख्या आदि सभी कुछ निहित माना जाता है।

मापन का अर्थ है— वस्तुओं, प्रदत्तों तथा गुणों का किसी उपयुक्त मापनी से तुलना करके संख्याओं में वर्णन, जिससे व्यक्ति को मात्राओं का ज्ञान हो सके। शिक्षा में इसका प्रयोग प्रायः उपलब्धि, बुद्धि, अभिवृत्ति, व्यक्तित्व आदि की वस्तुनिष्ठ परीक्षणों द्वारा जाँच करने के लिए किया जाता है।

मूल्यांकन का अर्थ पाठ्यक्रम में निहित उद्देश्यों और मूल्यों की ओर उन्मुख छात्रों में प्रगति और अभिवृद्धि की परख मूल्यांकन के अर्थ तथा इसके विशेष तत्वों को जानने के लिए इसकी विभिन्न परिभाषाएँ दी जा रही हैं। यद्यपि परिभाषाएँ विभिन्न हैं परन्तु वे मूल्यांकन के लक्ष्य तथा इसकी पद्धति से प्रायः एकमत हैं।

मूल्यांकन की परिभाषा (Meaning of Definition)

(1) मूल्यांकन में उन सब क्रियाओं की जाँच सम्मिलित की जाती है जिनका पढ़ाई से सम्बन्ध हो अथवा न हो। 

राइटस्टोन के अनुसार, "मूल्यांकन एक नया विचार है। इसका क्षेत्र प्रचलित शिक्षा तथा मापन से अधिक व्यापक है।"

(2) कलारा एम. ब्राउन (Clara M. Brown) द्वारा दी गई मूल्यांकन की परिभाषा एक अच्छी परिभाषा है। मूल्यांकन उद्देश्य निश्चित करने, उनके प्रति सफलता प्राप्त करने और नई परिस्थितियों में नये उद्देश्य निश्चित करने में बहुत आवश्यक है। मूल्यांकन का अर्थ शुद्ध दोषरहित जाँच करना है। 'मूल्यांकन' परीक्षा तथा 'मापन' की अपेक्षा अधिक व्यापक है। क्योंकि इसमें उद्देश्यों को ध्यान में रखकर प्राप्त प्रमाणों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं ।

(3) शेन (Shane) और मैकस्वेन (McSwain) के अनुसार, "मूल्यांकन एक ऐसी जाँच है जिसका मापदण्ड सामूहिक रूप से बनाया गया है तथा जिससे यह जाँचा जा सके कि छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन आए या नहीं।"

(4) वाइल्स (Wiles) ने मूल्यांकन की परिभाषा करते हुए कहा है कि "मूल्यांकन एक ऐसी प्रणाली है जिसमें जाँच के परिणाम की योजना का आधार बनाया जाता है। इसके द्वारा उद्देश्य निश्चित किये जाते हैं। इस बात के लिए प्रमाण एकत्र किये जाते हैं कि निश्चित किये गये उद्देश्य प्राप्त हुए अथवा नहीं। प्रमाण के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं और निष्कर्ष के आधार पर कार्य प्रणाली और उद्देश्यों में परिवर्तन किये जाते हैं। इसलिए यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें परिणाम, क्रिया और यहाँ तक कि उद्देश्यों को भी बदला जाता है।

(5) चैस्टर टी. मैकनरली (Chester T. McNernly) ने कहा कि "किसी भी मूल्यांकन कार्यक्रम का उद्देश्य परीक्षार्थियों की आवश्यकताओं की खोज इस प्रकार करना है कि आवश्यकताएँ निश्चित कर लेने पर यह निश्चित किया जाए कि वे कौन-कौन से अनुभव हैं जिनसे आवश्यकताएँ सन्तुष्ट की जा सकती हैं क्योंकि मूल्यांकन आवश्यकताओं को निश्चित करता है और साथ ही यह भी निश्चित करता है कि जिस व्यक्ति का मूल्यांकन किया जा रहा है उसका विकास कैसे हो रहा है ?" इसलिए मूल्यांकन एक महत्वपूर्ण और नाजुक क्रिया है, किसी एक साधन द्वारा उचित मूल्यांकन करना सम्भव नहीं है। इस कार्य को ठीक प्रकार से पूरा करने के लिए कई साधन प्रयोग करने होंगे।

(6) थॉमस एच. ब्रिग्स (Thomas H. Briggs) तथा जोसफ जस्टमैन (Joseph (Justman) लिखते हैं कि मूल्यांकन एक क्रिया है जिसके द्वारा किसी कार्य के महत्व को निश्चित किया जाता है। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन का अर्थ शिक्षा के उद्देश्य की समझ होनी चाहिए जिसे हम निरीक्षण द्वारा प्राप्त करना चाहते हैं। उन्होंने कहा-

1. यदि कक्षा में अध्यापन कार्य को सुधारना है तो मूल्यांकन का कार्य यह होगा कि वह निश्चित करे कि किस सीमा तक सुधार हुआ है।

2. यदि छात्रों को अधिक ज्ञान देना उद्देश्य है तो मूल्यांकन द्वारा यह जाँच की जाएगी कि नये कार्यक्रम के अनुसार क्या छात्रों को वास्तव में अधिक ज्ञान प्राप्त हुआ है।

3. यदि स्कूल के वातावरण को सुधारना है तो मूल्यांकन यह जाँच करेगा कि क्या वास्तव में स्कूल में आपसी सम्बन्धों में सुधार हुआ है।

4. यदि निरीक्षण का उद्देश्य यह है कि शिक्षा में छात्रों की अपनी आवश्यकताओं की ओर अधिक ध्यान दिया जाए, तो मूल्यांकन का कार्य यह निश्चित करना होगा कि खण्ड अध्ययन, व्यक्तिगत अध्यापन आदि से व्यक्तिगत आवश्यकताओं को कहाँ तक सन्तुष्ट किया जा सकता है। इस लेख मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Evaluation) में अभी तक आपने जाना अर्थ और परिभाषा के बारे में अब नीचे जाने छात्र के मूल्यांकन का कार्य एवं क्षेत्र क्या है।

छात्र के मूल्यांकन का उद्देश्य (Scope of Pupil Evaluation)

शिक्षा बालक के चहुँमुखी विकास या सर्वांगीण विकास की जिम्मेदारी लेती है, उसमें मूल्यांकन भी विस्तृत होना चाहिए। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने लिखा है, "आज स्कूल बच्चे के मानसिक विकास के साथ-साथ उसके शारीरिक, सामाजिक और भावात्मक विकास की ओर ध्यान देता है।" संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि आज की शिक्षा बच्चे के पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करती है। शिक्षा के इन उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए विस्तृत मूल्यांकन में निम्न तथ्यों को सम्मिलित होना चाहिए।

(1) मूल्यांकन द्वारा छात्रों की आवश्यकताओं और क्षमताओं का ज्ञान प्राप्त होता है।

(2) मूल्यांकन द्वारा छात्रों और अध्यापकों को योजना बनाने में सहायता मिलती है।

(3) मूल्यांकन छात्रों के व्यवहार में आने वाले परिवर्तनों का ज्ञान करता है। 

(4) मूल्यांकन द्वारा यह पता चलता है कि निर्दिष्ट उद्देश्य कहाँ तक प्राप्त हुआ।

(5) मूल्यांकन उन उद्देश्यों की जानकारी कराता है जिन्हें प्राप्त करना और जाँचनाकठिन है

(6) मूल्यांकन द्वारा अध्यापक को छात्रों के अध्ययन, विकास और उन्नति की जानकारी मिलती है।

(7) मूल्यांकन द्वारा अध्यापक की योग्यता और क्षमता की जाँच हो जाती है।

(8) मूल्यांकन द्वारा स्वयं उन्नति करने में भी सहायता मिलती है। 

(9) मूल्यांकन द्वारा मापदण्ड सुधारने में सहायता मिलती है।


छात्र मूल्यांकन की विधियाँ (Methods of Pupil Evaluation)

(1) रचनात्मक मूल्यांकन परीक्षण विधि (Formative Evaluation Test Method)— पाठ्यक्रम तथा मूल्यांकन के घनिष्ठ सम्बन्ध की चर्चा करते हुए स्करीवन (Scrivan) ने 1967 में फार्मेटिव मूल्यांकन का अर्थ इस प्रकार बताया है कि फार्मेटिव मूल्यांकन का कार्य पाठ्यक्रम में लगातार विकास करना है। इसमें सुधार लाना है। फार्मेटिव मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जो समय तथा स्थिति के अनुसार पाठ्यक्रम में परिवर्तन लातो रहती है। प्रत्येक इकाई के अन्त में परीक्षण किया जाता है। छात्रों की अपेक्षित प्राप्ति न होने पर निदान किया जाए और पुनः सुधारात्मक शिक्षण किया जाए और इसके बाद इकाई परीक्षण या रचनात्मक मूल्यांकन परीक्षण किया जाए। इस प्रकार के परीक्षण का मूल्यांकन रचनात्मक मानदण्ड परीक्षणों के समान होता है परन्तु इसकी रचना प्रत्येक इकाई के मापन के लिए की जाती है।

(2) संकलित मूल्यांकन विधि (Summative Evaluation Test Method) - स्करीवन के अनुसार संकलित मूल्यांकन का अर्थ पाठ्यक्रम के परिणाम का मूल्यांकन करना है। पाठ्यक्रम का निर्माण विशेष लक्ष्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है। ये लक्ष्य हैं- समाज का शिक्षा द्वारा विकास तथा छात्र की सर्वांगीण उन्नति । पाठ्यक्रम द्वारा निर्मित तथा प्रभावित छात्र के मूल्यांकन की प्रक्रिया संकलित मूल्यांकन कहलाती है। इससे शिक्षक तथा अनुदेशन को पुनर्बलन मिलता है और आगे के शिक्षण के नियोजन तथा व्यवस्था में सहायता मिलती है। छात्रों की सफलता के आधार पर उद्देश्यों की प्राप्ति का भी निर्णय लिया जाता है। जैसे-जैसे पाठ्यक्रम विस्तृत होता जाता है, उसी प्रकार मूल्यांकन भी विस्तृत होता है। एक समय था जबकि पाठ्यक्रम का अर्थ केवल कुछ विषयों के अध्ययन से ही लिया जाता था तथा मूल्यांकन भी केवल उन्हीं विषयों तक सीमित था। अब पाठ्यक्रम में शैक्षिक तथा गैर- शैक्षिक दोनों प्रकार के विषयों का महत्व बढ़ गया है। इसी प्रकार मूल्यांकन का क्षेत्र भी विस्तृत हो गया है। अतः स्पष्ट है कि रचनात्मक मूल्यांकन तथा संकलित मूल्यांकन एक- दूसरे के पूरक हैं।

मूल्यांकन के उपकरण तकनीक और पद्धति — बहुत समय से छात्रों का मूल्यांकन कागज-पेन्सिल द्वारा तैयार किया जाता रहा है, पर अब नयी पद्धति में इसमें परिवर्तन के लिए कदम उठाये जा रहे हैं। इसके लिए नई तकनीकी का प्रयोग आवश्यक है। नये उपकरणों और साधनों का प्रयोग करना होगा।

छात्रों की शैक्षिक योग्यता का मूल्यांकन करने के लिए उपलब्ध उपकरणों तथा तकनीकी में से उपयुक्त उपकरणों व तकनीकों का चयन किया जाना चाहिए। पर्यवेक्षण सूचियों, अंक के प्रतिमानों, साक्षात्कारों, मौखिक वार्तालापों, रुचिकर समान रुचियों, पूर्व वृत्तान्तों आदि के लिए उपयुक्त तकनीकें प्रयुक्त की जानी चाहिए। मूल्यांकन के लिए वस्तुतः सही उपकरण पद्धति का उपयोग ही हमारी आज की आवश्यकता है। यहाँ यह भी जरूरी है कि आन्तरिक और बाह्य दोनों परीक्षाओं को अनौपचारिक बनाया जाए। समय की माँग है कि मूल्यांकन के अधिक-से-अधिक अनौपचारिक साधनों को अपनाया जाए जिससे स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्रों की चिन्ता और डर कम हो सके। यहाँ यह भी आवश्यक है कि छात्रों के स्तर का मूल्यांकन करने के लिए लचीली पद्धति अपनाई जाए।

(3) मानदण्ड संदर्भित परीक्षण विधि अथवा कसौटी संदर्भित परीक्षण विधि (Criterion Reference Test Method, C. R. T.) – मापन के क्षेत्र में 1960 से नवीन शब्दावली का विकास हुआ जिसे मानदण्ड सम्बन्धित परीक्षण कहते हैं। शैक्षिक मापन में नवीन प्रकार के परीक्षणों का विकास हुआ जो परम्परागत निष्पादन परीक्षण से भिन्न प्रकार के परीक्षण माने जाते हैं। इन्हें उद्देश्य केन्द्रित परीक्षण भी कहते हैं।

मानदण्ड का सम्बन्ध छात्र की अपेक्षित उपलब्धि से है। इससे छात्र की स्थिति का मूल्यांकन एक स्पष्टीकृत व्यवहार के सन्दर्भ में किया जाता है। उदाहरण के तौर पर व्यवहार का अर्थ एक कौशल के अधिगम से है अर्थात् छात्र की गुणा करने की योग्यता से जैसे कि 8 x 4 को गुणा करना। प्रकरण का उचित चुनाव करना, उद्देश्यों का निष्पादन तथा विशिष्टी- करण, पाठ्यवस्तु का विश्लेषण तथा छात्रों के अन्तिम व्यवहारों के मूल्यांकन के लिए मानदण्ड परीक्षा का निर्माण किया जाता है। मानदण्ड परीक्षा से यह भी पता चलता है कि पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को किस सीमा तक प्राप्त किया जा सकता है ? अधिगम किस सीमा तक सफल व प्रभावशाली रहा है। इसमें अधिगमकर्ता की निष्पत्ति या उपलब्धि को व्यावहारिक शब्दावली में बताये गये निष्पादन मापदण्ड के अनुसार मूल्यांकित किया जाता है।

मानदण्ड परीक्षा में विषय-वस्तु के विशिष्ट उद्देश्यों को ध्यान में रखकर प्रश्न पूछे जाते हैं। अधिगमकर्ता के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए जिस अभिक्रम का निर्माण किया जाता है, उसे ही अन्तिम व्यवहार कहा जाता है। इस अन्तिम व्यवहार तक छात्र किस सीमा तक पहुँचा है ? इसी बात की वस्तुनिष्ठ जाँच मानदण्ड परीक्षा द्वारा की जाती है, इससे जाँच करने में विश्वसनीयता व वैधता रहती है। मानदण्ड परीक्षा के प्रश्न वस्तुनिष्ठ प्रकार के होते। हैं ।
(4) मानक संदर्भित परीक्षण विधि (Norms Reference Test Method) - परम्परागत ढंग से जो 'प्रमाणिक निष्पादन परीक्षा' तथा शिक्षक द्वारा निर्मित परीक्षण बनाये जाते हैं, उन्हें 'मानक सम्बन्धित परीक्षा' की संज्ञा दी जाने लगी है। इनका लक्ष्य पाठ्यक्रम सम्बन्धित उपलब्धियों का मापन किया जाना है और छात्रों की उपलब्धि के स्तर का मूल्यांकन समूह से स्तरीकरण (मानक) के रूप में किया जाता है। शिक्षण अधिगम के उद्देश्यों की प्राप्ति को महत्व नहीं दिया जाता। इन परीक्षणों की पाठ्य वैधता होती है। परीक्षण में सम्पूर्ण पाठ्यवस्तु पर प्रश्न सम्मिलित किये जाते हैं। परीक्षणों के उत्तरों को जानने पर छात्र को जो अंक दिये जाते हैं उनसे छात्र के स्तर या स्थिति का पता लगाया जाता है।

मानक परीक्षण की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि "परम्परागत परीक्षण में छात्र की उपलब्धि का मापन एक समूह, कक्षा, स्कूल अथवा राज्य के सन्दर्भ में किया जाता है। इसी आधार पर छात्र सम्बन्धी पास आदि के निर्णय लिये जाते हैं तथा उसके अंकों की तुलना की जाती है। "

उपर्युक्त दोनों प्रकार के परीक्षण की विशेषताओं में समानता भी है तथा एक-दूसरे से विशिष्ट रूप से भिन्न भी हैं। दोनों परीक्षणों का रूप समान होता है। वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के प्रारूप को ही दोनों प्रकार के परीक्षणों में प्रयुक्त किया जाता है। पाठ्यवस्तु दोनों परीक्षणों की एक ही होती है तथा अंकन प्रक्रिया भी समान होती है। इन समानताओं के अतिरिक्त दो परीक्षण एक-दूसरे से भिन्न होते हैं।

(5) निरन्तर तथा व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation ) — शिक्षा आयोग 1964-66 ने अनुभव किया कि अब यह मान लिया गया है। कि मूल्यांकन एक निरन्तर क्रिया है और शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग है। मूल्यांकन का सीधा सम्बन्ध शिक्षा के उद्देश्य से होता है। मूल्यांकन छात्रों के अध्ययन और अध्यापकों की शिक्षण प्रणाली को बहुत प्रभावित करता है। इस प्रकार मूल्यांकन केवल सफलता अथवा असफलता की जाँच ही नहीं करता बल्कि शिक्षा में सुधार लाने में भी सहायता देता है। मूल्यांकन द्वारा ऐसे प्रमाण एकत्रित किये जाते हैं ।

भारत में मूल्यांकन की प्रचलित और केवल एकमात्र प्रणाली लिखित परीक्षा है। स्वाभाविक रूप से नई मूल्यांकन प्रणाली तब ही स्वीकार की जा सकती है जब वह लिखित परीक्षाओं को इस प्रकार सुधार दे कि शैक्षिक सफलता की जाँच विश्वासपूर्ण और सरल हो जाए। छात्रों की कई प्रकार की उन्नति को लिखित परीक्षाओं द्वारा नहीं मापा जा सकता। अतः जाँच को पूर्ण और विश्वसनीय बनाने के लिए निरीक्षण, मौखिक और प्रयोगात्मक परीक्षा जैसे अन्य साधन प्रमाण एकत्र करने के लिए प्रयोग में लाये जाने लगे हैं। छात्रों की शैक्षिक उन्नति अथवा विकास की जाँच करने के लिए मूल्यांकन साधन को सुधारने और विश्वसनीय बनाने की आवश्यकता है। यदि परीक्षाएँ वास्तव में महत्वपूर्ण हैं तो उन्हें नई जानकारियों को ध्यान में रखना होगा और छात्रों को चौमुखी विकास की जाँच करनी होगी। सन् 1925 से पूर्व मूल्यांकन का प्रयोग नहीं किया जाता था, सन् 1940 से इसका विशेष प्रयोग आरम्भ हुआ है।

निष्कर्ष : आशा करते हैं कि मेरे द्वारा प्रदान की गई जानकारी मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा(Meaning and Definition of Evaluation) - शारीरिक शिक्षा आपको अच्छी लगी होगी अगर इस लेख से संबंधित आपके पास कुछ प्रश्न या सुझाव है तो कृपया नीचे कमेंट बॉक्स का प्रयोग कर सकते हैं लेख पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।


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