Sport medicine physiotherapy and rehabilitation B.P.ED 2nd year Examination Papers 2017 model (Principle of massage)

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मालिश के सिद्धांत (Principle of massage)

आजकल चिकित्सीय उपचार में मालिश एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है मालिश के उपयोग से संतोषप्रद परिणाम प्राप्त करने के लिए मालिश करने वाले को उसके सिद्धांतों के बारे में समझ लेना चाहिए तथा मालिश के प्रभावों का भी ज्ञान होना अति आवश्यक है।
मालिश के सिद्धांत इस प्रकार हैं।
1.मालिश करने की समय अवधि उपचार्य क्षेत्र के अनुसार परिवर्तनीय होगा।
2.मालिश केवल रूबी अथवा जख्मी क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहेगा। (शरीर का प्रभावी भाग)
3.समस्त गतियों का अंतराल निश्चित किया जाना चाहिए।
4.मालिश की गति लयात्मक धीमी तथा हल्की होनी चाहिए।
5.मरीज के आकार तथा आयु के अनुरूप मालिश करना चाहिए छोटे आकार के व्यक्ति को उसको की कम मात्रा को मालिश के द्वारा व्यवस्थित किया जाता है इसमें कम समय लगता है जबकि बड़े आकार के व्यक्ति में उससे अधिक समय लगता है।
6.जैसे कि अपचारी ऊतक की अवस्था बदल जाती है अतः यह आवश्यक है मालिश के अंतराल में भी बदलाव किया जाए 7.क्योंकि मालिश का अर्थ अंतिम साधन।
8.व्याधिशास्त्र शास्त्र के अनुसार मालिश का अंतराल भी योगी की आयु तथा क्षेत्र प्रवर्तनीय है गतिकी तेजी की दर लक्षणों तथा चिन्हों के ऊपर निर्भर है।
9.ऊतक की पैथोलॉजी पर मालिश की गति तथा प्रकार निर्भर करेगी।
10.उपचार करने वाले को मालिश का वैज्ञानिक ज्ञान होना चाहिए था उसे चाहिए कि फिजियोलॉजिक प्रभावों का उपचार पर सावधानी पूर्वक अवलोकन करें।
मालिश के प्रभाव (Effects of massage)
मालिश के प्रभाव को विभिन्न प्रकार से वर्णित तथा वर्गीकृत किया गया है। ये प्रभाव शारीरिक फिजियोलॉजिकल तथा मनोवैज्ञानिक हो सकते हैं विशुद्ध शारीरिक प्रभाव का प्रदर्शन ऊपरी नसों के रोकने तथा सीधे ऊपर दबाव लगाने के द्वारा किया जा सकता है इसके द्वारा सीधे ही दबाव द्वारा ठोकी गई नसों वाले भाग से रक्त को हटाए जाने का प्रदर्शन किया जा सकता है।
त्वचा पर मालिश का प्रभाव (Effects of massage on skin)
1.मालिश से त्वचा का तापक्रम 2°C सेंटीग्रेड से 3°C सेंटीग्रेड तक बढ़ जाता है।
2. मालिश से एपिडर्मिस की बाहरी परत पर सीधा असर पैदा होता है।
3 रक्त संचार के सुधार होने से तथा साइबेसियस एवं पसीने की ग्रंथियों के मुहानो के खुलने से इन ग्रंथियों के कार्य करने में सुधार पैदा हो सकता है।
4. महिलाओं की त्वचा का तापमान पुरुषों की अपेक्षा अधिक बढ़ जाता है।
5. कुछ सप्ताहों तक त्वचा के एक खास हिस्से पर मालिश करने से त्वचा की बनावट तथा दिखा वोट में सुधार को अंकित किया जा सकता है।
6. उत्तम सौंदर्य परिणामों को प्राप्त करने के लिए मालिश का प्रयोग  करना चाहिए।
7. मालिश त्वचा के छिद्रों को खोलकर उसे नरम बनाती है।
मालिश का रक्त संचार पर प्रभाव (Effect of massage on circulation of blood)
1. मालिश रमणीय संचरण को सहायता प्रदान करती है।
2. हृदय की धड़कन की दर (स्ट्रोक) का आयतन भी बढ़ जाता है।
3. सभी सूचना नलिका ए प्रदर्शनी हो जाती हैं क्योंकि उनमें से रक्त संचरण निर्मित होने लगता है।
4. माली से रुधिर संचार में वृद्धि होती है।
5. रक्त के प्रवाह की दर के बढ़ने और अधिक सूक्ष्म मलिकाएं खुल जाती हैं।
6. मालिश उद्योगो के पोषण को बढ़ाता है तथा थक आने वाले उपद्रवो को हटाता है।
7. गहरी मालिश रक्त संचार बढ़ा कर सिस्टोलिक स्ट्रोक के आयतन को बढ़ाता है।
8. हृदय की दर भी बढ़ जाती है।
9. मालिश के बाद लाल रुधिर कणिकाएं संख्या में बढ़ जाती हैं।
10.उदरिय मालिश हिमोग्लोबिन तथा रक्त संचार के लाल कणों को बढ़ाती हैं।
तंत्रिका तंत्र पर मालिश का प्रभाव (effects of of massage on nervous system)
1. मालिश से तंत्रिका पर अपने आप थोड़ा असर पैदा हो जाता है।
2. उपचार के प्रारंभ में ताकत से की गई मालिश के कारण पैदा हुआ दर्द मालिश के निरंतर धीरे धीरे करते रहने से वह दर्द कम हो जाता है।
3. मालिश से खास प्रकार के दर्द दूर हो जाते हैं।
4.मालिश तंत्रिका तंत्र को एक संवेदी तंत्रिकाओं को भी प्रभावित करती है।
5. मालिश रक्त संचार के रिफ्लेक्स नियंत्रण को भी प्रभावित करती है।
पेशियों की मालिश के प्रभाव (Effects of massage on muscles)
1. मालिश से पेशीय संरचना के आकार में वास्तविक वृद्धि होती है।
2. पेशियां पक्की तथा अधिक लचीली हो जाती हैं।
3. मालिश से पेशियों के पोषण में सुधार होकर उसके विकास को बढ़ावा मिलता है।
4. मालिश से पेशियां मजबूती से पैदा होने लगती है।
5. मालिश से पेशियां बलवान होते हैं।
6. मालिश से पेशियां अधिक व्यायाम करने योग्य बनती हैं।
7. मालिश करने से थकी हुई पेशियों को पुनः अधिक काम के लायक बनाया जा सकता है इसके बजाय उतने ही समय तक विश्राम करने के।
8. मालिश से पेशियों में फैलाव आता है।
9. मालिश से पेशियों में तन्मयता बढ़ती है।
प्रेशर थेरेपी (दबावोपचार) Pressure Therapy
दबाव उपचार में शरीर के विशिष्ट क्षेत्र में दबाव डाला जाता है विशेष क्षेत्र विशिष्ट क्षेत्र की पहचान प्रत्येक व्यक्तियों में भिन्न-भन्न हो सकती है क्योंकि यह अस्थान छूने में बहुत संवेदनशील होते हैं। इन बिंदुओं अथवा नलिका हो के उर्जा खंडों को मुक्त करने के लिए दबाव डाला जाता है बिंदु को उत्तेजित करक रक्त संचार को सुधारा जाता है तथा ऊर्जा संतुलन को बनाए रखकर सामान्य स्वास्थ्य को व्यवस्थित किया जाता है। स्थिर ऊर्ध्वाधर दबाव का अर्थ है 90 अंश का कोण पर बिना गति के दबाव इसको सही ढंग से करने के लिए अंगूठे को लगाना चाहिए तथा हथेली कोहनी तथा पैरों की एडियो के द्वारा भी प्रयोग किया जा सकता है जब अंगूठे से दबाव लगाया जाए तो अंगूठे की गेंद से हल्का तथा उसके पैरों से सख्त दबाव लगाया जाता है। दबाव को आहिस्ता-आहिस्ता से लगाना चाहिए और बिंदु को तब तक पकड़े रहना चाहिए जब तक कि उद्दीपन का अनुभव न हो यदि कोई अनुभव नहीं हो रहा है तो उनकी डिग्री बदलिए जब आए परिवर्तन का अनुभव करे तो पकड़ को कम करते हुए अगले बिंदु पर चले जाएं यह प्रयास नहीं होना चाहिए। मांस पेशियों की बजाय जहां संभव हो अपने शरीर के भार का उपयोग करें प्रभावी बिंदु को धकेलने की बजाए लीन करें। ऐसा करने से क्या लाभ प्राप्त होता है नलिका घाव में रक्त के जमाव को साफ करने में मदद कर सिर दर्द में आराम मिलता है, यह रक्त संचार को सुधार कर शरीर के तनाव को हटाता है।, यह सर्दी अन्य लक्षणों का पता था अस्थमा आदि को दूर कर आराम दिलाता है।, यह मासिक स्राव की परेशानी को कम करता है।, यह अंदरूनी अंग प्रणालियों तथा अच्छे स्वास्थ्य को बनाता है।

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