थार्नडाइक का सिद्धांत (Thorndike Laws of Learning) प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत

प्रिय पाठकों इस लेख में आपको थार्नडाइक का सिद्धांत के विषय में विस्तारपूर्वक बताया गया है जैसे कि थार्नडाइक का सिद्धांत (Thorndike Laws of Learning) में  थार्नडाइक के सीखने के नियम , प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत, उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धांत और अंत में बिल्ली के ऊपर प्रयोग के बारे में बताया गया है।

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प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत(Theory of try and error)

थार्नडाइक का उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्धांत अधिगम के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण है थार्नडाइक की मानता थी कि प्रत्येक अनुक्रिया के पीछे किसी ना किसी उद्दीपन का हाथ होता है। सीखने की परिस्थिति में अनेक तत्व होते हैं उनमें से एक तत्व या अनेक तत्व मिलकर उत्तेजक का कार्य करते हैं। यह उत्तेजक या उद्दीपन प्राणी पर अपना प्रभाव डालते हैं जिसके परिणाम स्वरूप प्राणी एक विशेष प्रकार की अनुकया अनुक्रिया करता है। इस प्रकार एक उद्दीपक एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया से संबंध स्थापित हो जाता है। इसी संबंध को उद्दीपन अनुक्रिया के द्वारा प्रकट किया जाता है यह संबंध इतना प्रबल होता है की भविष्य में जब भी इस उद्दीपन के पुनरावृत्ति होती है तो प्राणी इस उद्दीपन से संबंधित अनुक्रिया करने लगता है।

 इन संबंधों या संयोग के रूप इतना मजबूत हो जाता है कि Thorndike के इनके लिए बंध(Connection) शब्द का प्रयोग किया गया है और इसलिए यह सिद्धांतों को 'बंध सिद्धांत' (Connentctionism) भी कहा जाता है। कुछ लोग लोगों ने इस सिद्धांतों को कुछ अन्य नाम भी दिए हैं जैसे संबंधवाद, हर्ष-दुख सिद्धांत(Pleasurepain Principle), प्रयास एवं त्रुटि सिद्धांत(Trial and error Principle) आदि।
सीखने के सबसे महत्वपूर्ण स्वरूप को थार्नडाइक प्रयत्न एवं भूल द्वारा अधिगम बताया प्राणी किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए काफी प्रेरित करता है तथा इस प्रकार यह बार-बार गलतियां करता है तथा समय भी काफी लगता है बार-बार प्रयास करने पर वह सफल और लाभप्रद कयाओं को अपना का चलता है तथा असफल एवं व्यर्थ की क्रियाओं को छोड़ता चलता है अंत में एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि प्राणी के हर बार के प्रयास के साथ उसकी त्रुटियों की संख्या भी कम होती चली जाती है और अंततः वाह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में कम समय में ही सफलता प्राप्त कर लेता है।

थार्नडाइक के सीखने के नियम/Laws of Learning

थार्नडाइक का उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धांत(Priming-Activation Principle) 


थर्नडाइक (Therapeutic) का उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धांत (Priming-Activation Principle) एक मानसिक स्वास्थ्य और उपचारिका सिद्धांत है जो कहता है कि हमारे मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को सकारात्मक ढंग से प्रभावित किया जा सकता है ताकि उन्हें आगामी कार्यों के लिए सुविधाजनक ढंग से तैयार किया जा सके।

इस सिद्धांत के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य के चरम दशाओं में एक उद्दीपन प्रदान करने द्वारा हम अपने व्यक्तिगत और सामाजिक अनुभवों को सकारात्मक ढंग से प्रभावित कर सकते हैं। इसका अर्थ है कि हम एक विशिष्ट प्रेरणा, जागरूकता या अनुक्रिया के माध्यम से अपने मन को एक विशेष स्थिति, विचार या कार्य के लिए तैयार कर सकते हैं।

उदाहरण के रूप में, अगर आप एक व्यक्ति को एक सकारात्मक और सहानुभूतिपूर्ण वातावरण में प्रकट होने के लिए प्रेरित करते हैं, तो वह अपनी सोच, भावनाएं और कार्यों को उस वातावरण के अनुरूप आदर्श बना सकता है। इसका परिणामस्वरूप, उसकी व्यवहारिक प्रतिक्रियाएं सकारात्मक होती हैं और वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयासरत बनता है।

थर्नडाइक का उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धांत विभिन्न चिकित्सा, मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों में उपयोग होता है। इसे अक्सर मानसिक रोगों, उत्साह, स्थूलता, प्रतिस्पर्धा और सामाजिक प्रतिक्रियाओं के बारे में अध्ययन करते समय उपयोग किया जाता है। व्यक्ति को उद्दीपन के माध्यम से नई सोच, विचार, भावनाएं और प्रवृत्तियों की ओर प्रवृत्त करने का प्रयास किया जाता है ताकि उसका व्यवहार सकारात्मक और उपयुक्त हो सके।

थार्नडाइक के सीखने के नियम( Laws of Learning)

थार्नडाइक ने अपने प्रयोग के आधार पर कुछ सीखने के नियम का प्रतिपादन किया है जिन्हें दो वर्गों में बांटा गया है (मुख नियम) तथा (गौण नियम) । मुख्य नियम के अंतर्गत तीन नियम हैं तथा गौण नियम के अंतर्गत पांच हैं इस प्रकार थार्नडाइक ने सीखने के आठ नियम बताए हैंं।

थार्नडाइक का मुख्य नियम (Primary Laws )

1.तत्परता का नियम (Law of Readiness)

2.अभ्यास का नियम (Law of Exercise)

3.प्रभाव का नियम (Law of Effect )

तत्परता का नियम (Law of Readiness) 

सीखने के इस नियम का अभिप्राय है कि जब प्राणी किसी कार्य को करने के लिए तैयार रहता है तो उसमे उसे आनंद आता है और वह उसे शीघ्र सीख लेता है तथा जिस कार्य के लिए वह तैयार नहीं होगा और उस कार्य को करने के लिए बाध्य किया जाता है तो वह झूझला जाता है। और उसे शीघ्र सीख भी नहीं पाता तत्परता के कार्य करने की इच्छा निहित होती है इच्छा ना होने पर प्राणी डर के मारे पढ़ने अवश्य बैठ जाएगा लेकिन वह कुछ सीख नहीं पाएगा तत्परता ही बालक के ध्यान को केंद्रित करने के लिए सहायक होती है वास्तव में तत्परता के नियम का तात्पर्य यह है कि जब प्राणी अपने को किसी कार्य को करने या सीखने के लिए तैयार समझता है तो वह बहुत शीघ्र कार्य करता है या सीख लेता है और उसे अधिक मात्रा में संतोष भी मिलता है सीखने को तैयार ना होने पर उसे उस क्रिया में असंतोष मिलता है।

अभ्यास का नियम (Law of Exercise) 

इस नियम के अनुसार किसी क्रिया को बार-बार करने या दोहराने से वह याद हो जाती है और छोड़ देने पर या ना दोहराने से वह भूल जाती है इस प्रकार यह नियम प्रयोग करने तथा प्रयोग न करने पर आधारित है। 

उदाहरणार्थ - "कविता और पहाड़े याद करने के लिए उन्हें बार-बार दोहराना पड़ता है तथा अभ्यास के साथ-साथ उपयोग में भी लाना पड़ता है ऐसा ना करने पर सीखा हुआ कार्य भूलने लगता है"। 

दूसरा उदाहरण - याद की गई कविता को कभी ना सुनाया जाए तो वह धीरे-धीरे बोलने लगती है यही बात साइकिल चलाना टाइप करना संगीत आदमी भी लागू होता है।

'अभ्यास के नियम' के अंतर्गत (दो) और उप - नियम आते हैं।

1.उपयोग का नियम ( Law of Use )

2.अनुपयोग का नियम (Law of Dis-use )

प्रभाव का नियम (Law of Effect )

थार्नडाइक का यह नियम सीखने और अध्यापन का आधारभूत नियम है। इस नियम को संतोष असंतोष का नियम भी कहते हैं। इसके अनुसार जिस कार्य को करने से प्राणी को हितकर परिणाम प्राप्त होता है और जिसमें सुख और संतोष प्राप्त होता है उसी को वेद और आत है।

जिस कार्य को करने से कष्ट होता है और दुख फल प्राप्त होता है, उसे व्यक्ति नहीं दोहराता है इस प्रकार व्यक्त उसी कार्य को सीखता है जिसमें उसे लाभ मिलता है तथा संतोष प्राप्त होता है संक्षेप में इस कार्य के करने से पुरस्कार मिलता है उसे सीखते हैं और जिस कार्य के करने से दंड मिलता है उसे नहीं सीखा जाता।

गौड़ नियम (Secondary)

1.बहु प्रतिक्रिया का नियम (Law of Multiple Response)

2.मानसिक स्थिति का नियम (Law of Mental Set)

3.आंशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity)

4.सामान्यता का नियम (Law of Assimilation)

5.साहचर्य परिवर्तन का नियम (Law of Associative Shifting)

बहु प्रतिक्रिया का नियम(Law of Multiple Response)

इस नियम के अनुसार व्यक्ति के सामने जब नवीन समस्या आती है, तो वह उसे समझाने के लिए विविध प्रकार की क्रियाएं करता है। और 'तब' तक करता रहता है, जब तक कि वह सही(right) 'अनुक्रिया' की खोज(search) नहीं कर लेता । ऐसा होने पर उसकी समस्या सुलझ जाती है और उसे संतोष मिलता है असफल होने पर व्यक्ति को हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठना चाहिए बल्कि एक के बाद एक उपाय पर अमल करते रहना चाहिए जब तक कि सफलता प्राप्त ना हो जाए यह नियम प्रयत्न एवं भल पर आधारित है।

मानसिक स्थिति का नियम (Law of Mental Set)

इस नियम को तत्परता का अभिवृत्ति का नियम भी कहते हैं यह नियम इस बात पर बल देता है कि बाय स्थित की और प्रतिक्रियाएं व्यक्त की मनोवृत्ति पर निर्भर करती हैं अर्थात यदि व्यक्ति मानसिक रूप से सीखने के लिए तैयार है तो नवीन क्रिया को आसानी से सीख लेगा और यदि वह 'मानसिक' रूप से सीखने के लिए तैयार(Redy) नहीं है तो उस कार्य (Work)को नहीं सीख सकेगा।

आंशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity)

यह नियम इस बात पर बल देता है कि कोई एक प्रतिक्रिया संपूर्ण स्थित के प्रति नहीं होती है यह केवल संपूर्ण स्थिति के कुछ कछु अथवा आंसुओं के प्रति होती है जब यह किसी स्थित का एक ही अंश दोहराते हैं तो प्रतिक्रिया हो जाती है इस नियम में इस प्रकार अंश और पूर्व की ओर शिक्षण सत्र का अनुसरण किया जाता है।

सामान्यता का नियम (Law of Assimilation)

 इस नियम का आधार पूर्व ज्ञान या पूर्व अनुभव है किसी नवीन परिस्थिति या समस्या के उपस्थित होने पर व्यक्ति उससे मिलती-जुलती अन्य परिस्थिति या समस्या का स्मरण करता है जिसे वह पहले भी गुजर चुका है और ऐसी स्थिति में व्यक्ति नवीन परिस्थिति में वैसे ही अनुकया करता है जैसे उसने पुरानी परिचित में की थी।

साहचर्य परिवर्तन का नियम (Law of Associative Shifting) 

जैसे कि इस नियम के नाम से ही स्पष्ट है इसमें सीखने की अनुप्रिया का स्थान परिवर्तन होता रहता है यह स्थान परिवर्तन मूल उद्दीपक से जुड़ी हुई अथवा उसकी किसी सहचारी उद्दीपक वस्तु के प्रति किया जाता है।

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थार्नडाइक का प्रयोग (Tharndaik's experiment)



अपने इस सिद्धांत की पुष्टि के लिए थार्नडाइक ने बिल्लियों के ऊपर कई प्रयोग किए। इस प्रयोग में उसने एक भूखी बिल्ली को एक जालीदार उलझन बॉक्स में बंद कर दिया। इस पिंजरे का दरवाजा इस प्रकार लगाया गया था कि उसकी छेड़खानी दबने पर दरवाजा खुल जाता था इस पिंजड़े के बाहर मछली का टुकड़ा एक प्लेट में रख दिया गया। यह मछली का टुकड़ा पिछड़े की जाली में से बिल्ली को दिखाई देता था बिल्ली के लिए यह मछली का टुकड़ा एक उद्दीपक था इस उद्दीपक को देखकर भूखी बिल्ली उस टुकड़े को देख कर व्याकुल हो गई और उसने उसे खाने के लिए बाहर निकलने की प्रक्रिया आरंभ कर दी।

अनुक्रिया करता R-- बिल्ली
उद्दीपक S-- मृता मछली
थार्नडाइक --अमेरिकी वैज्ञानिक
थार्नडाइक-- पशु मनोवैज्ञानिक
इन्हें प्रथम --शैक्षिक मनोवैज्ञानिक कहा जाता है।

निष्कर्ष : आशा करते हैं कि मेरे द्वारा थार्नडाइक का सिद्धांत (Thorndike Laws of Learningजानकारी दी गई आपको पसंद आई होगी अगर फिर भी आपको इस लेख हमें कुछ समझ में नहीं आया है तो तो नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर पूछ सकते हैं।

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