Kho-Kho Ground Measurement in Hindi (खो खो मैदान माप) Rules,Awards,Court,Kho kho federation of india

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  खो-खो खेल का इतिहास (Kho-kho Khel  ka history)

Kho-kho शब्द का उद्गम महाराष्ट्र राज्य से हुआ है यह मूलतः एक भारतीय खेल है इस खेल की शुरुआत पुणे (महाराष्ट्र) से हुई इस खेल का वर्णन धर्म शास्त्र में है। जिसमें लिखा हुआ है कि श्री कृष्ण इस प्रकार का खेल अपने मित्रों के साथ खेलते थे।
दो शब्द संस्कृत में श्यू (Syu) से लिया गया है इसका अर्थ खड़े हो और जाओ है।

जब भी हम तेज खेलों की बात करते हैं खो-खो खो का खेल ही हमारे दिमाग में आता है जो एक साधारण सा खेल है जो कि बिना किसी उपकरण के खेला जाता है जिसमें ना केवल एक स्वस्थ शरीर ही नहीं बल्कि स्वस्थ मस्तिष्क का भी विकास होता है।
महाराष्ट्र में यह खेल अति प्रसिद्ध है इस खेल की प्रसिद्धि एवं विकास का संबंध महाराष्ट्र राज्य के अखाड़ों का व्यायाम सालों के विकास से है बड़ोद के हनुमान व्यायाम प्रचारक मंडल (H.Y.P.M) ने इस खेल का आधुनिक स्वरूप किया इसके सामान्य नियमों की स्थापना अखिल महाराष्ट्र शारीरिक शिक्षा मंडल और पूना के जिमखाना क्लब द्वारा 1914 में की गई थी।

अखिल महाराष्ट्र शारीरिक शिक्षा मंडल 1928 ई. में बना था इसी ने इस खेल को विकसित करने में पूरा योगदान दिया वरना सो 36 में बर्लिन ओलंपिक खेलों में खो-खो की एक टीम पूना के हनुमान व्यायाम प्रचार मंडल से प्रदर्शन करने गई थी।

खो-खो फेडरेशन ऑफ इंडिया (K.K.F.I) की स्थापना 1955 में हुई जिसको राष्ट्रीय स्तर पर पात्रता इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के कुछ समय पश्चात भारत में खो खो खेल की पुरुष राष्ट्रीय चैंपियन 1960 में विजयवाड़ा में आयोजित की गई और महिलाओं की राष्ट्रीय चैंपियनशिप 1916 में कोल्हापुर में आयोजित की गई थी। 1982 में एशियाई खेल नई दिल्ली में इस खेल को प्रथम बार प्रदर्शन मैच के रूप में शामिल किया गया और आज तक यह खेल एशियाड में शामिल नहीं किया जा सका है इसी प्रकार 1987 के सैफ खेलों में इसको प्रदर्शन मैच के रूप में शामिल किया गया था यह खेल नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान आदि तथा अन्य देशों में खेला जाने लगा है। 

Kho-kho की महत्वपूर्ण जानकारी।(kho kho federation of india)

Asian kho-kho federation (AKKF) का गठन 1987 में 3rd SAF Games की दौरान कोलकाता में किया गया। पहेली Asian kho-kho championship 1916 में खेली गई थी।
कोलकाता में खेली गई जिसमें 5 देशों ने भाग भाग लिया भारत बांग्लादेश पाकिस्तान श्रीलंका तथा नेपाल। दूसरी Asian kho-kho championship ढाका में आयोजित की गई जिसमें 5 देशों के अलावा Thailand तथा Japan ने भी भाग लिया।
खो-खो खेल का जन्मदाता भारत पुणे महाराष्ट्र को माना जाता है। भारतीय खो-खो संघ (Kho-kho federation of India) की स्थापना 1955 (KKFI) Kho kho federation of India में हुई थी। इसका मुख्यालय नई दिल्ली है। वर्तमान समय में इसके अध्यक्ष MR. Sudhanshu Mittal हैं।
प्रथम अर्जुन अवार्ड प्राप्त करने वाले खिलाड़ी सुधीर भास्करराव परव 1970 में विजेता बने।
प्रथम द्रोणाचार्य अवार्ड विजेता गोपाल पुरुषोत्तम फड़के 2000 में बने।
1914 ई. पोल के स्थान पर दो खिलाड़ी खड़े किए जाते थे। 1971 ई. में NSNIS पटियाला के ओरिवंटड कोर्स शुरू किया गया।
खो-खो खेल में वीर अभिमन्यु पुरस्कार 18 वर्ष से कम आयु के लड़कों को दिया जाता है। जानकी पुरस्कार 16 वर्ष से कम आयु की लड़कियों को दिया जाता है।
एकलव्य पुरस्कार पुरुषों के लिए होता है तथा रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार महिलाओं के लिए होता है।

खो-खो का मैदान Field of Kho-kho

खो-खो का मैदान Field of Kho-kho


खो-खो का मैदान आयताकार होता है इसकी लंबाई 111 फुट तथा 51 होती है। इसमें लकड़ी के 2 खंभे होते हैं यह दोनों खंभे 4 फुट ऊंचे होते हैं प्रत्येक खंभे का घेरा 23 इंच से 16 इंच तक होता है समस्त मैदान का परिमाप इस प्रकार होता है।

Kho-Kho Ground Measurement (खो खो खेल मैदान)

  • 1. खो-खो का क्रीड़ा क्षेत्र (ABCD) 29 मीटर X 16 मीटर होता है।
  • 2. फ्री जोन ABEF और CDHG 16 X 2.75 मीटर दोनों ओर होता है।
  • 3. स्तंभ अथवा पोस्ट EF एवम GH के मध्य 1.20 से 1.25 मीटर ऊंची होती है।
  • 4. पोल का व्यास 9 से 10 सेंटीमीटर होता है।
  • 5. केंद्रीय गली अथवा लेन 23.50 मीटर X 30 सेंटीमीटर होता है।
  • 6. क्रासलेन की माप 16 मीटर लंबी तथा 30 सेंटीमीटर चौड़ी होती है।
  • 7. सिटिंग ब्लॉक स्वायर्स मध्य रेखा पर 30 X 30 सेंटीमीटर की होती है।
  • 8. रेखाओं की मोटाई कम से कम 3 सेंटीमीटर की होती है।
  • 9. लाबी ABCD क्षेत्र के बाहर चारों ओर 1.5 मीटर चौड़ी लाबी होती है।
  • 10. अन्य माप के लिए।
खो-खो की पोशाक (Dress of kho kho) खिलाड़ियों की पोशाक इस प्रकार की होनी चाहिए जो शरीर से चिपकी हुई हो ढीली होने पर इसके स्पर्श करने का खतरा होता है क्योंकि खेल के समय शरीर का भाग माना जाता है।

खिलाड़ियों की संख्या एवं समय अवधि (Number of players and time period)

खिलाड़ियों की संख्या एवं समयावधि निम्नलिखित है।
1. खिलाड़ियों की संख्या 12 से 15 होती है।
2. खेल में भाग लेने वाले खिलाड़ियों की संख्या 9 होती है।
3. खेल में पारियों की संख्या 2 होती है।
4. खेल में प्रत्येक पारी का समय 9 मिनट का होता है।
5. प्रत्येक पारी के मध्यांतराल 9 मिनट का होता है।

खो-खो के प्रमुख तथ्य (Main factors of Kho kho)

  1. चेसर (Chaser) यह स्वायर्स में बैठते हैं तथा खिलाड़ी का पीछा करते हैं।
  2. अटेकर (Attacker) यह भागते हुए खिलाड़ियों को आउट करते हैं।
  3. रनर (Runner) यह ऐसे धावक होते हैं जो क्षेत्र में दौड़ते हैं तथा सामने एवं अटेकर से अपने को छूने से बचाते हैं।
  4. डिफेंडर (Defender) यह रनर साइडर के वा खिलाड़ी होते हैं जो अपनी दौड़ की प्रतीक्षा करते हैं।
  5. खो देना (kho given) अटैक द्वारा अपनी टीम के अन्य खिलाड़ी जो सामने वाले के रूप में बैठते हैं, को खोल दी जाती है।
  6. दिशा ग्रहण करना ( Direction Receiving) खो मिलने के बाद खिलाड़ी का पीछा दिशा ग्रहण करने के बाद ही किया जाता है। 
  7. फ्री जोन (Free Zone) अटैक फ्री जोन में स्वतंत्र रूप से किसी भी दिशा में दौड़ सकता है।
  8. सीमा से बाहर ( Out of Feld) जब रनर खिलाड़ी के पैर का संपर्क खेल क्षेत्र से टूट जाता है तो उसे सीमा रेखा से बाहर माना जाता है।

खेल से संबंधित अन्य नियम (Other rule connected with the game)

खेल से संबंधित अन्य नियम निम्नलिखित हैं-
1. पारी के प्रारंभ में प्रथम तीन धावक अपने बचाव में खेल क्षेत्र में दौड़ेंगे उनके आउट होते ही दो मिलने से पूर्व ही रनर को खेल क्षेत्र में प्रवेश कर लेना चाहिए।
2. प्रत्येक खिलाड़ी के आउट होने पर चेसर की टीम को 1 अंक प्राप्त होता है।
3. यदि 9 मिनट से पूर्व रनर साइड के सभी खिलाड़ी आउट हो जाते हैं तो वह पहले वाले रनर ग्रुप को पुनः क्रमबद्ध प्रवेश कराना होता है। यह प्रक्रिया समय समाप्ति तक चलती रहती है।
4. दोनों पारियों में जो टीम सर्वाधिक अंक प्राप्त करेगी उस टीम को ही विजेता घोषित किया जाएगा।
5. दोनों पारियों की समाप्ति के पश्चात भी इसको अगर दोनों टीमों का बराबर है तो अतिरिक्त समय दिया जाएगा।
फालो ऑन Follow-on यदि रक्षक टीम का स्कोर में सामने वाली टीम के 9 अंक अधिक है तो रक्षक टीम सामने वाली टीम को Follow-on देकर पुना खेलने को कह सकती है।
स्थानापन्न (Substitution) पीछा करने की बारी में किसी भी समय स्थानापन्न रक्षा पारी के आरंभ में ही किया जा सकता है अन्य नियमानुसार निर्णायक की अनुमति से।
खेल में बाधा (Breakers in Game) यदि किसी कारणवश मैच पूरा ना हो पाए तो उन्हीं खिलाड़ियों एवं अधिकारियों के साथ उसी समय में खेल पुनः खेला जाएगा अंकों की गणना भी उसी स्कोर से होगी यदि अधूरा मैच उसी समय में ना खेला जा सके तो पूरा मैच पुनः खेला जाएगा।
पीछा करने चेसिंग की विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
1. खो-खो देना।
2. दिशा ग्रहण ।
3. चक्कर देकर धावक बदलना। 
4. खुले हाथ फैलाकर छूना। 
5. पुल पर घूम जाना। 
6. चकमा देकर खो देना। 
7. देरी से खो देना। 
8. ड्राइव लगाकर छूना। 
9. घेरना। 
10. झूठ ही खो देना।
रनिंग की विशेषताएं (Importance of running)
1. विशेष स्थान खेल क्षेत्र में दौड़ना। 
2. अपना बचाव।
3. पुल के पास खड़ा होकर झांसा देना।
4. सामने वाले को थकाना।
5. चकमा देकर बचना।
6. सामने से झांसा देना।
7. पीठ के पीछे खड़ा होकर झांसा देना।

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