किशोरावस्था की विशेषताएँ, तथा अर्थ एवं परिभाषा(Meaning and definition of Adolescence )

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किशोरावस्था की विशेषताएँ

किशोरावस्था जन्मोप्रांत मानव विकास की तृतीय अवस्था है जो बाल्यावस्था के खत्म होने के बाद प्रारंभ होती है तथा प्रौढ़वस्था के प्रारंभ होने तक चलती है। यद्यपि व्यक्तिगत भेदो वातावरण आदि के कारण किशोरावस्था की अवधि में कुछ अंतर पाया जाता है परंतु फिर भी सामान्यतया यह अवधि 7 से 8 वर्ष की होती है जो 12 से 13 वर्ष की आयु से प्रारंभ होकर 18 से 19 तक मानी जाती है। इसी समय अवधि में बालक ने समस्त शारीरिक मानसिक सामाजिक संवेगात्मक तथा आध्यात्मिक आदि बदलाव आते हैं जो व्यक्तित्व विकास की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अभी तक किशोरावस्था की विशेषताएँ के बारे में  जाना।

किशोरावस्था की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ ।

  • इस अवस्था में बालक - बालिका स्वयं पर भरोसा करते है।
  • इस काल में बालक और बालिका में विद्रोह की भावना उत्पन्न हो जाती है।
  • आक्रोश तथा हिंसक प्रवृत्ति किशोरावस्था में पनप जाती है।
  • किशोरावस्था में बालक और बालिका में छुआछूत एवं धार्मिक भेद भाव नहीं होता है।
  • किशोरावस्था में अपने लक्ष के प्रति निष्ठावन की भावना अधिक होती है।
  • किशोरावस्था में धनिष्ट मित्रता की भावना उत्पन्न हो जाती है।
  • सहयोग तथा एकता की भावना का किशोरावस्था में विकास हो जाता है।
  • किशोरावस्था में बालको में घूमने की इच्छा तीव्र हो जाती है।
  • शारिरिक विकास पर बालक और बालिका अधिक ध्यान देते है।
  • उदासीनता और उत्सुकता का विकास किशोरावस्था में अधिक होती है।
  • किशोरावस्था में कल्पना शक्ति का विकास इस अवस्था में अधिक होता है।
  • काम भावना की उत्सुकता किशोरावस्था में अधिक हो जाती है।
किशोरावस्था का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of Adolescence )

किशोरावस्था का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of Adolescence )

किशोरावस्था अंग्रेजी भाषा के एडोलेंस (Adolescence) का हिंदी रूपांतर है एडोलेंस शब्द लैटिन भाषा के 'एडोलिसियार'  (Adolescence) से निर्मित है जिसका तात्पर्य है 'परिपक्वता की तरफ बढ़ना' (to grow to maturity) अतः किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें बालक परिपक्वता की ओर अग्रसर होता है तथा जिसकी समाप्ति पर वह पूर्ण परिपक्व व्यक्ति बन जाता है।

स्टेनले हॉल (Stanley Hall) के अनुसार, "किशोरावस्था बड़े संघर्ष तनाव तूफान की अवस्था है"

कुछ मनोवैज्ञानिकों द्वारा किशोरावस्था को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया गया है।

(अ) पूर्व किशोरावस्था (Early Adolescence) 12 से 16 वर्ष की आयु तक।

(ब) उत्तर किशोरावस्था (Late Adolescence) 17 से 19 वर्ष की आयु तक।

17 वर्ष की आयु को दोनों का विभाजन बिंदु बताया गया है।



पूर्व किशोरावस्था में बालक पूर्ण किशोर तो नहीं बनत लेकिन उसके व्यवहार मनो वृत्त तथा दृष्टिकोण में स्पष्ट परिवर्तन दिखाई देने लगता है इसलिए इसे एक बड़ी उलझन की अवस्था कहा गया है क्योंकि इस समय अवधि में प्रायः माता-पिता अभिभावक तथा अध्यापक उसे बात बात पर रोकते या ठोकते हैं बालक हमेशा उलझन पूर्ण स्थित में रहता है कि वह क्या करें।

पूर्व किशोरावस्था को अत्यंत द्रुत एवं तीव्र विकास का काल भी कहा जाता है शारीरिक विकास के साथ इस समय विकास के सभी पक्षों को तीव्रता आ जाती है ।

अतः उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि इस काल की घटनाएं व्यक्ति के समूचे व्यक्तित्व को प्रभावित करती है इसलिए इसे बहुत ही नाजुक समय कहा जाता है कई मनोवैज्ञानिक इसे नौ जन्म की संज्ञा देते हैं क्योंकि इस काल में नए लक्षण विकसित हो रहे होते हैं।

किशोरावस्था की विशेषताएं(Characteristics of Adolescence Period) 

किशोरावस्था की सभी विशेषताओं को निम्नलिखित भागों में बांटकर अध्ययन किया जा सकता है।

(I) शरीर में तेज वृद्धि तथा परिवर्तन ( Rapid Physical Growth and Change)

(1) ऊंचाई और भार में वृद्धि (Increase in Height and Weight) किशोरावस्था मैं लंबाई तेजी से बढ़ती है हड्डियों तथा मांस पेशियों की वृद्धि के कारण किशोरों का भार बढ़ने लगता है इसी अवस्था में ही व्यक्ति की लंबाई तथा उसका आकार अपनी अधिकतम सीमा तक पहुंच जाता है किशोरों का शारीरिक भार उनकी ऊंचाई की गति से नहीं बढ़ता इसलिए वे दुबले पतले दिखाई देते हैं सामान्यतः लड़के लड़कियों की अपेक्षा अधिक भारी तथा लंबे होते हैं परंतु 12 से 14 वर्ष तक की किशोरावस्था में लड़कियां लड़कों की अपेक्षा अधिक लंबी तथा भारी दिखाई देती हैं क्योंकि वह लड़कों की अपेक्षा जल्दी बढ़ना आरंभ कर देती है यही कारण है कि इस आयु में लड़कियां अपने समवयस्क लड़कों को अपने से छोटा समझती हैं और अपने से बड़े लड़कों के साथ रहना पसंद करती है।

(2) हड्डियों तथा मांस पेशियों का तेज विकास (Rapid Development Of Bones and Muscles) किशोरों की हड्डियां तथा मांसपेशियां तेजी के साथ विकसित होती हैं किशोरावस्था के अंत तक वह अपने अंतिम आकार को ग्रहण कर लेती हैं लड़कियों की मांसपेशियां कोमल रहती हैं जबकि लड़कों की मांसपेशियां सख्त एवं दृढ़ हो जाती हैं।



(3) शारीरिक अनुपातों में परिवर्तन (Changes in Bodily Proportion) शरीर के विभिन्न अंग विभिन्न अनुपात से बढ़ने और विभिन्न गति से अपने अंतिम स्थिति को पहुंचते हैं बाहें और टांगे लंबी हो जाती हैं हाथ और पांव बड़े हो जाते हैं धड़ भी अपनी पूरी लंबाई में बढ़ने लगता है। किशोरावस्था की उत्तरार्ध में कंधे भी जुड़े होने लगते हैं पेट का निचला भाग भी चौड़ा होने लगता है चेहरे की आकृति में परिवर्तन आ जाता है नाक लंबी होकर अपने अंतिम आकृति धारण कर लेती है माता चौड़ा हो जाता है और ठोड़ी लंबी हो जाती है क्योंकि शारीरिक अंगों का अनुपात बदलने लगता है इसलिए किशोर अपने आप को भद्दा और बदसूरत महसूस करता है।

(4) आवाज में परिवर्तन (Changes in Voice) किशोरावस्था में लड़कों और लड़कियों की आवाज में स्पष्ट रूप से परिवर्तन आ जाता है लड़कों की आवाज भारी तथा तेज हो जाती है और लड़कियों की आवाज पतली तथा मीठी हो जाती है।

(5) लैंगिक अंगों के आकार में वृद्धि ( Increased Size Of Genital organs) किशोरावस्था में लड़कों के बाहरी लैंगिक अंगों में पर्याप्त वृद्धि होती है सामान्यतः लिंग वृद्धि से पहले ही अंडकोष में वृद्धि दिखाई देने लगती है बाया अंडकोष सामान्यतः नीचे की ओर अधिक लटक जाता है और दाएं अंडकोष से अधिक बड़ा होता है लैंगिक अंगों की वृद्धि के कारण लड़कों पर कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकते हैं विशेषकर ऐसे समाज पर जहां पर यह विचार प्रचलित हो कि लिंग का बड़ा होना पुरुषत्व का महत्वपूर्ण चिन्ह है। 

(6) छाती का विकास तथा पेलविस में वृद्धि (Breast Development and Growth of Pelvis) किशोरावस्था में लड़कियों की छाती का विकास तथा पेलविस की वृद्धि ऐसे महत्वपूर्ण शारीरिक परिवर्तन है जो उनके शारीरिक व्यक्तित्व पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं स्वीकार आत्मक दृष्टिकोण से वे अपने भीतर नारीत्व के विकास के लक्षणों पर गर्व करती हैं और नकारात्मक दृष्टि से उनमें कुछ स्वा चेतना की भावना जागृत हो जाती है।

(7) रात को वीर्यपात और महावरी (Night Emissions and Menstruation) किशोरावस्था के प्रारंभ में ही काम ग्रंथियों  काम करना आरंभ कर देती हैं लड़कों को वीर्य ग्रंथियां काम करना प्रारंभ कर देती है वीर्य बनना शुरू हो जाता है और रात को वासन आत्मक सपनों के साथ स्वप्नदोष भी होने लगता है रात को हुआ वीर्यपात किशोरों को डरा देता है कामवासना जो बचपन में दबी रहती है किशोरावस्था में फिर से जागृत हो उठती है किशोरावस्था में लड़कियों को माहवारी आनी शुरू हो जाती है जिसके मन में डर और बेचैनी उत्पन्न हो जाती है प्राय: उन लड़कियों को अपने माहवारी आती है जो पूर्व किशोरावस्था मैं लंबी होती हैं उनमें किशोरावस्था भी शीघ्र ही आरंभ हो जाती है।

निष्कर्ष :  किशोरावस्था की विशेषताएँ के रूप में जाना कि बालक और बालिका के शरीरिक तथा मानसिक परिवर्तन में क्या बदलाव आते है।



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