अष्टांग योग Ashtanga yoga क्या है कितने प्रकार के होते है Ashtanga yoga के फायदे है।

अष्टांग योग क्या है। कितने प्रकार के होते है। Ashtanga yoga के नियम है।

अष्टांग योग महर्षि पंतजलि ने योग सूत्र में योग के आठ अंगो का वर्णन किया है। इन्हे 8 Steps कहा जाता है। जिनके माध्यम से योग के परम व अंतिम लक्ष्य जीवात्मा का परमात्मा के मिलन को प्राप्त किया जा सकता है योग के निम्न अंग योग के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रत्येक अंग का अभ्यास बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। एक अंग में निपूर्ण हो जाने के बाद दूसरे मंग की ओर बढ़ना चाहिए। अष्टांग योग (Ashtanga Yoga) एक प्रकार का योग है जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए उपयोगी होता है। इसे पतंजलि ऋषि ने विवेकानंद जी के द्वारा प्रदर्शित कराया था। यह योग अनुष्ठान के रूप में लोगों को संतुलित जीवन जीने के लिए उनकी मदद करता है।

अष्टांग योग के आठ अंग होते हैं, जिन्हें आठ अवधियों में अभ्यास किया जाता है। ये अंग हैं: यम (आचार संबंधी नियम), नियम (अचार संबंधी नियम), आसन (योगासन), प्राणायाम (श्वास प्रश्वास का नियंत्रण), प्रत्याहार (इंद्रियों का नियंत्रण), धारणा (एकाग्रता), ध्यान (मन का निरंतर ध्यान) और समाधि (उच्च स्तर का ध्यान)। ये अंग सभी एक सुसंगत विधि के रूप में अनुष्ठान किए जाते हैं।

अष्टांग योग के अनुयायी इसे अपनी साधना का एक तरीका मानते हैं जो उन्हें तनाव, चिंता, रोग, और मानसिक अस्तित्व से मुक्ति देने में मदद करता है। यह शारीरिक स्वास्थ्य,अष्टांग योग के अनुयायी इसे अपनी साधना का एक तरीका मानते हैं जो उन्हें तनाव, चिंता, रोग, और मानसिक अस्तित्व से मुक्ति देने में मदद करता है। यह शारीरिक स्वास्थ्य, आध्यात्मिक विकास और मानसिक शांति को बढ़ाने में मदद करता है।

अष्टांग योग के प्रकार

  1. यम: संयमित जीवन शैली, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पालन से यह शुरू होता है।
  2. नियम: शुद्धता, संतोष, तपस्या, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान जैसे नियमों के पालन से यह शुरू होता है।
  3. आसन: शरीर को बाँधने और नियंत्रित करने के लिए योगासनों का अभ्यास होता है।
  4. प्राणायाम: श्वास-प्रश्वास के माध्यम से शरीर के प्राण शक्ति को नियंत्रित करने के लिए अभ्यास होता है।
  5. प्रत्याहार: इंद्रियों को बाहरी जगत से विचलित करने का अभ्यास होता है।
  6. धारणा: ध्येय के उपर एकाग्रता से मन को निर्धारित करने के लिए अभ्यास होता है।
  7. ध्यान: धारणा की वृद्धि के माध्यम से मन को निर्धारित करने का अभ्यास होता है।
  8. समाधि: अनुभूति के अतिरिक्त जगत के किसी भी दुख या सुख से मुक्त हो जाने के लिए मन को एकाग्रता से निरंतर रखने का अभ्यास होता है।

1. यम यम के अभ्यास द्वारा एक व्यक्ति ऐसी बातो को दूर करने से दूर रह सकता है जो उसके व्यक्तित्व को विवेकहीन होने की अवस्था के लिए विवेकहीन सघर्ष में उलझाएँ रखती हिंसा यम का पालन करने वाला व्यक्ति से दूर रहता है। अपनी इंद्रियों को अपने वस में करने की कला ही यम है।

अष्टांग (Ashtanga yoga) योग क्या है

यम के पाँच नियम है- 1.सत्य, 2. अहिंसा 3. असत्य 4. ब्रह्मचर्य 5. अपरिग्रह ।

(i).सत्य सत्य के अनुसार हमें विचार, शब्द व कार्य में सत्यवादी होने चाहिएग झूठ नही बोलना चाहिए। दूसरों से छल व धोखेबाजी से बात करनी नही चाहिए।

(ii) अंहिसा इसका अर्थ है कि व्यक्ति को किसी भी जीव या मानव को किसी भी प्रकार की हानि नही पहचानी चाहिए क्रोध  चिंता, ईर्ष्या, घृणा, किसी भी प्रकार की नकारात्मक भावनाएँ इसमें शामिल है। इसलिए हमें इमोशन दूर रहना चाहिए किसी को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए तथा ना किसी को बुरा बोलना चाहिए। व्यक्तियों व जीव जंतुओं के प्रति प्यार व आदर का भाव रखना चाहिए।

(iii) असत्य असत्य का अर्थ चोरी ना करना होता है। दूसरों की वस्तुओं, विचारों या धन आदि को अपनी सुविधा के लिए प्रयोग प्रयोग नहीं करना चाहिए।

(iv) ब्रहमचर्य  आंतरिक व बाहरी इंद्रियों के साथ विषय वासना से दूर रहना ही ब्रहमचर्य कहलाता है।

(v)  अपरिगृह अपरिग्रह का अर्थ धन व संपत्ति को अपने स्वार्थ के लिए इकट्ठा कुरना इसके क विपरीत कम आवश्यकताओं साथ जीवन व्यतीत करना । हमें भौतिक व सुखों की इच्छा नहीं करनी चाहिए व अपने ग्रहों का पालन करना चाहिए।

2.नियम यह योग का दूसरा अंग हैं। नियम व्यक्ति के शरीर व ज्ञानंद्रियों से जुड़े होते है। नियम यम की तरहही नैतिक अभ्यास का कार्य करते होते है। (i)शौच (ii) संतोष (iii) तप (iv) स्वास्थ्य (v) ईश्वर प्राणीधान (स्वाध्याय)

(i) शौच- शौच का अर्थ शुद्धता। हमें शारीरिक व मानसिक रूप से शुद्ध होना चाहिए हमें अपने शरीर के बाहरी व आंतरिक रूप से साफ चाहिए। योग में आंतरिक अंगो सफाई पर बल दिया जाता हैं योग की षष्ठकर्म होते है। नेतिक्रिया, न्योली क्रिया, धोती क्रिया, त्राटक क्रिया, बस्ती क्रिया

(ii) संतोष - संतोष का अर्थ संतुष्टि जीवन सभी स्थितियों में हमें संतुष्टि का भाव विकसित करना चाहिए जो भगवान ने हमें दिया है। उसी में हमें सतुष्ट रहना चाहिए।

(iii) तूप - Aim को प्राप्त करने के रास्ते हो आने वाली रुकावटी व जटिल स्थितियों को आसानी पूर्वक सहन करना व लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना तप  कहलाता है।

(iv) स्वाध्याय - महान वेदों, ग्रंथों, उपनिषदों, योग दर्शन व गीता आदि का निष्ठा भाव से अध्ययन करना ही स्वाध्याय है। यह अध्ययन होता है। यह पहली प्रकार की अध्यन है दूसरी अध्ययन Self Study होता है। यह जानना कि मैं कौन हूँ मुझे क्या करना चाहिए। मेरे जीवन का Aim क्या।दोनों प्रकार के संबंधित होते अध्ययन स्वाध्याय से सम्बन्धित होते है।

(v) ईश्वर प्राणीधान नियम की यह एक महत्वपूर्ण अवस्था होती सब कार्यों को भगवान को समर्पित करना ही ईश्वर प्राणीधान कहलाता  है। ईश्वर प्राणी- धान से व्यक्ति निर्भय व चरित्रवान बनता है।

3. आसन - यम नियम के बाद तीसरे नंबर पर  आसन आता है इसका अर्थ आरामदायक स्थिति है। शरीर की स्थित इसका अर्थ है  इसका अर्थ आरामदायक स्थिति में बैठना या आराम दायक स्थिति है। इसकी लोकप्रियता के कारण अधिकत्तर व्यक्ति यह सोचते है उनको यह पता नही होता कि यह योग की और एक कदम होता है। वास्तव में आसन शरीर को Perfect रखने के लिए किया जाता है। आसन fat को कम करके शरीर में शरीर की सुंदरता को बढाते है। ये निम्न है - 

(1)Carrective Asan.

(2)Relextive Asan.

(3)Meditative Asan

विभिन्न प्रकार के आसन Body पर के different विभिन्न argans प्रभाव डालते है।  ये आसन different elegans के कार्य को activate करते है। आसन Youth Stage से बिना किसी कठिनाई से old age तक किए जा सकते हैं।

4. प्राणायाम श्वसन क्रिया का नियंत्रक होता है। इसका अर्थ है। श्वासन को अन्दर ले जाना व बाहर निकालने पर नियंत्रण। 

इसके तीन घटक है । 

पूरक, कुंभक, रेचक

प्राणायाम के आठ भाग होते है।

  • 1. उज्जयी
  • 2. सूर्य गंदी
  • 3. शीतकारी
  • 4. शीतली
  • 5. भस्त्रिका
  • 6. भ्रामरी
  • 7. मूर्च्छा
  • 8. प्लाविनी

यह  Metabolick Activity में मदद करता है Heart  व Lungs कि Activity में भी वृद्धि करती है।

5. प्रत्याहार प्रत्याहार एक Selp Control है। जिसमें व्यक्ति इंद्रियों पर Control करने के योग्य जाता है। वास्तव मेंBrain व इंद्रियों को एक जगह पर इकट्ठा करना ही प्रत्याहार कहलाता  है प्रत्याहार में इंद्रियाँ उन बाहरी वस्तुओं जो मानसिक ध्यान को भंग करती है। या किसी अनुक्रीय Respons नहीं देती है। विभिन्न इंद्रियों की Attachment जैसे wards. duty test etc. व्यक्ति को Self well fare रास्ते से ध्यान हटा देत है।या ध्यान को किसी दूसरी तरफ खींच लेती है। प्रत्याहार से यह सब Control होता है।

6. धारणा  Mind की Contraction को ही ध्यान कहा जाता है। सामान्यता यह देखा जाता है कि Bigin में बिखराव की प्रवृत्ति होती है लेकिन यदि इसे Control में लाया जाए व एक  फोक्स Point केंद्रित किया जाए । इसी को ध्यान कहा जाता हैधरना समाधि  का  पहला कदम है वास्तव में धारणा mentally Exercise है। जो योगी को ध्यान व समाधि की ओर ले जाता है।

7. ध्यान -  ध्यान brain की Complete Static की एक प्रक्रिया है। यह समाधि से पहले की स्थिति है। ध्यान प्रत्येक पल हमारे जीवन से जुड़ा रहता है। जब कोई कार्य हम करते है। तो बोला जाता है। ध्यान से करना लेकिन हम इसका उचित अर्थ नही समझते की Brain Complete Contration ही ध्यान कहलाती है।

8.समाधि- व्यक्ति की मात्मा या जीवात्मा का परमात्मा से मिलन ही समाधि कहलाता Brain के सभी आवेगों को रोकना समाधि कहलाता हैं। ध्यान की अवस्था के दौरान जब स्वयं के बारे में जानकारी व ज्ञान का लोप हो जाता है। तो योगी समाधि की स्थिति प्राप्त कर लेता है। उसे ईश्वर का देविक सुख अनुभव होना शुरू हो जाता है।

अष्टांग योग के कुछ और फायदे हैं:

  1. शारीरिक स्थैर्य और स्थमता बढ़ाना।
  2. बल, सहनशीलता और जीवंतता का विकास करना।
  3. प्राणायाम द्वारा श्वास और प्रश्वास का नियंत्रण करना।
  4. धारणा, ध्यान और समाधि के माध्यम से मन को निर्मल बनाना।
  5. इंद्रियों का नियंत्रण करना और मन को सामान्य से अधिक शांत करना।
  6. शरीर के विभिन्न अंगों को टोन और एकीकृत करना।
  7. स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देना जैसे संतुलित आहार लेना, निद्रा की गुणवत्ता बढ़ाना आदि।

अष्टांग योग का अभ्यास शुरू करने से पहले, आपको एक प्रशिक्षित योग शिक्षक से परामर्श लेना चाहिए। यदि आप अष्टांग योग का अभ्यास करना शुरू करना चाहते हैं, तो आपको उसके विभिन्न अंगों को समझना और इसके लिए अपनी योग साधना को धीरे-धीरे बढ़ाना होगा।

अष्टांग योग का अभ्यास करने से कई फायदे होते हैं, जैसे: शारीरिक फायदे: योगासन के अभ्यास से शरीर की लचीलापन बढ़ती है जो अवश्यक होती है शरीर की उच्च स्थिरता और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने के लिए। साथ ही योगासनों के अभ्यास से शरीर की सेहत बनी रहती है।

मानसिक फायदे: अष्टांग योग के अभ्यास से मानसिक चंचलता कम होती है और मन का शांतिपूर्ण होता है। इससे चिंता, दुख, तनाव और अवसाद जैसी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।

सामाजिक फायदे: योग के अभ्यास से व्यक्ति में समझदारी, सहनशीलता, तुलनात्मक विचारधारा और धैर्य बढ़ता है। इससे उनके रिश्ते और सामाजिक संबंध भी मजबूत होते हैं।

यदि आप अष्टांग योग का अभ्यास करने का निर्णय करते हैं, तो संबंधित अष्टांग योग का अभ्यास करने से आप शरीर, मन और आत्मा की संतुलित विकास कर सकते हैं। इसके अलावा, योग के अभ्यास से आप अपनी जीवनशैली को भी सुधार सकते हैं।

अष्टांग योग का अभ्यास आपकी शारीरिक समस्याओं को भी दूर करने में मदद कर सकता है, जैसे ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, डायबिटीज और अन्य रोग। इसके अलावा, योग के अभ्यास से आप वजन घटाने में भी मदद प्राप्त कर सकते हैं।

योग के अभ्यास से आप अपने मन को भी शांत रख सकते हैं और अपनी मानसिक संतुलन को बढ़ा सकते हैं। इससे आप अपनी चिंताओं, तनावों और अवसाद से मुक्त हो सकते हैं। इससे आपकी उच्च स्तर की मानसिक उत्साह और उन्नति होती है।

अष्टांग योग के अभ्यास से आप आत्मा की विकास भी कर सकते हैं। इससे आप अपनी आत्मा को जानने और समझने में सक्षम हो सकते हैं। इससे आप अपने जीवन का एक उच्चतम लक्ष्य ढूंढने में मदद प्राप्त कर सकते हैं।


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