Historical background of yoga योग का ऐतिहासिक बैकग्राउंड क्या है BPED Yoga Education

 HISTORICAL BACKGROUND OF YOGA(योग का ऐतिहासिक बैकग्राउंड क्या)

योग की उत्पत्ति के बारे में स्पष्ट रूप कुछ नही कहा जा सकता। इसका मुख्य कारण यह है कि योग की उत्पत्ति के बारे में अभी कोई भी अनुसंधान का अध्ययन नही हुआ लेकिन प्रमाणित रूप से कहा जा सकता है कि योग इतना पुराना है। 

जितना कि भारत का इतिहास योग प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति का मुख्य अंग रहा है। यदि द्रुमयोग की उत्पत्ति के बारे में जानना चाहते है तो हमें भारत के इतिहास के विभिन्न कालों का अध्ययन करना होगा।

योग का ऐतिहासिक काल

1. पूर्व वैदिक काल सिंधु घाटी में मोहनजोदडों स्वम हडप्पा की खुदाई से पता चलता है कि उस काल के दौरान किसी न किसी रूप में योग का अभ्यास किया जाता था खुदाई में जो मूर्तिया व प्रतिमाएं मिली थी वे विभिन्न यौगिक आसनों में है। सिंधु घाटी की सभ्यता में जिस भाषा का प्रयोग होता था हमें अभी तक उसका पता नही चला है। लेकिन प्रतिमाओं के आधार पर इतना निश्चित है कि उस काल में योग किया जाता था सिंधु घाटी में मिली तस्वीरे तथा पत्थर की मूर्तियाँ भी यौगिक अभ्यासों लगभग का वर्णन करती है। आज से चार हजार वर्ष पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यता का समय माना जाता है। अनुसंधानकर्ताओ ने आर्यों के आगमन से पूर्व सिंधुघाटी की सभ्यता का काल माना इस काल में योगियों की मूर्तियो का पाया जाना इस तथ्य को सूचित करता है। कि उस समय में योग परम्परा पर था। योग का विकास अपने चरम सीमा पर था।

HISTORICAL BACKGROUND OF YOGA(योग का बैकग्राउंड क्या)

2.वैदिक काल योग के विभिन्न घटकों की चर्चा वैदिक काल में भी पाई जाती है। जिन में ऋषिओं ने यज्ञ के समय योग के आचरण व अभ्यास का निर्देश दिया है। प्राणायाम तथा प्राण जैसे शब्दों का वर्णन वेदों में अनेक स्थान पर मिलता है। लिखित रूप मे योग के विषय में तथ्य हिंदुओं की महान धार्मिक पुस्तकों से प्राप्त हुए है। जिन्हें वेद कहा जाता इन वेदो की गिनती चार है। 1. ऋग्वेद 2. सामवेद ३ यर्जुवेद 4 अर्थवेद । ये वेद उत्तरी भारत में 2100 BC में लिखे गए। इन् वेदो में लिखा है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व क़ा सर्वागीण विकास योग के माध्यम ही किया जा सकता है। वेदो में योग परमात्मा द्वारा "इन्सानो" को दिया गया तोहफा बताया स्थान पर गया एक अनमोल है। अर्थवेद में तो एक अष्टग योग व हठ योग के प्रयोग भी किया गया है। 

3.उपनिषद काल उपनिषदों में भी योग की चर्चा काफी मात्रा में उपलब्ध है। उपनिषद युग भारतीय चिंतन का 'स्वर्ण युग' माना जाता है। 1. छान्दोग्य 2.बृहदारण्यक उपनिषद सर्वश्रेष्ठ माने गए है। इनमें योग के विशिष्ठ तत्व प्राण पर विशेष ध्यान दिया गया दोनो उपनिषदों में षटक्रम यम है। इन् नियम की भी चर्चा की गई है। तथा प्राण शब्द के प्रयोग से प्राणायाम की धारणा का आभास मिलता है।

कठोपनिषद में तो योग अपने तकनीकी अर्थ में प्रयोग हुआ। इसमें मृत्यु के स्वामी. यूम और कुमार नचिकेता की बातचीत में योग पर सूक्ष्म रूप से प्रकाश डाला गया जिसमें नचिकेता से कहते है कि अध्यात्म योग के दवारा ही मोक्ष की प्राप्ति हो सक्ती है। आध्यात्मिक योग की व्याख्या रूप में की गई है। जहां आत्मा रथ की रथ के स्वामिनी है। शरीर रथ है मस्तिष्क लगाम है।' इंद्रियां अरब है। और भूल-भुलैया भरे लुभाने रास्ते है। शरीर रूपी रथ मोक्ष की प्राप्ति तभी कर सकता है जब बुद्धि रूपी सारथी अपनी इंद्रियों का अपने ऊपर नियंत्रण रखे ।

4.काव्य काल भारतवर्ष के दो महान काव्य रामायण और महाभारत में यौगिक क्रियाओं के विभिन्न प्रकारों का वर्णन किया गया है। रामायण के समय योग बहुत प्रसिद्ध था भगवत गीता में योग के तीन पथ बताए गए है। जन योग, भक्तियोग, कर्मयोग।

5. सूत्र काल योग को आधुनिक साहित्यिक रूप का सारा श्रेय महार्षि पतंजलि को जाता है।  जिन्होंने लगभग 147 ईवी पूर्व में 'योगसूत्र की रचना की। योग सूत्र को चार पुस्तकों में विभाजित किया गया है। उन्होंने योग के आठ अंगो यम, नियम प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, आसन, प्राणायाम समाधि का वर्णन किया है। बौद्ध और जैनियों से संबंधित धार्मिक ग्रंथों से पता चलता है कि योग लोगों के जीवन का मुख्य अंग था महावीर स्वामी उस समय के एक महान यौगिक थे।

6. स्मृति और पुराणों में योग स्मृतियां लगभग 1000 ईवीं तक लिखी गई थी स्मृति साहित्य के इस काल के दौरान, हम विचारों, विश्वासों, पूजा व 'रीति-रिवाजों में अनेक परिवर्तन पाते हैं। योग के द्वारा समाज के सभी वर्ग आत्म ज्ञान प्राप्त करते है। ऐसे निर्देश स्मृति ग्रंथों में दिए गए इन ग्रंथों में क्रियात्मक योग की एक नई प्रक्रिया को जन्म दिया है। तथा प्राणायाम को हर यौगिक क्रिया को एक महत्वपूर्ण अंग को माना है। महर्षि पंतजलि के योग की बाते स्मृति व पुराण मे भी मिलती है।

7. भगवदगीता में योग  एक श्री मद्भागवद्गीता अद्भुत उपलब्ध मानव चिंतन की है तथा कर्मयोग की अत्यंत सार्थक व्याख्या इसमें देखने को मिलती कुशलता ही योग है। कर्म में समाज हमें के भिन्न-2 वर्गो की 'मनोवृत्तियों को ध्यान मे रखकर योग के कई मार्गो का पाया गया इसके चार प्रमुख मार्ग इस प्रकार है। 1. कर्मयोग 2.ध्यान योग 3.ज्ञान योग 4.भक्ति योग।

8. आधुनिक काल आधुनिक काल के दौरान स्वामी विवेकानंद ने योग को बहुत लोकप्रिय बनाया है। स्वामी योगेन्द्र ने योग के ज्ञान को भारत वर्ष से बाहर फैलाना जारी रखा रमन महर्षि व श्री 'अरविदों ने भी योग की लोकप्रिय बनाया और अब नए बाबा राम देव योग वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ सारे विश्व में लोकप्रिय बनाने हेतु अर्थहीन प्रयास हो रहे है। 

अत, निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जा योग की जड़े सिंधु घाटी की सभ्यता में है वे उपनिषद प्रसिद्ध काव्य रामायण और महा भारत विशेष रूप से गीता व योग सूत्र आदि प्राचीन समय में योग के विकास में महत्वपूर्ण तथ्य थे इन तथ्यों के आधार पूर कहा जा सकता हैं कि योग भारतीय विरासत है। योग के बीज भारत में ही बोए गए व यही पर. विकसित हुए। अब UNO भी यह घोषणा कर चुका कई कि योग भारतीय विरासत है।

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