Yoga Sutra General Consideration(योग सूत्र सामान्य विचार) BPED Yoga Education

  Yoga Sutra General Consideration(योग सूत्र सामान्य विचार)।

महर्षि पंतजलि को योग का पितामा कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम योग की एक अलग पुस्तक लिखकर योग  को अस्तित्व प्रदान किया। महर्षि पंतजलि जी ने जिसकी रचना की उसे महाकाव्य योग सूत्र के नाम से जाना जाता है। यह महाग्रंथ आज भी योग के क्षेत्र में  पढ़ने-पढ़ाने अनुसंधान Research करने वाले व्यक्तियों के लिए प्रेरणा का विषय है। श्रीमद भगवत गीता के पश्चात यदि किसी ग्रंथ का सबसे अधिक भाषाओं में अनुवाद हुआ है तो पंतजलि जी का "योग सूत्र" ही है। इसके पश्चात जितने भी योग संबंधी ग्रंथ लिखे गए उन सभी ग्रंथों का  प्रेरणा स्त्रोत योग सूत्र" ही है  ऐसे उदाहरण हमें और किसी ग्रंथ में देखने को नही मिलते है जैसे पंतजलि जी  के योग सूत्र में है। योगसूत्र  4 भागों तथा 191 सूत्रों की में लिखा है।

 Historical Background in Patanjali Yoga Suthra (पतंजलि योग सूत्र में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि)

Yoga Sutra General Consideration(योग सूत्र सामान्य विचार)

विविध भारतीय ग्रंथों के बीच पंतजलि योग सूत्र का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है योग का स्वरूप व्यापक है प्राचीन काल से ही योग की अनेक शाखाएँ प्रचलित है। ऐतिहासिक दृष्टि से "योग सूत्र " का काल दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व निर्धारित किया जाए तो अन्य दर्शन जो कि इनके बाद विकसित है उन पर इस का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।

महार्षि पंतजलि का समय हरिणयगर्भ व कपिल मुनी के बाद का था तथा अन्य दर्शनकारो से पहले का था रामायण, महाभारत व ब्रहमसूत्र से बहुत पहले महर्षि पंतजलि थे।

महर्षि पतंजलि का योगसूत्र आस्तिक छह: दर्शनों, मे से एक है भारतीय साहित्य में महर्षि पंतजलि द्वारा लिखित तीन मुख्य योग सूत्र ग्रंथ माने गए है। पंतजति जी ने योगसूत्र को 4 भागों तथा 191 सूत्रों में विभाजित किया है । जो निम्नलिखित है -

1.साधना पाद 

2.समाधि पाद

3. विभूति पाद

4. केवल्य पाद

इन पादो में योग अर्थात ईश्वर प्राप्ति के उद्देश्य, लक्षण तथा प्रकार, भिन्न साधन के उपाय बतलाए गए है और ठांगो का वर्णन किया गया है यह धार्मिक ग्रंथ माना जाता है। लेकिन इसका धर्म किसी देवता पर आधारित नही है यह शारीरिक योग मुद्राओं का शास्त्र परमात्मा भी नही है यह योग आत्मा और या एकत्व के विषय है उसको प्राप्त करने के नियमों व उपायों के विषय में है यह अष्टांग योग भी कहलाता है।  क्योंकि अष्ट अर्थात आठ अंगो में पंतजलि ने इसकी व्याख्या की है आठ अंग है यम, नियम, आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार, धारणा, ध्यान समाधि।


समाधि पाद इस भाग में महर्षि जी ने 51 सूत्रों को योग में परिभाषित किया है तथा चित्र अवस्थाओं और चित्त की वृत्तियों पर नियंत्रण का बड़े ही अनुशासनात्मक तरीके से वर्णन किया है।

साधना याद इसमें में भी 55 सूत्रों का वर्णन किया है, जिसमें कलेशों के नाश के विषय में तथा उनकीवृत्तियों के बारे में बतलाया गया है। इसके अतिरिक्त क्रियाओं व अष्टाग योग के बाहरी तत्वों का भी वर्णन किया । कलेशों के नाश के पश्चात होने वाली सिद्धियों के बारे में बताया गया है।

विभूति पाद इस भाग में 56 सूत्र आते जिनमें मुख्य ध्यान और समाधि का वर्णन किया गया है ध्यान और धारणा को मिलाकर संयम की संज्ञा दी गई है।

कैवल्य पाद - इसमें 34 सूत्र आते है इसे मुक्ति पाद भी कहा गया है यह भाग योग की उस परम अवस्था के विषय में ज्ञान देता है, जिससे मानव जीवन में परम उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति या केवल्य के रूप जाना जाता है जोकि योग की अंतिम अवस्था कहलाती है।


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