जैव-यान्त्रिकी तथा जैव-गतिकी प्रकार एवं विश्लेषण ( Bio-mechanical and Bio-motional Analysis)

जैव-यान्त्रिकी तथा जैव-गतिकी विश्लेषण की विवेचना । Discuss the Bio-mechanical and Bio-motional Analysis.

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गति विश्लेषण के प्रकार

जैव-यान्त्रिकी तथा जैव-गतिकी प्रकार एवं विश्लेषण ( Bio-mechanical and Bio-motional Analysis)

गति विश्लेषण के विविध लक्ष्य तथा उद्देश्य होते हैं। लेकिन इसका सर्वप्रमुख उद्देश्य बिना किसी क्षति के नियमों का पालन करते हुए विभिन्न प्रकार के कौशलों को खिलाड़ियों द्वारा सही प्रकार से प्रदर्शित करना होता है।

गति विश्लेषण को दो भागों में विभाजित किया जाता है

(1) जैव-यान्त्रिकी विश्लेषण,

(2) जैव-गतिकी विश्लेषण ।

1. जैव- यान्त्रिकी विश्लेषण के प्रकार

इसके अन्तर्गत खेल के प्रशिक्षण अथवा खेल के दौरान (खिलाड़ी द्वारा कौशल प्रदर्शित करते समय) यान्त्रिक विज्ञान के किस नियम अथवा सिद्धान्त का उपयोग किया जाता है, उसका विश्लेषण किया जाता है, जैसे कौशल प्रदर्शन के समय किस प्रकार का उत्तोलक लग रहा है। न्यूटन के गति सम्बन्धी कौन-सा नियम कार्य कर रहा है, उसका केन्द्र कहाँ है कौन-सा सन्तुलन है तथा उसकी स्थिति क्या है, प्रक्षेपण घुमाव आदि इस प्रकार के निय अथवा सिद्धान्त जो खिलाड़ी के प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं इसका किस प्रकार उपयो किया जा सके जिसके परिणामस्वरूप खिलाड़ी के प्रदर्शन का मूल्यांकन कर इसमें सुध किया जा सके।

जैव-यान्त्रिकी विश्लेषण को हम अग्रलिखित तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं-

(क) गुणात्मक विश्लेषण,

(ख) संख्यात्मक विश्लेषण,

(ग) जैव-यान्त्रिक काल्पनिकता।

(क) गुणात्मक विश्लेषण

जैव- यान्त्रिकी विश्लेषण के अन्तर्गत गुणात्मक विश्लेषण सर्वाधिक आसान और कम खर्चीला होता है तथा अन्य विश्लेषण की तुलना में यह कम विश्वसनीय होता है। इस विश्लेषण के अन्तर्गत हम आँखों अथवा कैमरे द्वारा लिए गए फोटो के आधार पर खिलाड़ी के प्रदर्शन का मूल्यांकन कर उसकी कमजोरियों का पता लगा सकते हैं। इसकी सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि यह कम समय में होता है ठीक इसी प्रकार हम वीडियो द्वारा चित्र उतार कर भी खिलाड़ी के प्रदर्शन का मूल्यांकन कर उसमें व्याप्त कमियाँ खोजकर उसका विश्लेषण कर सकते हैं, लेकिन इस प्रकार का विश्लेषण ज्यादा समय लेने वाला होता है इसी कारण इसमें खर्च भी अधिक होता है। इसका उपयोग उच्च प्रदर्शन वाले खिलाड़ी के लिए किया जाता है जिसमें विजय-पराजय का निर्णय कम अन्तर से होता है।

वर्तमान में गुणात्मक विश्लेषण शारीरिक शिक्षण तथा प्रशिक्षण के लिए अत्यधिक प्रचलित है तथा शारीरिक शिक्षक तथा प्रशिक्षक इसका उपयोग ज्यादा से ज्यादा करते हैं यह उनके लिए बहुत सुगम होता है तथा वह खिलाड़ियों को भी इस प्रकार के विश्लेषण कर उनसे परिचित करा सकते हैं।

(ख) संख्यात्मक विश्लेषण

संख्यात्मक विश्लेषण अत्यन्त विश्वसनीय तथा प्रमाणिक है चूंकि वर्तमान युग विज्ञान का युग कहलाता है और इस विज्ञान की अमूल्य देन संगणक है। इस प्रकार के विश्लेषण हेतु संगणक की जरूरत होती है। संख्यात्मक विश्लेषण के अन्तर्गत खिलाड़ी के द्वारा किया जाने वाले प्रदर्शन को हम 'इकाई' में प्राप्त कर लेते हैं ? इसको माप में प्राप्त करने के लिए काइनोग्राम, तेज गति कैमरा, गति विश्लेषक संगणक आदि का उपयोग करते हैं। यह एक सेकण्ड में सैकड़ों चित्र प्राप्त कर लेता है। यन्त्रों के द्वारा जो भी माप प्राप्त होता है उसके आधार पर हम मूल्यांकन कर उसमें उपस्थित दोषों का पता लगा लेते हैं। इसके उपरान्त हम विश्लेषण कर उसकी कमजोरियों को सुधारने का प्रयास करते हैं या फिर ऐसा भी सम्भव है कि हम अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी का मूल्यांकन इसी प्रकार से करते हैं तथा उससे यह ज्ञात करते हैं कि उसका प्रदर्शन किस कारण से अच्छा होता है। अन्ततः इस प्रकार के विश्लेषण में उपकरणों की सहायता द्वारा खिलाड़ी के प्रदर्शन की माप इकाई में प्राप्त करने के उपरान्त संगणक के द्वारा खिलाड़ी के प्रदर्शन के विषय में संख्यात्मक रूप से ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

(ग) जैव-यान्त्रिक काल्पनिकता

जैव-यान्त्रिकी विश्लेषण में यह विश्लेषण करने का कोई तरीका नहीं है फिर भी हम इसमें इसे शामिल कर लेते हैं। इसकी सहायता से शिक्षक अथवा प्रशिक्षक अपने चिन्तन के आधार पर ही खेलों में जो नियम बनाते हैं उनको सही प्रकार से उपयोग में लाते हैं जिससे खेल के कौशल में परिवर्तन लाया जा सके अथवा नवीन कौशल को विकसित किया जा सके। इस प्रकार के विश्लेषण का प्रमुख उद्देश्य जैव-यान्त्रिकी के नियम एवं सिद्धान्तों की सहायता द्वारा प्रशिक्षक अथवा शारीरिक शिक्षक खेल के कौशलों में परिवर्तन अथवा नवीन कौशल प्रतिपादित कर उनके प्रदर्शन के स्तर को उन्नत बनाना उद्देश्य होता है। विगत कुछ वर्ष पूर्व जैव-यान्त्रिक के सिद्धान्त को दृष्टिगत रखकर पोल वॉल्ट (बाँस-कूद) में फाइबर ग्लास के पोल का प्रयोग शुरू हुआ था। इस प्रकार के विश्लेषण की सहायता से खिलाड़ियों के द्वारा प्रयुक्त उपकरणों में भी परिवर्तन कर, उसके प्रदर्शन को श्रेष्ठ श्रेणी का बना सकते हैं।

2. जैव-गतिकी विश्लेषण

जैव-गतिकी विज्ञान मानवीय गतियों का सुव्यवस्थित तरीके से अध्ययन करता है। इस प्रकार के विश्लेषण हेतु अनिवार्य है कि विभिन्न प्रकार के जीव माँसपेशी, हड्डी, उत्तोलक तल, अक्ष आदि का स्पष्ट ज्ञान हो। खिलाड़ियों द्वारा प्रशिक्षण अथवा प्रतियोगिता के समय जब कोई गतिविधि की जाती है तो उस गतिविधि के दौरान कौन-सी माँसपेशीय कार्य कर रही है। इसके दौरान कौन-कौन से जोड़ कार्य कर रहे हैं, उत्तोलक किस प्रकार का है। हड्डियाँ किस प्रकार कार्य कर रही हैं इसका विश्लेषण किया जाता है तथा इस प्रकार के विश्लेषण में क्रम के साथ-साथ उसकी गति में भाग लेने की सीमा और स्थिति का भी अध्ययन किया जाता है लेकिन यह एक सर्वसामान्य तथ्य है कि इस प्रकार के विश्लेषण के लिए हमें शरीर रचना विज्ञान (एनाटोमी) और जैय गतिकी विज्ञान का पूर्ण एवं स्पष्ट जान हो तभी इस विश्लेषण को सार्थकता प्रमाणित हो सकती है और विश्लेषण प्रभावशाली तरीके से किया जा सकता है।

इस विश्लेषण द्वारा हमें माँसपेशियों के योगदान के विषय में ज्ञान हो जायेगा तब हम कमजोर माँसपेशियों को प्रशिक्षण के माध्यम से शक्तिशाली बना सकते हैं जिससे खिलाड़ी अपने कौशल को सही तरीके से प्रदर्शित करने में सक्षम हो जायेगा। जैसा कि हमें ज्ञात है कि जिमनास्टिक तथा तैराकी में लचीलेपन की अत्यधिक जरूरत होती है और इस प्रकार के खेल में खिलाड़ी में लोच का अभाव उससे खराब प्रदर्शन कराता है। इसके अतिरिक्त खिलाड़ी के चोट लगने की सम्भावना अधिक रहती है। लेकिन हम गतिकी विश्लेषण की सहायता इस प्रकार की माँसपेशियों का पता लगाकर प्रशिक्षण के विभिन्न घटकों के द्वारा उसे लचीला बना सकते हैं।

जैव गतिकी विज्ञान के आधार पर हम कौशलों को निम्नलिखित भागों में विभाजित कर सकते हैं—

(1) शरीर की स्थिर अवस्था 

(2) मौलिक कौशल

(3) मौलिक दक्षता को प्रदर्शित करने वाले कौशल

(4) विशिष्ट कौशल

जैव-गतिकी विज्ञान के विश्लेषण हेतु कौशल को प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय तीन चरणों में वर्गीकृत करते हैं।

1. प्रथम चरण - प्रथम चरण में यह निर्धारित किया जाता है कि कौशल की प्रकृति क्या है वह सामान्य कौशल है अथवा विशिष्ट। इसका निर्धारण करने के उपरान्त कौशल को किस प्रकार प्रदर्शित किया जाता है उसकी व्याख्या लिखी जाती है लेकिन इस प्रकार के कौशल की समस्त प्रमुख बातों की ही व्याख्या की जाती है।

2. द्वितीय चरण - जैव-गतिकी विश्लेषण का प्रक्रिया अत्यंत ही महत्वपूर्ण होता है।

क्योंकि सभी प्रमुख बातें इसमें निहित रहती हैं। इस चरण के लिए शरीर क्रिया विज्ञान तथा जैव-गतिकी विज्ञान का ज्ञान होना अनिवार्य है क्योंकि इस चरण में कौशल प्रदर्शित करते समय कौन-कौन सी अस्थि, कौन-कौन से जोड़, उत्तोलक आदि प्रयोग में लाये जा रहे हैं। तथा किस क्रमबद्धता से भाग ले रहे हैं इसकी विवेचना की जाती है। इस चरण को हम तीन भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं- 

(क) प्रारम्भिक अवस्था,

(ख) मुख्य अवस्था,

(ग) गति अनुकरण।

कभी-कभी द्वितीय चरण को भी हम दो भागों में ही विभक्त करते हैं क्योंकि इसमें गति अनुसरण की जरूरत नहीं होती है। उदाहरणार्थ, क्रिकेट में फॉरवर्ड डिफेन्स में गति अनुसरण की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि यह रक्षात्मक कौशल है ठीक इसी प्रकार हॉकी में गेंद को रोकते समय ।

(क) कौशल की प्रारम्भिक अवस्था

जब भी कोई खिलाड़ी किसी प्रशिक्षण अथवा खेल प्रतियोगिता के समय किसी कौशल को प्रदर्शित करता है तो इस स्थिति में वह एक आरम्भिक स्थिति को प्राप्त करता है और यह वही अवस्था है जिसमें खिलाड़ी अपनी गति को प्रारम्भ करता है। उदाहरणार्थ, जब लॉन टेनिस का खिलाड़ी सर्विस करने हेतु तैयार होता है अथवा वॉलीबाल का खिलाड़ी सर्विस के लिए तैयार होता है तो यह खिलाड़ी की कौशल की आरम्भिक अवस्था कही जाती है। इस अवस्था के दौरान किस श्रेणी का उत्तोलक, अस्थि, जोड़ ने हिस्सा लिया तथा उसकी स्थिति क्या है ? इसकी व्याख्या अथवा वर्णन किया जाता है। इस अवस्था को तैयारी की अवस्था भी कहते हैं।

(ख) मुख्य अवस्था

यह किसी भी कौशल का प्रमुख अंग होती है तथा प्रारम्भिक अवस्था के पश्चात् की अवस्था होती है। इस अवस्था में कौशल की छोटी से छोटी बातों का विश्लेषण किया जाता है खिलाड़ी इसी अवस्था में कौशल को पूर्ण रूप से प्रदर्शित करता है। खिलाड़ी प्रारम्भिक अवस्था प्राप्त करने के उपरान्त कौशल को प्रदर्शित करता है। उदाहरणार्थ, टेनिस का खिलाड़ी सर्वप्रथम सर्विस के लिए खड़ा होता है यह उसकी प्रारम्भिक अवस्था कहलाती है। लेकिन खिलाड़ी जैसे ही रैकेट से बॉल को मारता है यह उसकी मुख्य अवस्था कहलायेगी। मुख्य अवस्था को प्रदर्शित करते समय खिलाड़ी द्वारा किस प्रकार की अस्थि अथवा किस अस्थि ने कार्य किया है, कौन-कौन से जोड़ कौशल करते समय प्रयुक्त किये गये हैं इसका विश्लेषण किया जाता है।

(ग) गति अनुसरण

यह किसी भी कौशल की अन्तिम अवस्था है यह तैयारी की अवस्था और मुख्य अवस्था के पश्चात् की अवस्था है। गति अनुकरण का प्रमुख उद्देश्य यह है कि कौशल करने के उपरान्त शरीर को पूर्ण स्थायित्व प्राप्त हो तथा उसका सन्तुलन बना रहे।

खिलाड़ी कौशल के मुख्य भाग करने के उपरान्त उसी दिशा में गति करता है जिसमें कि उसने किसी वस्तु को उपकरण के द्वारा गति प्रदान की है गति अनुसरण के परिणामस्वरूप खिलाड़ियों को चोट लगने की सम्भावना कम हो जाती है। इस अवस्था के दौरान खिलाड़ी की कौन-कौन सी अस्थि, जोड़, उत्तोलक आदि प्रयुक्त हैं इसका विश्लेषण किया जाता है।

लेकिन कुछ कौशल इस प्रकार के भी हैं जिसमें गति अनुसरण की जरूरत नहीं होती है अर्थात् तृतीय अवस्था की जरूरत नहीं होती है। जैसे क्रिकेट में फॉरवर्ड डिफेन्स में गति अनुसरण की जरूरत नहीं होती है क्योंकि यह एक रक्षात्मक कौशल है तथा इस कौशल की दूसरी अवस्था के पश्चात् ही खिलाड़ी को स्थायित्व प्राप्त हो पाता है ।

3. अन्तिम चरण - इस अन्तिम चरण में खिलाड़ी के कौशल में प्रयुक्त होने वाली माँसपेशियों का विवरण अर्थात् विश्लेषण किया जाता है लेकिन एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य के शरीर में लगभग 600 माँसपेशियाँ होती हैं। इस कारण कौशल में प्रयुक्त की जाने वाली सभी माँसपेशियों का विश्लेषण असम्भव तथा अनुचित होता है, लेकिन उन माँसपेशियों का विश्लेषण जरूर किया जाता है जो प्रमुख रूप से कौशल को प्रदर्शित करने में प्रयुक्त की गई हैं, जैसे दौड़ते समय की माँसपेशी, फेंकते समय पैक्टोरियल माँसपेशी आदि।

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