व्यक्तित्व विकास क्या है ? - अर्थ , परिभाषा , महत्व, उद्देश्य एवं महत्वपूर्ण जानकारी।

व्यक्तित्व विकास क्या है?(what is personality development)

व्यक्तित्व विकास क्या है? आधुनिक युग में व्यक्तित्व के विषय में अनेक धारणाएँ प्रचलित हैं। सामान्यतया व्यक्तित्व का अभिप्राय व्यक्ति के बाह्य रूप, रंग तथा शारीरिक गठन आदि को माना जाता है। यह व्यक्तित्व के मात्र एक अंग हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से 'व्यक्तित्व' व्यक्ति के व्यवहार का आइना है जिसकी अभिव्यक्ति व्यक्ति के आचार-विचार, व्यवहार, क्रियाओं एवं उसकी गतिविधियों द्वारा होती है। व्यक्ति के आचार अथवा व्यवहार में शारीरिक, मानसिक संवेगात्मक और सामाजिक गुणों का मिश्रण होता है, जिसमें एकता और व्यवस्था कायम रहती है। इस तरह व्यक्तित्व व्यक्ति के व्यवहार का समग्र गुण है।

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व्यक्तित्व विकास क्या है ? - अर्थ , परिभाषा , महत्व, उद्देश्य एवं महत्वपूर्ण जानकारी।

व्यक्तित्व का अर्थ (Meaning of Personality )

शाब्दिक दृष्टि से 'व्यक्तित्व' अंग्रेजी भाषा के 'पर्सनैलटी' (Personality) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। यह शब्द लॅटिन भाषा के परसोना (Persona) से विकास हुआ है जिसका अभिप्राय नकली चेहरा (Masky हैं। प्राचीन समयावधि में व्यक्तित्व का अर्थ शारीरिक रचना, रंग-रूप, वेशभूषा आदि से। लगाया जाता था। जो व्यक्ति बाहरी गुणों से जितना अधिक प्रभावित कर सकता था, वह उतना ही अधिक प्रभावशाली माना जाता था (जैसे अक्सर भारतीय समाज में विभिन्न 'मुखौटा' धारण किये बहरूपिये दिख जाते हैं) लेकिन सच तो यह हैं कि व्यक्तित्व का निर्धारण अनेक प्रतिकारकों से होता है।

मनोवैज्ञानिक भाषा में कहा जाता है कि व्यक्ति में आन्तरिक और बाह्य जितनी भी विशेषताएँ, योग्यताएँ और विलक्षणताएँ होती हैं, उन सबका समन्वित रूप ही व्यक्तित्व है।

 व्यक्तित्व की परिभाषा ( Definition of Personality )

व्यक्तित्व विकास क्या है?: व्यक्तित्व के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है—

(Rex Rock) रेक्स रॉक के अनुसार, "व्यक्तित्व समाज द्वारा मान्य सामान्य गुणों का सन्तुलन है।"

(Guilford) गिलफोर्ड के अनुसार, “ गुणों का समन्वित रूप व्यक्तित्व है।" 

(Allport) ऑलपोर्ट के अनुसार, "व्यक्तित्व व्यक्ति के अन्दर उस मनोशारीरिक संस्थानों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसका अनूठा समायोजन स्थापित करता है। "

व्यक्तित्व विकास का महत्व (Importance of Personality Development)

व्यक्तित्व विकास एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो हमारे व्यक्तिगत और वास्तविक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका महत्व निम्नलिखित कारणों से प्राप्त होता है।
  1. आत्म-पहचान का विकास - व्यक्तित्व विकास हमें अपनी स्वभाविक पहचान की ओर ले जाता है। यह हमें हमारी सामरिक, भावनात्मक, आदर्श, और मूल्यांकन प्रणाली को समझने में मदद करता है। यह आत्म-परिचय और आत्म-विश्लेषण की क्षमता को विकसित करता है जो हमें अपने स्वाभाविक क्षमताओं, कमजोरियों, और अवसरों को पहचानने में मदद करता है।
  2. स्वतंत्रता और नियंत्रण की क्षमता - व्यक्तित्व विकास द्वारा हमें स्वतंत्रता और नियंत्रण की क्षमता प्राप्त होती है। यह हमें अपने भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को प्रबंधित करना, समस्याओं का सामना करना और संघर्ष को परिभाषित करने में सहायता करता है।
  3. संवेदनशीलता और संचार कौशल- व्यक्तित्व विकास हमारे संवेदनशीलता को विकसित करता है।
  4. सामरिक और पेशेवर विकास- व्यक्तित्व विकास हमें सामरिक और पेशेवर जीवन में महत्वपूर्ण कौशलों का विकास करने में मदद करता है। यह हमें सहयोग, टीम नेतृत्व, संघटना, संवाद, और समस्या समाधान के कौशलों को प्रभावी ढंग से समझने और विकसित करने में मदद करता है। इससे हमारे करियर में सफलता प्राप्त करने की क्षमता में सुधार होता है।
  5. संघर्षों का परिचय - व्यक्तित्व विकास हमें संघर्षों का सामना करने और उन्हें परिभाषित करने की क्षमता प्रदान करता है। इसमें समस्याओं, विपरीताधिकारों, और अड़चनों का सामना करने की क्षमता होती है और हमें समय के साथ आत्मविश्वास विकसित करने में मदद करता है।
  6. सामरिक और सामाजिक महत्वपूर्णता - व्यक्तित्व विकास हमें सामरिक और सामाजिक माध्यमों में संपर्क बनाए रखने, संगठनात्मक योग्यताओं को विकसित करने, और साझा मानवीय मुद्दों के साथ संबंध निर्माण करने में मदद करता है। यह हमारी सामरिक, परिवारिक, और सामाजिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण रूप से योगदान देता है। इसके माध्यम से हम अपने सामाजिक कर्तव्यों को समझते हैं, सामाजिक न्याय के प्रति संवेदनशील होते हैं और समाज के साथ मिलजुलकर काम करते हैं।
व्यक्तित्व विकास अन्य लाभों के साथ-साथ हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में अनुभव और संगठन को भी सुधारता है। यह हमारे अभियानों, लक्ष्यों, और सपनों की प्राप्ति में मदद करता है और सामरिक, पारिवारिक और व्यावसायिक संबंधों को मजबूत करता है।


समस्याओं और चुनौतियों से निपटने के लिए सुविधाजनक रणनीतियाँ बनाने में, स्वयं-निर्धारित जीवन का आनंद लेने में, सहयोगी और सुझाव देने वाले संबंधों को विकसित करने में, और अपने प्रभावशाली और सफल व्यक्तित्व के माध्यम से अच्छे प्रभाव को छोड़ने में व्यक्तित्व विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए, व्यक्तित्व विकास हमारे व्यक्तिगत, सामाजिक,और सामरिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण है।

व्यक्तित्व विकास के उद्देश्य( personality development objectives)

व्यक्तित्व विकास के उद्देश्य व्यक्ति के सामान्य और आदर्श विकास को प्रोत्साहित करने और सुखी, सफल और समृद्ध जीवन की प्राप्ति में सहायता करने के लिए होते हैं। ये उद्देश्य व्यक्ति के मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और नैतिक पहलुओं का विकास करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

निम्नलिखित हैं कुछ मुख्य उद्देश्य जो व्यक्तित्व विकास की प्राथमिकताएं हो सकती हैं।
  1. स्वयं-परिचय:- व्यक्तित्व विकास का मुख्य उद्देश्य है व्यक्ति के अपने आप को समझने और स्वीकार करने की क्षमता का विकास करना। इससे व्यक्ति अपने स्वाभाविक गुणों, क्षमताओं, रुचियों, रूपरेखा और महत्वपूर्ण मूल्यों को पहचान सकता है।
  2. स्वावलंबन:- एक सुखी और सफल जीवन के लिए, व्यक्ति को स्वावलंबी बनने की क्षमता का विकास करना चाहिए। यह व्यक्ति को निर्णय लेने, निर्माण करने, उच्चतम स्तर का प्रदर्शन करने और समस्याओं का सामना करने की क्षमता प्रदान करता है।
  3. समाजीकरण:- व्यक्तित्व विकास के उद्देश्य में से एक समाजीकरण का अहम आंश है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को सामाजिक मान्यताओं, संबंधों और समुदाय के साथ एक सही तरीके से मेल खाना चाहिए। इसके माध्यम से, व्यक्ति अपने सामाजिक कर्तव्यों को समझता है, समाज में सहयोगी बनता है और समाज के लिए सकारात्मक परिवर्तन का सहयोग करता है। समाजीकरण व्यक्ति के व्यक्तिगत और सामाजिक विकास को संपूर्ण करने में मदद करता है।
  4. स्वतंत्रता:- व्यक्तित्व विकास का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य स्वतंत्रता का विकास है। यह व्यक्ति को अपने विचारों, विचारधारा, निर्णयों और कार्यों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने की क्षमता प्रदान करता है। स्वतंत्रता के माध्यम से, व्यक्ति अपनी अपेक्षाओं, लक्ष्यों और स्वयं के प्रति अधिक समर्पण दिखा सकता है और अपने जीवन की निर्माणाधीनता को संजोया जा सकता है।
  5. नैतिक मूल्यों का विकास:- व्यक्तित्व विकास के उद्देश्य में एक महत्वपूर्ण विषय है नैतिक मूल्यों का विकास। यह उद्देश्य व्यक्ति के आचारिक मानसिकता, नैतिकता और न्याय संबंधी मूल्यों का विकास करने पर जोर देता है। व्यक्ति को ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, वचनवद्धता, सम्मान, साझा-भागीदारी, न्यायप्रियता, कर्तव्यनिष्ठा, दया, सहानुभूति, और सद्भावना जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को समझना और अपनाना चाहिए। नैतिक मूल्यों का विकास व्यक्ति को एक न्यायपूर्ण, ईमानदार और समर्पित नागरिक के रूप में संगठित करता है।
  6. कौशल विकास:- व्यक्तित्व विकास का उद्देश्य व्यक्ति के कौशलों का विकास करना भी है। यह कौशल शामिल करते हैं संचार कौशल, संघटन कौशल, नेतृत्व कौशल, समस्या समाधान कौशल, संघर्ष प्रबंधन कौशल, समय प्रबंधन कौशल, सहयोग कौशल और नवाचार कौशल जैसे। यह कौशल व्यक्ति को सक्षम बनाते है।
  7. कौशल विकास:- व्यक्तित्व विकास का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है कौशलिक विकास करना। यह कौशल शामिल करते हैं संचार कौशल, संगठन कौशल, नेतृत्व कौशल, समस्या समाधान कौशल, संघर्ष प्रबंधन कौशल, समय प्रबंधन कौशल, सहयोग कौशल और नवाचार कौशल जैसे। यह कौशल व्यक्ति को सक्षम बनाते हैं अपने कार्य को समयबद्धता से निर्धारित करने, संगठित और प्रभावी संचार करने, समस्याओं का समाधान करने, सहयोग करने और नवीनता को अपनाने की क्षमता का विकास करते हैं। कौशल विकास व्यक्ति को स्वतंत्रता, समृद्धि और प्रगति की ओर अग्रसर करने में मदद करता है।
  8. स्वास्थ्य और संतुलन:- व्यक्तित्व विकास का उद्देश्य व्यक्ति के स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन का विकास करना है। यह मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए समर्पित है। व्यक्ति को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने, स्वस्थ आहार लेने, नियमित व्यायाम करने, मानसिक स्थिति का संतुलन बनाने में सहायक है।

व्यक्तित्व के प्रकार (Types of Personality)

व्यक्तित्व के प्रकार से अभिप्राय व्यक्तियों के ऐसे वर्ग से है जो व्यक्ति गुणों की दृष्टि से परस्पर समान है एवं दूसरे प्रकार से पर्याप्त असमानता रखते हैं। व्यक्तित्व के अनेक प्रकार हैं। जिसे मनोवैज्ञानिकों के दृष्टिकोणों के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) सामाजिक दृष्टिकोण (Social View point) मनोवैज्ञानिक जुंग के अनुसार सामाजिक अन्तर्क्रिया की दृष्टि से व्यक्तित्व के तीन प्रकार होते हैं

(i) अन्तर्मुखी (Introvert ) — इस तरह के व्यक्तित्व में व्यक्ति का स्वभाव, आदतें और गुण बाह्य रूप में प्रकट नहीं होते हैं। ये आत्म- केन्द्रित होते हैं और सदैव स्वयं में खोये रहते " हैं। ऐसे व्यक्ति संकोची, लज्जाशील, एकान्तप्रिय, मितभाषी, शीघ्र घबराने वाले, आत्मचिन्तक एवं असामाजिक प्रवृत्ति के होते हैं।

(ii) बहिर्मुखी (Extrovert ) — इस तरह के व्यक्तित्व में व्यक्ति की रुचि बाह्य जगत् में होती है। ऐसे व्यक्ति व्यवहार कुशल, सामाजिक, आशावादी, साहसिक, आक्रामक एवं जनप्रिय होते हैं।

(iii) उभयमुखा (Ambivert ) - इस तरह के व्यक्तित्व में उपर्युक्त दोनों प्रकार पाये ते हैं। ऐसे व्यक्ति अन्तर्मुखी एवं बहिर्मुखी दोनों गुणों से परिपूर्ण होते हैं। 

(2) मूल्य दृष्टिकोण (Value View-point )— मनोवैज्ञानिक स्प्रेन्जर (Sprenger) के मूल्य की दृष्टि से व्यक्तित्व अनुसार छः प्रकार का होता है- 

(i) सैद्धान्तिक (Theoretical)- इस तरह के व्यक्ति स्वयं के सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करने वाले, ज्ञान की लालसा रखने वाले एवं बौद्धिक कार्यों ए व्यक्तियों में रुचि रखते है।

(ii) आर्थिक (Economic)— इस तरह के व्यक्ति का ध्यान सदैव धनार्जन में लगता (iii) धार्मिक (Religious ) — इस तरह के व्यक्ति ईश्वर एवं धर्म में पूर्णत: श्रद्धा एवं विश्वास रखते हैं।

(iv) राजनीतिक (Political ) — इस तरह के व्यक्ति राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित एवं क्रिया-कलाप में लिप्त रहते हैं। 

(v) सामाजिक (Social) — इस तरह के व्यक्ति सहृदयी, लोकसेवक, त्यागी एवं परोपकारी होते हैं।

(vi) कलात्मक (Asthetic) – इस तरह के व्यक्ति सौन्दर्य एवं ललित कला, संगीत, बागवानी, नृत्य, काव्य आदि कलात्मक सौन्दर्य में रुचि रखते हैं।

(3) शारीरिक रचना दृष्टिकोण (Constitutional View point) – मनोवैज्ञानिक केचमर (Kretschmer) के अनुसार शरीर रचना की दृष्टि से व्यक्तित्व तीन प्रकार के होते हैं।

(i) लम्बकाय (Asthetic ) — इस तरह के व्यक्ति लम्बे, दुर्बल शरीर वाले होते हैं। 

(ii) सुडौलकाय (Athletic) — इस तरह के व्यक्ति हृष्ट-पुष्ट एवं स्वस्थ शरीर वाले होते हैं।

(iii) गोलकाय (Picnic ) — इस तरह के व्यक्ति नाटे, मोटे एवं गोलकाय प्रकार के होते हैं।

(4) भारतीय दृष्टिकोण (Indian View-point) – भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्ति तीन प्रकार के होते हैं-

(i) राजसी - इस तरह के व्यक्ति में रजोगुण की अधिकता होती है, चंचल, उत्तेजनापूर्ण, क्रियाशील, साहसी एवं वीर होते हैं। (ii) तामसी — इस तरह के व्यक्ति में तमोगुण की अधिकता होती है, जो आलसी, क्रोधी, प्रमादी, अनावश्यक कलह करने वाले होते हैं।

(iii) सात्विक - इस तरह के व्यक्ति में सत्वगुण की अधिकता होती है जो ज्ञानी, शान्त, निर्मल एवं धार्मिक गुण वाले होते हैं। व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Personality) यद्यपि जन्म के समय व्यक्ति में कुछ जन्मजात विशेषताएँ होती हैं तथापि उसके व्यक्तित्व का विकास शनैः-शनै: एक क्रमबद्ध ढंग से होता है। 

व्यक्ति के प्रत्येक प्रकार के विकास पर प्रमुख रूप से अग्रलिखित दो प्रकार के प्रभाव डालते हैं-

(1) आनुवंशिक कारक (2) पर्यावरणीय कारक

(I) आनुवंशिक कारक- इसका आशय व्यक्ति की जैविक संरचना तथा क्रियाओं से होता है इसलिए व्यक्तित्व के आनुवंशिक कारकों को जैविक कारक भी कहा जाता है। व्यक्तित्व के आनुवंशिक कारकों के मुख्य रूप से निम्नलिखित कारक आते है ।

(1) शरीर (Physique)—यदि व्यक्ति का शरीर रूप-रंग, भार, कद, आकर्षण, स्वस्थ एवं सुन्दरतायुक्त है तो उसके व्यक्तित्व को अच्छा एवं उच्च कोटि का माना जाता है अर्थात शारीरिक बनावट का भी व्यक्तित्व के विकास पर प्रभाव पड़ता है।

(2) अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine Glands)- इसे नलिका विहीन ग्रन्थि कहते हैं क्योंकि यह स्वयं द्वारा निर्मित हारमोन्स को बगैर किसी नलिका के सीधे रक अन्दर छोड़ती है। हारर्मोन्स रक्त में मिलकर शरीर का विकास करता है। यदि इन ग्रन्थियों द्वारा उचित कार्य नहीं किया जाता तो शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न हो जाती है और व्यक्ति की आकृति, गठन, स्वास्थ्य, संवेगशीलता, बुद्धि आदि प्रभावित होती है। शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाली प्रमुख अन्त नवी ग्रन्थियों निम्नलिखित हैं-

(i) गल ग्रन्थि (Thyroid) - यदि गल ग्रन्थि का स्राव आवश्यकता से अधिक होता है। तो व्यक्ति तनाव, चिन्ता, उत्तेजना एवं रोगग्रस्त हो जाता है और यदि आवश्यकता से कम होता है तो व्यक्ति थकान एवं मानसिक दुर्बलता का शिकार हो जाता है। अतः स्पष्ट है कि यदि सन्तुलित मात्रा में स्रावित नहीं होती है तो व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक विकास भी सन्तुलित नहीं हो पाता है।

(ii) उपवृक्क (Adrenal Gland) - इसके द्वारा स्त्रावित होने वाला एड्रीनल रस व्यक्ति के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित एवं नियन्त्रित करता है।

(iii) पीयूष ग्रन्थि (Pituitary Gland) – इसके द्वारा स्त्रावित होने वाला स्लाव अन्य ग्रन्थियों पर नियन्त्रण रखता है क्योंकि यह स्लाव अन्य ग्रन्थि के स्रावों में सन्तुलन कायम करता है। यह पीयूष ग्रन्थि आवश्यकता से अधिक स्रावित होती है तो व्यक्ति अत्यधिक लम्बा और कम स्रावित होता है तो व्यक्ति एकदम छोटा अर्थात् बौनेपन का शिकार हो जाता है। 

(iv) यौन ग्रन्थि (Sex Gland) — इसके उचित स्रावण से स्त्री एवं पुरुष का सन्तुलित विकास होता है। यदि इसमें किसी प्रकार असन्तुलन उत्पन्न होता है तो स्त्री में पुरुष एवं पुरुष में स्त्री जैसे गुण आ जाते हैं, जैसे—किन्नर ।

(3) तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System) - इस भाग का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग मस्तिष्क होता है। किसी उद्दीपन अथवा हलचल की सूचना तन्त्रिकाओं के माध्यम से मस्तिष्क को मिलती है तदोपरान्त मस्तिष्क तन्त्रिका आदेश देता है, तब व्यक्ति उस उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करता है। अतः इसमें किसी भी तरह की समस्या आने पर व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावित होता है।

(4) बुद्धि (Intelligence ) — व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका बुद्धि द्वारा अदा की जाती है। कम या अधिक बुद्धि व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। 

(II) पर्यावरणीय कारक- व्यक्तित्व के पर्यावरणीय कारकों में निम्नलिखित कारक आते हैं-

(1) भौतिक पर्यावरण - व्यक्ति के व्यक्तित्व पर भौतिक पर्यावरण का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, जैसे—सर्दी, गर्मी, स्थलाकृति आदि।

(2) सामाजिक पर्यावरण— व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है और वह जिस तरह के समाज में रहता है उसका प्रभाव उसके व्यक्तित्व पर पड़ता है, जैसे—माता-पिता का प्रभाव, परिवार का प्रभाव, पास-पड़ोस का प्रभाव, समूह का प्रभाव, मित्रों का प्रभाव तथा विद्यालय आदि का प्रभाव। अच्छे एवं उचित वातावरण साधनों से बालक के व्यक्तित्व में आवश्यक विकास होता है।

(3) आर्थिक पर्यावरण- माता-पिता की आर्थिक स्थिति का व्यापक प्रभाव व्यक्तित्व पर पड़ता है। सम्पन्न लोगों का मानसिक विकास अधिक होता है। जैसे— बहुत से बालक धनाभाव के कारण शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं जबकि सम्पन्न लोग अच्छी एवं महँगी शिक्षा ग्रहण करके अपने व्यक्तित्व में चार चाँद लगा लेते हैं जबकि गरीब व्यक्ति धनाभाव एवं के कारण चोरी एवं झूठ बोलना आदि निम्नतम कार्य करने लगता है जिससे उसका व्यक्तित्व गर्त में चला जाता है।

(4) सांस्कृतिक पर्यावरण- व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सांस्कृतिक वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति का जिस तरह के सांस्कृतिक वातावरण में पालन-पोषण होता है, उसका व्यक्तित्व उसी तरह का हो जाता है। वह आज्ञा का पालन, धर्म भक्ति, गुरुभक्ति, राष्ट्र-प्रेम, दयाभाव, कर्तव्य पालन, सहनशीलता, ईमानदारी जैसे गुण अपनी संस्कृति से ही अर्जित करता है।

उपर्युक्त विवेचनोपरान्त स्पष्ट है कि व्यक्तित्व आनुवंशिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव का योग न होकर गुणनफल होता है (व्यक्तित्व = आनुवंशिक x पर्यावरण) इन दोनों में से किसी एक के न होने पर या अभाव में व्यक्तित्व निर्माण की कल्पना नहीं की जा सकती है । अतः कोई व्यक्ति क्या है ? स्त्री या पुरुष, लम्बा या नाटा, गोरा या काला, सुन्दर या कुरूप, तीव्र बुद्धि वाला या मन्द बुद्धि वाला, ये सब आनुवंशिकता पर अत्यधिक अवलम्बित रहता है एवं व्यक्ति कहाँ रहता है-ज्ञान का अज्ञान, झूठापन या सच्चापन, राजा या रंक आदि यह सब पर्यावरणीय कारक पर अधिक और आनुवंशिक पर कम निर्भर रहता है, लेकिन एक के बगैर दूसरा अपूर्ण एवं प्रभावहीन रहता है। अतः यह आवश्यक है कि बालक के व्यक्तित्व के उचित विकास के लिए आनुवंशिक एवं पर्यावरणीय दोनों ही कारकों पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए।

व्यक्तित्व के तत्व, अवधारणा अथवा पहलू (Traits, Dimensions or Aspects of Personality) 

व्यक्तित्व के तत्वों के ज्ञान से हमें व्यक्तित्व के अर्थ को समझने में सहायता मिलती है।  व्यक्तित्व के प्रमुख तत्व या पक्ष निम्नलिखित हैं-

व्यक्तित्व के पक्ष (Aspects of Personality)

  1. शारीरिक पक्ष (Physical Aspect ) 
  2. बौद्धिक पक्ष (Intellectual Aspect) 
  3. सामाजिक पक्ष (Social Aspect ) 
  4. भावात्मक पक्ष (Emotional Aspect) 
  5. नैतिक पक्ष (Moral Aspect )

(1) शारीरिक पक्ष (Physical Aspect ) — शारीरिक तत्वों में रूप, आकार, भार, आवाज, नाड़ी संस्थान, ग्रन्थि संस्थान आदि सम्मिलित हैं। यदि व्यक्ति लम्बा, स्वस्थ और रूपवान है तो निश्चित रूप से उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली और आकर्षक वस्तुतः ति है। प्रो. मफी के अनुसार, "अच्छे व्यक्तित्व का अर्थ है वातावरण में समायोजन की शक्ति का होना।' • व्यक्ति का सारा व्यवहार वातावरण तथा उसके अपने आन्तरिक जीवन के साथ समायोजन ही है। व्यक्ति क्या करेगा ? यह उसकी शारीरिक संरचना, वर्तमान स्थितिया वस्तुत: दृष्टा मनःस्थितियों पर निर्भर करता है। एक प्रोफेसर, एक डॉक्टर, एक व्यापारी एक सिपाही, एक पति सबका व्यवहार, बातावरण में समायोजित होने की विधि है। यह समायोजन व्यक्ति की अपनी आवश्यकताओं के अनुसार वातावरण की स्थितियों में क्रमिक सुधार की ओर अग्रसर होता है। 

(5) लक्ष्य निर्देशित (Goal-Directed) - व्यक्तित्व किसी लक्ष्य या उद्देश्य द्वारा निर्देशित होता है। सामान्यतः व्यक्ति का व्यवहार उद्देश्यपूर्ण होता है मनुष्य को कुछ लक्ष्य प्राप्त करने होते हैं। व्यक्तित्व की शक्ति उसे उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रेरित करती है।

(6) गतिशील और लचीला (Dynamic and Flexible) व्यक्तित्व की प्रकृति गतिशील होती है। व्यक्तित्व स्थिर नहीं होता। इसमें हमेशा परिवर्तन और सुधार होते रहते हैं। व्यक्ति को अपने वातावरण तथा अपनी अन्तर्शक्तियों के साथ संघर्ष करना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप उसके व्यक्तित्व में कई परिवर्तन होते रहते हैं। इससे व्यक्तित्व की प्रकृति गतिशील बनती हैं। डैशीयल के कथनानुसार, "लचीलापन तथा समायोजन व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण तत्व हैं।"

(7) एकता और समन्वय (Unity and Integrability ) व्यक्तित्व में एकता और समन्वयात्मकता के गुण भी होते हैं। व्यक्तित्व एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में काम करता है। व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, भावात्मक, सामाजिक तथा अन्य कार्य उसके समूचे व्यक्तित्व द्वारा प्रभावित होते हैं। 

व्यक्तित्व एवं खेल प्रदर्शन का सम्बन्ध(Relationship between personality and sports performance)

व्यक्तित्व जीवन में शारीरिक क्रियाओं का प्राचीन समय से ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पहले व्यक्ति भाग-दौड़ उछल-कूद, शिकार कौशल तथा कुश्ती आदि शारीरिक क्रियाओं द्वारा अपने को चुस्त-दुरुस्त रखता था जिससे उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर निखार आता था। जबकि आज इसे एक विषय के रूप में स्वीकार कर इसके महत्व को और बढ़ा दिया गया है। आज केवल विद्यालयों में ही नहीं, बल्कि महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में उच्च स्तर के को तैयार किया जा रहा है, जो आगे चलकर खेल प्रतियोगिताओं में अपने व्यक्तित्व को स्थापित कर रहे हैं। आज खेल प्रदर्शन के प्रति लोगों का उत्साह देखते ही बनता है और इसका मुख्य कारण खेल क्रियाओं का व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव है। इन शारीरिक क्रियाओं से व्यक्ति का पूरा शरीर क्रियाशील रहता है जिससे वह लम्बे समय तक निरोगी तथा स्वस्थ बना रहता है, परिणामस्वरूप व्यक्ति का व्यक्तित्व मजबूत बनता है। व्यक्तित्व एवं खेल प्रदर्शन के सम्बन्ध को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

(1) व्यक्ति की विभिन्न मानसिक प्रक्रियाओं में सन्तुलन होना चाहिए। जानने महसूस करने और क्रिया करने के उसके सारे अनुभव एक-दूसरे के साथ समायोजित होने चाहिए। तभी वह खेल के मैदान में उत्तम प्रदर्शन कर सकता है। खिलाड़ी के लिए टीम के साथ सन्तुलन ही उसे विरोधी दल पर विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(2) उत्तम व्यक्तित्व वाला खिलाड़ी वातावरण के साथ समायोजन अच्छी तरह से कर सकता है। स्वयं को समायोजित करते हुए विरोधी खिलाड़ी अथवा दल की ताकत व कमजोरी का स्पष्ट रूप से ज्ञान होना चाहिए क्योंकि उसकी ताकत व कमजोरी का ज्ञान होने पर ही उत्तम खेल प्रदर्शन निर्भर करता है ।

(3) चुस्त-दुरुस्त कद-काठी, सुडौल काया, सुमधुर वाणी तथा अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य उत्तम खिलाड़ी के व्यक्तित्व के लिए अत्यन्त आवश्यक है। तभी वह खेल प्रदर्शन 'अच्छा कर सकता है । उदाहरण–कबड्डी तथा रस्सा-कसी जैसी प्रतियोगिताओं के लिए सुडौल काया वाले खिलाड़ियों का चयन करना उचित रहेगा जबकि दौड़, खो-खो तथा फुटबाल जैसी प्रतियोगिताओं के लिए फुर्तीले शरीर वाले खिलाड़ियों का चयन उत्तम खेल प्रदर्शन के लिए आवश्यक है।

(4) स्वयं के प्रति मनोवृत्ति में स्वीकृति और सकारात्मक स्व- धारणा की विशेषता है। एकीकृत व्यक्ति उपयोगी और महत्वपूर्ण महसूस होता है । वह महसूस करता है कि दूसरों द्वारा उसे सम्मान दिया जाता है और दूसरे को उस पर और उसकी भावी सफलता पर भरोसा है। मैदान में वह अपने तथा अपनी टीम के खेल प्रदर्शन से सन्तुष्ट रहता है। इसे ही (व्यक्तित्व विकास क्या है )कहते है।


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