निरीक्षण विधि क्या है - अर्थ, परिभाषा, प्रकार, महत्व, विशेषताएं, प्रतिपादक, गुण और दोष।

निरीक्षण विधि क्या है (Observation Vidhi kya hai)

निरीक्षण विधि समस्त विधियों की जनक है। इस विधि के द्वारा ही प्रयोगों ने जन्म लिया है। निरीक्षण विधि एक महत्त्वपूर्ण विधि है। निरीक्षण विधि में अध्ययनकर्त्ता प्रत्यक्ष रूप से भाग लेता है। इस विधि में नेत्रों का पूरी तरह उपयोग होता है।

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निरीक्षण विधि क्या है (Observation Vidhi kya hai)

निरीक्षण विधि का अर्थ (Meaning of Observation Method)

किसी भी घटना का ध्यानपूर्वक क्रमबद्ध ढंग से विश्लेषण (अध्ययन) करना निरीक्षण कहलाता है। इस विधि के माध्यम से व्यक्ति की उन क्रियाओं का निरीक्षण किया जाता है जो क्रियाएँ स्वाभाविक परिस्थितियों में की जाती हैं। विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर निरीक्षण विधि को समझने का प्रयास करेंगे।

निरीक्षण विधि की परिभाषाएँ (Definitions of Observation Method)

"निरीक्षण विधि (Observation Method) में निरीक्षणकर्त्ता किसी दूसरे की मानसिक क्रियाओं का अध्ययन करता है । "

पी. वी. यंग (1954) के अनुसार, "निरीक्षण विधि में अध्ययनकर्त्ता तथ्यों का अध्ययन स्वयं अपनी आँखों से करता है। इस विधि के द्वारा सामूहिक व्यवहार तथा जटिल समस्याओं का अध्ययन भी सरलतापूर्वक किया जाता है।" 

मोसर के अनुसार, "निरीक्षण विधि को वैज्ञानिक पूछताछ की सर्वश्रेष्ठ विधि कहा जा सकता है। क्योंकि इस में तथा वाणी की अपेक्षा आँखों का अधिक प्रयोग किया जाता है।"

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह सिद्ध किया जा सकता है कि निरीक्षण विधि में निरोक्षण अत्यधिक सावधानीपूर्वक किया जाता है और निरीक्षणकर्त्ता अपनी आँखों का पूर्णरूपेण प्रयोग करके प्रत्यक्ष निरीक्षण में भाग लेता है। इस विधि से समूह का अध्ययन करना भी सम्भव होता है।

निरीक्षण विधि क्या है: इस विधि में निरीक्षणकर्त्ता उपयुक्त योजनाबद्ध तरीके से निरीक्षण के आधार पर सामग्री एकत्रित करके प्रदत्तों की व्याख्या एवं उनका सामान्यीकरण कर सकता है।

निरीक्षण विधि कितने प्रकार के होते है (What are the types of Observation method)

1. उपयुक्त योजना — इस विधि में अध्ययन आरम्भ करने से पूर्व यह आवश्यक होता है कि अध्ययन व्यवहार और समस्या के सम्बन्ध में पहले से ही योजना बना ली जाए अर्थात् अध्ययन आरम्भ करने से पहले यह निश्चित कर लेना चाहिए कि हमें किस प्रकार के व्यवहार व किन लोगों का निरीक्षण करना है ? निरीक्षण कार्य के लिए समय, स्थान व आवश्यक सामग्री आदि के सम्बन्ध में पहले से योजना बना लेने से अध्ययन के पश्चात् शुद्ध आँकड़ों के संकलन में अत्यधिक सहायता प्राप्त होती है।

जिस व्यक्ति का निरीक्षण किया जा रहा है उस व्यक्ति को यह मालूम नहीं चलना चाहिए कि उसका निरीक्षण किया जा रहा है। यदि उसे ज्ञात हो जाता है कि उसका निरीक्षण चल रहा है तो उसके व्यवहार में बनावटीपन का प्रवेश हो जाएगा जिससे सफल निरीक्षण असम्भव है। निरीक्षण विद्यालय भवनों में, विद्यालय प्रांगण में, शारीरिक क्रियाओं के अभ्यास के दौरान, खेल प्रशिक्षण के समय, मैदानों में किया जाना चाहिए।

2. व्यवहार का निरीक्षण करना— अध्ययन से सम्बन्धित सम्पूर्ण योजना बना लेने के पश्चात् नेत्रों की सहायता से व्यवहार का निरीक्षण आरम्भ किया है। निरीक्षण करते समय निरीक्षणकर्त्ता केवल उन्हीं व्यवहारों का निरीक्षण करता है, जो उसके निरीक्षण क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं व पूर्व नियोजित होते हैं निरीक्षणकर्ता देखे गये व्यवहारों को कलमबद्ध भी करता जाता है।

3. व्यवहारों को कलमबद्ध या किसी अन्य विधि से नोट करना— जिस व्यक्ति का निरीक्षण किया जा रहा है उसके निरीक्षण के पश्चात् उससे सम्बन्धित बातों को तुरन्त कलमबद्ध (लिख) कर लेना चाहिए। जब निरीक्षणकर्त्ता तथ्यों को कलमबद्ध कर रहा हो, तो उसे अपनी स्मरण शक्ति का उपयोग करना चाहिए। इससे कई भूलों से बना जा सकता है।

इस प्रकार निरीक्षणकर्त्ता प्रयोज्य के व्यवहारों का निरीक्षण करने के साथ उन्हें नोट भी करता है। आधुनिक समय में मूवी कैमरे का प्रयोग करने से वह किसी भी प्रकार की शारीरिक चेष्टाओं, हाव-भाव तथा व्यवहारों को सफलतापूर्वक कैमरे की रील पर अंकित सकता है। इसी प्रकार टेपरिकार्डर की सहायता से प्रयोज्य के सम्बन्धित संवादों को नोट कर सकता है। इनके माध्यम से निरीक्षण व रिकार्डिंग साथ-साथ हो जाती है। लेकिनइन उपकरणों का प्रयोग करते समय सदैव ध्यान रखना चाहिए कि जिस व्यक्ति का निरीक्षण किया जा रहा है वह इन उपकरणों के प्रति सचेत न हो।

4. व्याख्या और सामान्यीकरण- सामान्यीकरण के द्वारा हो वैज्ञानिक नियमों और सिद्धान्तों का निर्माण किया जाता है। वास्तव में यदि हम कहें कि मानव अनुभूति तथा व्यवहार के सम्बन्ध में सामान्य नियम निकालना निरीक्षण पद्धति का उद्देश्य हैं तो यह अनुचित नहीं होगा। इस प्रकार निरीक्षण का विश्लेषण करने के पश्चात् व्यवहार की व्याख्या की जाती है। मनोविज्ञान के अध्ययन अधिकांशत: प्रतिदर्श (Sample) की सहायता से किये जाते हैं। जब अध्ययन पशुओं अथवा मनुष्यों का प्रतिदर्श लेकर किये जाते हैं तब इस अवस्था में प्राप्त परिणामों के सामान्यीकरण की आवश्यकता होती है। सामान्यीकरण में यह जाता है कि प्रतिदर्श से प्राप्त परिणाम जनसंख्या पर कहाँ तक लागू होते हैं।

5. परामर्श एवं निर्देशन - शारीरिक शिक्षा एवं सामान्य शिक्षा दोनों में ही मनोविज्ञान को क्रियात्मक रूप में प्रयोग किया जाता है। इसलिए शिक्षार्थियों, खिलाड़ियों तथा एथलीट्स के व्यवहार का विश्लेषण (अध्ययन) करने के बाद उनमें वांछित परिवर्तन करने के लिए उनका आवश्यक निर्देशन करना चाहिए। उन्हें क्रियात्मक परामर्श देने चाहिए जिससे वह अपनी शारीरिक, मानसिक क्षमताओं तथा योग्यताओं को अधिकाधिक विकसित कर सकें। अब तक आपने जाना निरीक्षण विधि क्या है, अर्थ, परिभाषा, और प्रकार अब जाने महत्व के बारे में।

निरीक्षण विधि के महत्व (Importance of Observation Method) 

मनोविज्ञान में निरीक्षण विधि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जहाँ मनोविज्ञान अध्ययन करता है वहाँ निरीक्षण विधि का ही प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार निरीक्षण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके मुख्य लाभ, गुण या विशेषताएँ इस प्रकार है।

1. सरल अध्ययन ( Easy Study ) — इस विधि में कोई विशिष्ट परिस्थिति का निर्माण करने की अथवा नियन्त्रण रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। अर्थात् इस विधि में कि प्रयोगशाला या उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती है। निरीक्षण किसी भी स्थान एवं में किया जा सकता है साथ ही यह विधि अत्यन्त कम खर्चीली है। इसलिए प्राकृतिक मनोवैज्ञानिक घटनाओं का सरल रूप में अध्ययन कर सकते हैं। 

2. व्यवहार का अध्ययन (Study of Behaviour) किसी भी प्राणी के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए मनोविज्ञान को उसको मानसिक भावों तक पहुँचना होता है क्योंकि उसका व्यवहार मानसिक भावों से प्रेरित होता है। लेकिन मानसिक भावों तक मनोविज्ञान सीधा नहीं जा सकता है। इसके लिए प्राणी के विभिन्न व्यवहारों का निरीक्षण करना पड़ता है जैसे बाह्य क्रियाएँ, शारीरिक चेष्टाएँ एवं आचरण आदि।

3. व्यापक अध्ययन (Comprehensive Study)- निरीक्षण विधि द्वारा मानव व्यवहार सभी पक्षों का एक साथ व्यापक रूप से अध्ययन करना सम्भव होता है। इसी आधार पर विभिन्न चरों के मध्य कारण सम्बन्धों को ज्ञात करने में सरलता रहती है। इस विधि के द्वारा प्रयोग के अतिरिक्त दूसरे समूह तथा समुदायों का अध्ययन करना भी सम्भव होता है।

4. पशु व्यवहार भी अध्ययन में सम्मिलित (Study of Animal Behaviour)— विभिन्न परिस्थितियों कारणों से पशुओं के व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों का भी निरीक्षण विधि द्वारा करने का प्रयास किया जाता है।

5. प्रत्यक्ष अध्ययन (Direct Study ) — किसी व्यवहार, घटना या स्थिति को समझने के लिए अन्य प्रयोगात्मक स्थितियों में केवल अनुमान ही लगा सकते हैं जबकि निरीक्षण के आधार पर इनका प्रत्यक्ष अध्ययन किया जा सकता है।

6. भविष्य कथन करने की क्षमता (Potentiality of Prediction ) — वैज्ञानिक निरीक्षण तथा प्राप्त निष्कर्षो के आधार पर दो चरों के मध्य परस्पर प्रकार्यात्मक सम्बन्धों की सम्भावना को प्रयोग से पहले स्पष्ट किया जा सकता है।

7. शिशु व्यवहार का अध्ययन (Study of Child Behaviour) बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान के समस्त प्रयोगों का अध्ययन निरीक्षण विधि के द्वारा ही सम्भव है। निरीक्षण विधि द्वारा स्वाभाविक विकास सम्बन्धी व्यावहारिक परिवर्तनों का भी अध्ययन किया जाता है।

8. वैज्ञानिक उपकल्पनाओं का निर्माण (Formulation of Scienti Hypothesis) निरीक्षण विधि के द्वारा जो विस्तृत ज्ञान एकत्र किया जाता है उसके आधार पर विभिन्न वैज्ञानिक उपकल्पनाओं का निर्माण सरलतापूर्वक हो जाता है।

9. प्रारूपिक अध्ययन के रूप में (In the Form of Pilot Study ) — किसी प्रमुख घटना का अध्ययन करने से पहले उसके विषय में निरीक्षण के आधार पर तर्कपूर्ण सामग्री एकत्र की जाती है ताकि प्रमुख घटना का अध्ययन करते समय किसी प्रकार की रुकावट उत्पन्न न हो।

10. उच्च वैधता (High Validity ) – किसी घटना, स्थिति अथवा व्यवहार का 'अध्ययन जब उसकी मूल परिस्थिति में किया जाता है तो प्राप्त होने वाले निष्कर्ष अधिक वैध होते हैं।निरीक्षण विधि क्या है में आप ने जाना महत्व क्या है अब जाने गुण और दोष के बारे में।

निरीक्षण विधि के गुण और दोष (Merits and Demerits of Inspection Method) 

1. निरीक्षण आत्मनिष्ठता से पूर्ण (Full of Subjectivity ) – इस विधि में निरीक्षणकर्त्ता अपनी भावना संवेगों को निरीक्षित स्थिति पर आरोपित कर देता है जिसके कारण निरीक्षण आत्मनिष्ठ हो जाते हैं

2. निरीक्षण में कठोर नियन्त्रण का अभाव (Lack of Control) – वैज्ञानिक विधियों के द्वारा प्राप्त निष्कर्ष कृत्रिम तथा कठोर नियन्त्रण के कारण अधिक सत्य होते हैं किन्तु निरीक्षण विधि में नियन्त्रण अभाव होने के कारण प्राप्त निष्कर्ष सन्देहप्रद होते हैं।

3. निरीक्षण पर व्यक्तिगत रुचि का प्रभाव (Effect of Personal Interest)- प्रत्येक व्यक्ति की भिन्न-भिन्न रुचियों का प्रभाव निरीक्षण पर पड़ता है क्योंकि मनुष्य की यह मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति होती हैं कि जिस चीज में उसकी रुचि है उस पर वह अधिक ध्यान देता है।

4. निरीक्षण द्वारा केवल बाह्य व्यवहार का अध्ययन सम्भव (A Study of Over Behaviours) निरीक्षण के द्वारा व्यक्ति के बाह्य दृश्य पक्ष का अध्ययन करना ही सम्भव है जबकि व्यापक व्यवहार का आधार व्यक्ति का आन्तरिक पक्ष होता है जिससे व्यक्ति का व्यवहार प्रभावित होता है

5. निरीक्षण विधि में घटनाओं को पुनः उत्पन्न करना सम्भव नहीं (No Possible Reproduce Phenomena) – किसी विशिष्ट परिस्थिति या घटना के समाप्त हो जाने पर उसे दुबारा उत्पन्न नहीं किया जा सकता है। निरीक्षण विधि का यह सबसे बड़ा दोष है।

6. विशिष्ट परिस्थितियों एवं व्यवहारों के अध्ययन का अभाव (Lack of Situational Behaviour) असामाजिक व्यवहार तथा विशिष्ट संवेग आदि परिस्थितिजन्य व्यवहारों का अध्ययन निरीक्षण विधि में सम्भव नहीं है जैसे—पागल, आदिवासियों, बहशियों तथा जानवरों के मन को निरीक्षण विधि द्वारा समझना अत्यन्त कठिन है।

7. निश्चितता का अभाव (Lack of Definiteness) निरीक्षण विधि का उपयोग सदैव प्राकृतिक वातावरण में किया जाता है। प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण निरीक्षण में परिस्थिति, स्थान, समय एवं निरीक्षित घटना का अभाव हो सकता है।

8. वैधता एवं विश्वसनीयता का अभाव (Lack of Validity and Reliability)— निरीक्षण आत्मनिष्ठ होते हैं. इस कारण इनकी वैधता तथा विश्वसनीयता दोनों ही सन्देहप्रद होती हैं।

9. यह आवश्यक नहीं कि व्यक्ति की बाह्य चेष्टाएँ प्रत्येक स्थिति में मानसिक भावनाओं के अनुकूल हों। जैसे-जैसे व्यक्ति सभ्य व शिक्षित होता है वैसे ही उसके व्यवहार में दिखावटीपन का प्रवेश होता जाता है। वह बड़ी चालाकी से अपने मानसिक संवेगों को छिपा लेता है। आज व्यक्ति कितना प्रसन्न है, कितना दुःखी है और कितना भयग्रस्त है यह उसकी शारीरिक (बाह्य) चेष्टाओं से व्यक्त नहीं होता। ऐसी स्थिति में निरीक्षण से उसके मन का अध्ययन करना असम्भव है।

उपर्युक्त दोषों, हानियों या कठिनाइयों के कारण निरीक्षण विधि को पूर्णतः अनुपयोगी नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसके लाभ अपेक्षाकृत अधिक उपयोगी एवं व्यापक हैं इसलिए इसका उपयोग किया जाना चाहिए।

निरीक्षण विधि की विशेषताएं (Features of Observation)

निरीक्षण विधि एक महत्वपूर्ण और अच्छी ढंग से संगठित प्रक्रिया है जिसे उपयोग करके विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है। इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हो सकती हैं।

  1. संगठन: निरीक्षण विधि एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जो स्थिरता और सुविधा के साथ काम करती है। इसमें निरीक्षण करने वाले व्यक्ति एक निर्दिष्ट योजना और तकनीक का उपयोग करते हैं जो कि विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए तैयार की जाती है।
  2. समय के प्रबंधन: निरीक्षण विधि में समय के प्रबंधन की महत्वपूर्ण विशेषता होती है। इसमें निरीक्षण करने के लिए निर्दिष्ट समयावधि और निर्दिष्ट कार्रवाई के लिए अवधि निर्धारित की जाती है। इससे व्यक्ति का समय बचाया जा सकता है और कार्य प्रक्रिया अधिक उचित और नियमित बन सकती है।
  3. प्राथमिकता: निरीक्षण विधि में प्राथमिकता की विशेषता होती है। यह मान्यता प्राप्त करती है कि उच्चतम योग्यता और महत्वपूर्ण कार्रवाई को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इससे सुनिश्चित होता है कि समस्याओं का पहले ही समाधान किया जाता है और सबसे महत्वपूर्ण विषयों पर जोर दिया जाता है।
  4. विवरणपूर्ण: निरीक्षण विधि में विवरणपूर्णता की विशेषता होती है। इसमें निरीक्षण के लिए विभिन्न पदार्थों, प्रक्रियाओं और तकनीकों का विवरण दिया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि निरीक्षण करने वाले व्यक्ति और उनके सहयोगियों को समय पर और सही ढंग से निरीक्षण करने में सक्षम होता है।
  5. पुनर्निरीक्षण: निरीक्षण विधि में पुनर्निरीक्षण की महत्वपूर्ण विशेषता होती है। इसमें पहली बार निरीक्षण की गई सूचना को बार-बार जांचा जाता है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि कोई गलती नहीं हो रही है और प्रक्रिया सही तरीके से संचालित हो रही है। इससे निरीक्षण की गई वस्तु की गुणवत्ता और मानकों का पता लगाया जा सकता है।

यहाँ बताई गई विशेषताएं केवल सामान्य विशेषताएं हैं और वास्तविक प्रयोग में निरीक्षण विधि अन्य विशेषताओं के साथ भी संयुक्त हो सकती है। विभिन्न क्षेत्रों में निरीक्षण विधि की विशेषताएं भिन्न हो सकती हैं, जैसे कि निर्माण, विनिर्माण, गुणवत्ता नियंत्रण, नौसेना, आदि।


निरीक्षण विधि के प्रतिपादक (Exponent of Observation Method )

निरीक्षण विधि के प्रतिपादक विभिन्न विचारधाराओं और शैलियों के आधार पर अलग-अलग विद्वानों द्वारा प्रतिपादित किए जा सकते हैं। यह प्रतिपादक व्यक्ति के व्याख्यानों, ग्रंथों, या निरीक्षण क्षेत्र में प्रस्तुत किए जाने वाले सिद्धांतों के आधार पर भी हो सकते हैं।

विश्लेषणात्मक निरीक्षण: विश्लेषणात्मक निरीक्षण का प्रतिपादक कार्ल रॉजनब्लूम (Carl Rogers) हैं। उन्होंने "गर्म और सहजता से निरीक्षण" का सिद्धांत प्रस्तावित किया, जिसके अनुसार, निरीक्षक को ग्राहक के साथ एक सहयोगी और समर्थक माहौल बनाना चाहिए ताकि ग्राहक अपनी समस्याओं को समझ सकें और स्वयं के विचारों, भावनाओं, और अनुभवों को प्रकट कर सकें।

व्यवहारवादी निरीक्षण: व्यवहारवादी निरीक्षण के प्रतिपादक बी.एफ. स्किनर (B.F. Skinner) हैं। उन्होंने "प्रभाव और प्रतिप्रवर्तन" के सिद्धांत को प्रस्तावित किया, जिसके अनुसार, निरीक्षण को ग्राहक के व्यवहार के माध्यम से आकलन करना चाहिए और इसके आधार पर प्रभावी प्रतिप्रवर्तन करना चाहिए।

प्रणालीवादी निरीक्षण: प्रणालीवादी निरीक्षण के प्रतिपादक ओ.एस. कर्नवी (O.S. Karnavai) हैं। उन्होंने प्रणालीवादी निरीक्षण का सिद्धांत प्रस्तावित किया, जिसमें उन्होंने एक व्यवस्था को सटीकता, प्रभाव, और क्षमता के माध्यम से मापन करने का महत्व बताया। इस निरीक्षण विधि के अनुसार, प्रणाली विश्लेषण और मानचित्रण के द्वारा निरीक्षक व्यवस्था की प्रभावशीलता और क्षमता को मापन कर सकता है और उसे सुधारने के लिए सुझाव दे सकता है।

यहां दिए गए प्रतिपादकों के अलावा भी कई अन्य निरीक्षण विधियां हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। यह निरीक्षण विधियां विभिन्न शिक्षा, सामाजिक विज्ञान, मनोविज्ञान, न्यायशास्त्र, और अन्य क्षेत्रों में विकसित हुई हैं।

इसे भी देखें -

  1. निदानात्मक परीक्षण (Diagnostic Test) - अर्थ, परिभाषा, महत्त्व, उद्देश्य एवं विशेषताएं।
  2. वस्तुनिष्ठ परीक्षण (Objective Test)- अर्थ, गुण दोष, परिभाषा,प्रकार एवं विशेषताएं।

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