शिक्षण सूत्र क्या है?
प्रायः देखा गया है कि प्रशिक्षक शिक्षक में अपेक्षित ज्ञान, विद्वता एवं व्यावसायिक योग्यता होने के बावजूद वे प्रशिक्षण अथवा शिक्षण के क्षेत्र में आशातीत सफलता प्राप्त नहीं कर पाते। प्रशिक्षक का दायित्व होता है कि वह अपने अनुभवों की सहायता से उचित शिक्षण पद्धति अपनाकर ज्ञान को छात्रों के मस्तिष्क में स्थापित कर सके। पद्धति एवं प्रशिक्षण शैली द्वारा शिक्षक विषय को बालकों की रुचि और ज्ञास के अनुरूप बनाकर अधिगम प्रक्रिया को सुगम बनाता है और ऐसा करने के लिए प्रशिक्षक को अपने समस्त शिक्षक जीवन भर कुछ नीति वाक्य/शिक्षण सूत्र हमेशा स्मरण रखना पड़ता है। वे निम्न प्रकार हैं -शिक्षण सूत्र ( Maxims of Teaching) - शिक्षण सूत्र के प्रकार, परिभाषा में अब तक आप ने जाना शिक्षण सूत्र क्या है ? अब आप नीचे जाने परिभाषा ।
शिक्षण सूत्र की परिभाषा।
शिक्षण सूत्र, एक मार्गनिर्देशक या निर्देशिका है जो शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग होने वाले मूल्यों, सिद्धांतों, मार्गदर्शनों और तकनीकियों का संग्रह प्रदान करता है। इसे एक संग्रहीत विचारधारा के रूप में देखा जा सकता है जो शिक्षा के क्षेत्र में सही और प्रभावी अभिप्रेत बनाने के लिए उपयोगी सलाह, मार्गदर्शन और उपायों की एक अद्यतित सूची प्रदान करता है।
शिक्षण सूत्र में साधारणतः शिक्षा संबंधी मूल्यों और विचारधाराओं का उल्लेख किया जाता है जो शिक्षकों और शिक्षार्थियों को एक मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए उपयोगी होते हैं। इसके अलावा, शिक्षण सूत्र विभिन्न विषयों और शिक्षा क्षेत्रों के लिए विशेष मार्गदर्शन भी प्रदान करता है, जैसे विज्ञान, गणित, भूगोल, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, भाषा आदि। ये सूत्र सामग्री, पाठ्यक्रम, शिक्षण पद्धति, आकलन और मूल्यांकन के लिए शिक्षकों को दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।
प्रशिक्षण सूत्र के प्रकार
क्रम.स. | प्रशिक्षण सूत्र |
1. | स्थूल से सूक्ष्म की ओर अध्यापन (From Concrete to Abstract) |
2. | ज्ञात से अज्ञात की ओर अध्यापन (From Known to Unknown) |
3. | सरल से जटिल की ओर अध्यापन (From Simple to Complex) |
4. | संपूर्ण से अंश की ओर अध्यापन (From Whole to Part) |
5. | प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर अध्यापन (From Seen to Unseen) |
6. | अनिश्चित से निश्चित की ओर अध्यापन (From Indefinite to Definite) |
7. | विश्लेषण से संश्लेषण की ओर अध्यापन (From Analysis to Synthesis) |
8. | विशिष्ट से सामान्य की ओर अध्यापन (From Particular to General) |
9. | अनुभव जन्य से तर्कबुद्धि परकता की ओर अध्यापन (From Empirical to Rational) |
10 | मनोवैज्ञानिकता से तार्किकता की ओर अध्यापन (From Psychological to Logical) |
11. | स्वाभाविकता से शिक्षण की ओर अध्यापन (From Education in by Nature Manner) |
शिक्षण सूत्र के प्रकार व्याख्या सहित।
1. स्थूल से सूक्ष्म की ओर अध्यापन (From Concrete to Abstract) -
विषय अधिगम प्रक्रिया को सरल एवं अर्थपूर्ण बनाने के लिये प्रशिक्षकों/शिक्षकों को पहले ऐसे उदाहरणों से अपना अध्यापन कार्य प्रारंभ करना चाहिए जो बालकों के अनुभवों/निरीक्षणों में आमतौर से आते हैं अर्थात् मूर्त/स्थूल विचार पहले प्रस्तुत करें। जैसे मांटेसरी, किंटर गार्टन आदि शिक्षण प्रणालियों में संख्याओं का ज्ञान सीखने के लिये कांच की गोलियाँ, चॉकलेट्स, आईसक्रीम जैसी वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। बाद में इन्हीं के माध्यम से 'धन' एवं 'ऋण' जैसे विषय सिखाये जाते हैं। जीवशास्त्र में प्राणी अथवा वनस्पतियों के वर्गीकरण का अध्यापन करने के लिए सर्वप्रथम छात्रों को उनके परिवेश का अवलोकन कराया जाता है। ताकि वे अनुभव कर सकें कि जो प्राणी या वनस्पति उनके परिवेश एवं परिसर में पाये जाते हैं उनमें काफी विविधता है। इन सभी विविधताओं को एक-साथ सभी प्राणियों के सन्दर्भ में स्मरण रखना असम्भव है। इसलिये अध्ययन की सुविधा हेतु वर्गीकरण आवश्यक है जिसमें प्राणी/ वनस्पतियों के विभिन्न समूह उनमें पाई जाने वाली समानता के आधार पर बनाये जाते हैं। तत्पश्चात् वर्गीकरण प्रक्रिया की गूढ़तायें क्रमवार ढंग से बालकों को सिखाई जाती हैं।
2. ज्ञात से अज्ञात की ओर अध्यापन (From Known to Unknown) -
यह एक प्रकार सत्य है कि अधिगम प्रक्रिया में मनुष्य नवीन परिस्थिति/अनुभवों को अपने पूर्व अनुभव चा सीखे गये ज्ञान से जोड़ता है। प्रशिक्षण में भी इसी सत्य का उपयोग किया जाता है। उदाहरणार्थं प्रशिक्षक पुष्प की रचना एवं महत्व को पढ़ाना चाहता है तो सर्वप्रथम उसे बच्चों से पुष्पों के सम्बन्ध में सामान्य प्रश्न करने होंगे जैसे-आप लोगों ने कौन-कौन से प्रकार के पुष्प देखे हैं? उनकी विशेषताएँ क्या है? पौधे पुष्प धारण क्यों करते हैं? पुष्प की रचना किन भागों से मिलकर होती है? आदि। इस तरह अध्यापक को बालकों की ज्ञात जानकारी का उपयोग कर अध्यापन बिन्दु को विकसित करना चाहिए। प्रायः ही प्रयत्न करना चाहिए कि छात्रों की रुचि विषय में बनी रहे।
3. सरल से जटिल की ओर अध्यापन (From Simple to Complex) -
यह सूत्र उपरोक्त वर्णित प्रथम दो सूत्रों के समान लगता है पर इसका आशय पूरी तरह से भिन्न है। इस सूत्र के अनुसार विद्यार्थियों या प्रशिक्षणार्थियों को पहले सरल तथ्यों का अध्यापन किया जाये, सरल अभ्यास दिये जायें जिनकी भाषा सरल एवं सुग्राहा हो। तत्पश्चात् उनमें उत्तरोत्तर गूढ़ता का क्रमिक विकास किया जाये। उदाहरणार्थ गणित, विज्ञान एवं अंग्रेजी विषयों के अन्तर्गत सिद्धान्तों पर आधारित अत्यंत सरल शहरण विद्यार्थियों को हल करने के लिए दिये जायें। फिर क्रमशः जटिल प्रश्न दिये जायें। ऐसा करने में वैयक्तिक भिन्नताओं तथा विषय अध्ययन की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
4. सम्पूर्ण से अंश की ओर अध्यापन (From Whole to Part)-
जब हम परिसर को देखते हैं तो पहले सम्पूर्ण परिदृश्य पर दृष्टिपात करते हैं। फिर हमारा ध्यान, किसी एक वस्तु पर या व्यक्ति पर हमारी रुचि मानसिक परिस्थिति के अनुरूप स्थित हो जाता है। जब हम किसी तस्वीर को देखते हैं तो पहले हम सम्पूर्ण चित्र को देखते हैं बाद में हमारा ध्यान चित्र के छोटे-छोटे भाग एवं अन्य विशेषताओं, विवरण की और जाता है। इसी सिद्धान्त का उपयोग प्रशिक्षकों एवं अध्यापकों को अपने अध्यापन के दौरान करना चाहिए। पहले छात्रों का ध्यान सम्पूर्ण तथ्य की ओर आकृष्ट किया जाये फिर उन्हें उसमें निहित अंशों को समझाने का प्रयत्न करें। उदाहरणार्थ हम किसी स्थान विशेष की विशेषताओं का अध्ययन करवाना चाहते हैं। भूगोल विषय के अंतर्गत पहले 'राज्य' राज्य की भौगोलिक स्थिति फिर उसमें उस जिले की स्थिति की चर्चा करते हैं जहाँ अध्ययन किया जाने वाला स्थान विशेष है। अंत में उस स्थान की भौगोलिक स्थिति उसकी आर्थिक एवं राजनैतिक औद्योगिक विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है। इस सिद्धान्त का मुख्य आधार मनोविज्ञान के गेस्टाल्टवादियों की यह विचारधारा है कि प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रिया पूर्ण से अंश की ओर होती है।
5. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर अध्यापन (From Seen to Unseen ) -
अध्यापक गण अपने अध्यापन में इस सत्य को हमेशा स्मरण रखें कि जो तथ्य, वस्तु एवं घटनायें विद्यार्थी के अनुभव क्षेत्र में प्रत्यक्ष विद्यमान होती हैं या घटित होती हैं, उनका अधिगम सरलता पूर्वक हो जाता परन्तु वे वस्तुएँ जो अपरोक्ष रूप में होती हैं उनके अनुभव, उन्हें सिखाना अत्यन्त कठिन होता है। इसलिये प्रशिक्षक/शिक्षक ज्ञान के परोक्ष पहलुओं को अपने अध्यापन में सम्मिलित कर उन्हें अपरोक्ष तथ्यों से जोड़ने का प्रयास करें।
6. अनिश्चित से निश्चित की ओर अध्यापन (From Indefinite to Definite ) —
विज्ञान अध्यापन में एक सामान्य घटना है कि पढ़ाये गये सिद्धान्त या परीक्षण/ तथ्यों के प्रति प्रथम अपने मस्तिष्क में संशयित रहता है परन्तु जब वह प्रयोगशाला में परीक्षण करके अपने निष्कर्ष पढ़ाये गये तथ्यों के अनुरूप पाता है तो अनिश्चितता व संशय की स्थिति समाप्त हो जाती है। प्रयोग करते समय बालक एक अन्वेषक के समान होता है जो अनिश्चित तथ्यों को सम्पादित कर निश्चित ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है। अन्य विषयों में भी बालक अधिगम के प्रथम चरण में अनिश्चित की अवस्था में रहता है। शिक्षकगणों को प्रयास कर उसे निश्चित ज्ञान का बोध कराना चाहिए।
7. विश्लेषण से के लिए अध्यापन (From Analysis to Synthesis) -
प्रत्येक व्यक्ति में समस्या ग्रहण करने समझने एवं उसके विभिन्न पक्षों में का विश्लेषण करने की स्वाभाविक क्षमता उसके मस्तिष्क में होती है। जिसके माध्यम से व्यक्ति समस्या के हल का संश्लेषण करने का प्रयास करता है। यहां संश्लेषण अधिगम की प्रक्रिया होती है। अध्यापक विषय के विभिन्न तथ्यों का विश्लेषण अपनी अध्यापन प्रक्रिया द्वारा बालकों के समक्ष रखता है तथा छात्रों के मस्तिष्क में भी यही विश्लेषण प्रक्रिया प्रेरित करता है। ताकि वे तथ्यों का विश्लेषण कर अन्तिम निष्कर्ष संश्लेषित कर सकें। इसलिए कुछ शिक्षाशास्त्री इसी सिद्धान्त को 'अंश से पूर्णता की ओर' भी मानते हैं इस शिक्षण सूत्र के जन्मदाता सुकरात रहे हैं इसलिए इसे सुकरात पद्धति भी कहते हैं। गणित, विज्ञान एवं सामाजिक के अध्यापन में इस सिद्धान्त की विशेष उपयोगिता प्रमाणित हुई है।
8. विशिष्ट से सामान्य की ओर अध्यापन (From Particular to General)-
गणित एवं विज्ञान सहित कई विषयों में यह सूत्र अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। स्वभाव से परीक्षार्थी विशिष्ट तथ्यों घटनाओं विशेषताओं की ओर आकर्षित होता है। विशिष्ट अवलोकन के उपरान्त उनसे सारभूत/सामान्यीकृत तथ्य निष्कर्षित करता है। वैज्ञानिक प्रयोगों में छात्र सर्वप्रथम प्रयोग कर घटनाओं का निरीक्षण करते हैं तथा बाद में उनसे सामान्यीकृत तथ्य/निष्कर्ष निकालते हैं। व्याकरण सम्बन्धी नियमों के अध्यापन के समय शिक्षक सम्बन्धित का एकदम पहले ही नियम नहीं बताते हैं, वे प्रथम नियम से सम्बन्धित अनेक उदाहरण बालकों को बताकर उनसे सामान्यीकृत सिद्धान्त / तथ्य/नियम बनाने को कहते हैं। इस तरह यह सूत्र एक तरह से अध्यापन की प्रेरक पद्धति (Inductive method) होती है। यह सूत्र मनुष्य के व्यवहार मनोविज्ञान से व्युत्पत्ति है। मानव मस्तिष्क विशिष्ट घटनाओं की ओर आकर्षित होता है। घटनाओं के निरीक्षण के उपरान्त वह उनसे सामान्यीकृत तथ्य निकालता है।
9. अनुभव जन्य से तर्कबुद्धि परकता की ओर अध्यापन (From Empirical to Rational)-
छात्रों द्वारा सीखने की प्रक्रिया में छात्र घटनाओं के निरीक्षण के माध्यम से अनुभव प्राप्त करते हैं जो प्रायः ताति के आधार पर खरे नहीं होते। तर्कों द्वारा अनुभव प्रमाणित नहीं हो पाता। जबकि आता इस तथ्य की होती है कि अनुभूतिजन्य ज्ञान, तर्क सम्मत भी हो यह सत्य है कि अनुभूतिजन्य ज्ञान सर्वप्रथम अर्जित किया जाता है तथा तर्क सम्मत ज्ञान बाद में अधिकांश विषयों के प्रशिक्षण में शिक्षक सर्वप्रथम छात्रों को अपने अनुभव प्रकट करने के लिए उत्साहित करते हैं। तत्पश्चात् उन्हीं अनुभूतिजन्य तथ्य/ज्ञान की सहायता से तार्किक ज्ञान उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं।
10. मनोवैज्ञानिकता से तार्किकता की ओर अध्यापन (From Psychological to Logical) -
शिक्षक पढ़ाये जाने वाले घटक की प्रस्तुति मनोवैज्ञानिक ढंग के साथ-साथ तार्किक ढंग से भी करे। मनोवैज्ञानिक क्रम अर्थात् अध्यापन के लिये चुने गये विषय का प्रवेश एवं प्रस्तुति छात्रों के पूर्वज्ञान, रुचि, वैक्तिक विभिन्नता जिज्ञासा स्तर, बुद्धि लब्धि एवं प्रेरणा के अनुरूप की जाये विषय की तार्किकता से अभिप्राय यह है कि घटक को उसकी जटिलता के आधार पर कई खंडों में विभाजित कर उनके अध्यापन का अनुक्रम तार्किक ढंग से कुछ प्रकार से करते हैं कि विद्यार्थी उन्हें आत्मसात कर सकें। इस तरह शिक्षण प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक क्रम एवं तार्किकता दोनों ही का समावेश हो जाता है, और अधिगम अनुपात में वृद्धि होती है। अतः प्रशिक्षण केन्द्र के स्वाभाविक स्वरूप में मनोवैज्ञानिक एवं तार्किकता दोनों ही क्रमों का समावेश होना चाहिए।
11. स्वाभाविकता से शिक्षण की ओर अध्यापन (From Education in by Nature Manner) —
रूसो द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धान्तानुसार शिक्षण का स्वरूप एवं संगठन बालक के शारीरिक एवं विकास के प्राकृतिक नियमों के अनुसार होना चाहिए। किन्हीं भी परिस्थितियों में प्रशिक्षण छात्रों की शारीरिक अथवा मानसिक क्षमताओं की अवहेलना न करे। अन्यथा बालक का व्यक्तित्व कुंठित होता है उसमें समग्र विकास की कल्पना अव्यावहारिक हो जाती है।
प्रशिक्षकों एवं शिक्षकों को उपरोक्त शिक्षण सूत्रों द्वारा पूर्णतः समझकर आत्मसात कर अपने व्यवहार क्षेत्र (Practical field) में उपयोग करना चाहिए। ये मात्र मार्गदर्शक बिन्दु हैं (Guiding points) जबकि व्यक्ति एवं परिवेश के अनुसार इनका व्यावहारिक स्वरूप भिन्न भी हो सकता है इसलिए इसमें अपेक्षित लचीलापन होना चाहिए जो अध्यापन को अधिक प्रभावी बना सके यह शिक्षण सूत्र शिक्षण प्रक्रिया के केंद्रीय विचार बिंदु मात्र है।
इसे भी देखें
- निरीक्षण विधि क्या है - अर्थ, परिभाषा, प्रकार, महत्व, विशेषताएं, प्रतिपादक, गुण और दोष।
- अधिगम पठार की परिभाषा - कारण, निराकरण
निष्कर्ष: आशा करते हैं कि मेरे द्वारा बताई गई जानकारी आपको स्पष्ट होगी । इस लेख में आपने शिक्षण सूत्र ( Maxims of Teaching) के विषय में जाना अगर आप के कुछ सवाल यह सुझाव है तो कृपया नीचे कमेंट बॉक्स का प्रयोग कर सकते हैं।