वस्तुनिष्ठ परीक्षण का अर्थ (Meaning of Objective Test)
आज निबन्धात्मक परीक्षाओं के स्थान पर वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का चलन बढ़ता जा रहा है और शिक्षा के प्राथमिक स्तर से लेकर माध्यमिक स्तर तक तो वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं ने काफी हद तक अपना स्थान बना लिया है लेकिन उच्च स्तरीय शिक्षा में अभी भी निबन्धात्मक परीक्षाओं पर ही जोर दिया जाता है। जहाँ तक नौकरियाँ आदि प्राप्त करने के लिए होने वाली अनेक परीक्षाओं का प्रश्न है उनके प्रश्नपत्रों में भी वस्तुनिष्ठ परीक्षण पर ही जोर दिया गया है और प्रश्नपत्रों में 100-150 वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछकर छात्रों की योग्यता को आँकने का प्रयास किया जाता है। आधुनिक मनोवैज्ञानिक निबन्धात्मक परीक्षा के कटु आलोचक हैं।
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वस्तुनिष्ठ परीक्षण (Objective Test)- अर्थ, गुण दोष, परिभाषा,प्रकार एवं विशेषताएं।
क्योंकि उनका मानना है कि निबन्धात्मक परीक्षाओं में आत्मनिष्ठ तत्व अनेक प्रयास करने के बावजूद भी आ जाते हैं। निबन्धात्मक परीक्षाओं के आत्मनिष्ठ दोष के कारण ही वस्तुनिष्ठ परीक्षाएँ चलन में आयी हैं। वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं में के ज्ञान को मापने के लिए बहुत से प्रश्नों को पूछा जाता है और उनका उत्तर हाँ या न में अथवा सही या गलत में उसी उत्तर- पुस्तिका पर लिया जाता है। प्रश्नों की संख्या भी बहुत अधिक रहती है। इस परीक्षा में पद्धति में परीक्षक के दृष्टिकोण का कोई प्रभाव छात्र की योग्यता के मूल्यांकन पर नहीं पड़ता और वस्तुनिष्ठता की प्रधानता रहती है। यह परीक्षाएँ निबन्धात्मक परीक्षाओं की तुलना में कहीं अधिक विश्वसनीय, व्यापक, वैध, व्यावहारिक और वस्तुनिष्ठ होती हैं।
स्पष्ट है वस्तुनिष्ठ परीक्षाएँ वे परीक्षाएँ हैं जिनमें निबन्धात्मक परीक्षाओं के दोषों को दूर का प्रयास किया गया है और इनमें अच्छे परीक्षण के सभी गुण विद्यमान हैं। वस्तुनिष्ठ परीक्षा के माध्यम से छात्रों के ज्ञान की उपलब्धि, योग्यता, अभिरुचि, बुद्धि आदि की परीक्षा बहुत आसानी से और विश्वसनीयता के साथ की जा सकती है। छात्रों को एक प्रश्नपत्र पर लिखे हुए ढेर सारे प्रश्नों का उत्तर उसी के सम्मुख रिक्त स्थानों में देना होता है। ये प्रश्न चूँकि बहुत छोटे-छोटे होते हैं और इनका उत्तर भी हाँ या न में दिया जाता है अतः परीक्षकों द्वारा इन्हें आँकने में बहुत कम समय लगता है और वस्तुनिष्ठता विद्यमान रहती । मूल्यांकन में किसी प्रकार का पक्षपात सम्भव नहीं हो पाता। एक ही प्रश्नपत्र को दो परीक्षकों द्वारा जाँचने पर भी प्राप्त अंक समान ही रहते हैं।
वस्तुनिष्ठ परीक्षण की परिभाषा (Definition of Objective Test)
वस्तुनिष्ठ परीक्षण का मतलब है किसी विशेष वस्तु की गुणवत्ता और संचालन को मापने और जांचने की प्रक्रिया। इसमें उपयुक्त मापन और विश्लेषण तकनीकों का उपयोग किया जाता है ताकि उत्पादन, विकास या उपयोग के दौरान किसी वस्तु की गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जा सके। यह विभिन्न उद्देश्यों जैसे कि निर्माण, फेरीब, सुरक्षा और गुणवत्ता प्रबंधन में उपयोगी होता है।
वस्तुनिष्ठ परीक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Objective Test)
(1) वस्तुनिष्ठता (Objectivity ) – वस्तुनिष्ठ परीक्षण अन्य परीक्षणों की तुलना में कहीं अधिक वस्तुनिष्ठ होते हैं। इसमें परीक्षक के अपने विचारों या मूड के मूल्यांकन से सम्मिलित होने की कोई सम्भावना नहीं होती। परीक्षक द्वारा उत्तर-पुस्तिका जाँचने का समय, स्थान या अन्य किन्हीं परिस्थितियों का मूल्यांकन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
(2) विश्वसनीयता (Reliability) - विश्वसनीयता का अर्थ है किसी भी परीक्षण को बार-बार किये जाने पर भी समान परिणाम प्राप्त होना। वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं में यह गुण विद्यमान हैं। एक ही वस्तुनिष्ठ उत्तर-पुस्तिका को दो या तीन अलग-अलग परीक्षकों से मूल्यांकन कराने पर भी अंक समान ही प्राप्त होते हैं। अतः कहा जा सकता है कि वस्तुनिष्ठ विश्वसनीय है। परीक्षकों से मूल्यांकन कराने पर भी अंक समान ही प्राप्त होते हैं। अतः कहा जा सकता है कि वस्तुनिष्ठ परीक्षण विश्वसनीय है।
(3) वैधता (Validity)—कोई भी परीक्षण तभी वैध हो सकता है जब उसके द्वारा निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति सम्भव हो। वस्तुनिष्ठ परीक्षण में यह विशेषता विद्यमान है। ये उसी वस्तु या प्रत्यय का मापन करती हैं जिसके लिए इन परीक्षाओं का निर्माण किया जाता है।
(4) व्यापकता (Broadness) – वस्तुनिष्ठ प्रश्नपत्रों में क्योंकि प्रश्नों की संख्या अधिक होती है अतः सम्पूर्ण पाठ्यक्रम से सम्बन्धित प्रश्नों का चयन सरलता से किया जा सकता है। विषयवस्तु का पर्याप्त ज्ञान होने पर ही छात्र इन प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम होता । इस प्रकार वस्तुनिष्ठ प्रश्न-पत्रों की व्यापकता निबन्धात्मकता प्रश्न-पत्रों की तुलना में कहीं अधिक होती है।
(5) विभेदीकरण (Classification ) – वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के माध्यम से अच्छे व बुरे शैक्षिक स्तर के बच्चों का सरलता से विभेदीकरण किया जा सकता यही कारण है कि वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं को विभेदीकरण परीक्षाओं की संज्ञा भी दी जाती है।
(6) भविष्यवाणी (Prediction ) वस्तुनिष्ठ प्रश्नों की एक और महत्वपूर्ण विशेषता इनमें भविष्यवाणी करने की योग्यता का होना। परीक्षा परिणामों को देखकर निश्चित ही छात्रों के भविष्य के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है और इन परीक्षाओं के परिणामों के आधार पर बच्चों का पथ प्रदर्शन किया जा सकता है।
(7) व्यावहारिकता (Practicability) वस्तुनिष्ठ परीक्षण बहुत व्यावहारिक है। इसे सरलतापूर्वक प्रयोग में लाया जा सकता है। इनका निर्माण एवं प्रशासन भी बहुत सरल एवं व्यावहारिक होता है।
(8) सरल अंकन (Easy Evaluation ) – वस्तुनिष्ठ प्रश्न-पत्रों का मूल्यांकन करना भी बहुत सरल होता है। प्रश्नों के उत्तर क्योंकि हाँ या न, सही व गलत या अन्य छोटे-छोटे आकारों में देने होते हैं। अतः अधिक ज्ञान न होने पर भी परीक्षक द्वारा इन्हें सरलता से आँका जा सकता है। साथ ही साथ इसको एक विशेषता यह भी है कि किन्हीं भी परीक्षकों द्वारा इन्हें आँकने पर परिणामों में कोई अन्तर नहीं आता ।
वस्तुनिष्ठ वस्तुनिष्ठ परीक्षण के गुण (Merits of Objective Test)
(1) वस्तुनिष्ठ परीक्षण का प्रमुख गुण या लाभ यह रहता है कि कम समय में बच्चों के अधिक से अधिक ज्ञान को आँका जा सकता है। प्रश्नों की संख्या अधिक होते हुए भी उनका आकार लघु होने के कारण प्रश्नपत्रों को कम समय में आँक लिया जाता है।
(2) दूसरा गुण यह है कि इन प्रश्न-पत्रों में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को सरलता से सम्मिलित किया जा सकता है। प्रश्नों की संख्या अधिक होने के कारण सम्पूर्ण पाठ्यक्रम सम्बन्धी प्रश्नों को प्रश्न-पत्रों में सरलता से सम्मिलित कर प्रश्न-पत्रों की व्यापकता को सरलता से बढ़ाया जा सकता है।
(3) तृतीय गुण के बारे में कहा जा सकता है कि इन प्रश्नपत्रों के माध्यम से मन्द बुद्धि तथा तीव्र बुद्धि बालकों के बीच सरलता से विभेदीकरण किया जा सकता है और उनकी व्यक्तिगत भिन्नताओं का पता लगाकर उनका मार्गदर्शन भी किया जा सकता है।
(4) वस्तुनिष्ठ परीक्षण शिक्षक के लिए बहुत लाभदायक होते हैं। इनके द्वारा प्राप्त हुए परिणामों को जानकर शिक्षक शिक्षा प्रणालियों में आवश्यकतानुसार सुधार कर सकते हैं और बालकों की मानसिक एवं शारीरिक कार्यक्षमता के अनुसार अपनी शिक्षण प्रक्रिया में बदलाव ला सकते हैं।
(5) वस्तुनिष्ठ परीक्षण छात्रों के लिए बहुत उपयोगी हैं। इससे छात्रों में आत्मविश्वास उत्पन्न होता है, विकसित होता है और उन्हें अपनी योग्यता का पता चलता है जिससे छात्र अपनी कमियों को दूर करते हुए में सुधार कर सकते हैं।
(6) ये परीक्षण बहुत कम खर्चीले होते हैं। इनमें धन एवं समय की बचत होती है।
(7) इन परीक्षणों में रटने की प्रक्रिया पर रोक लगती है। परीक्षार्थी कुछ रटे-रटाये प्रश्नों के आधार पर परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाते क्योंकि सम्पूर्ण पाठ्यक्रम से सम्बन्धित प्रश्नों को लघु रूपों में इसमें सम्मिलित किया जाता है अतः छात्र को सम्पूर्ण पाठ्यक्रम से सम्बन्धित विषयवस्तु का ज्ञान होना आवश्यक है। सम्पूर्ण विषयवस्तु का ज्ञान होने पर ही वे इन प्रश्नों का उत्तर दे पाता है।
(8) इनका एक और महत्वपूर्ण गुण यह भी है कि इन प्रश्नपत्रों के निर्माण में कोई कठिनाई नहीं होती। इनका सरलता से निर्माण किया जाना सम्भव है। थोड़े से अभ्यास के साथ ही परीक्षक इन प्रश्नपत्रों का निर्माण सरलता से कर पाते हैं।
(9) इन प्रश्नपत्रों के मूल्यांकन का कार्य भी बहुत सरल होता है। अंक देने में परीक्षक को बहुत आसानी रहती है साथ ही साथ भिन्न-भिन्न परीक्षकों द्वारा मूल्यांकन कराये जाने पर भी परिणामों में कोई अन्तर नहीं आता।
(10) वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का एक और महत्वपूर्ण गुण यह है कि इसमें संयोग का कोई स्थान नहीं। निबन्धात्मक परीक्षणों में तो कुछ महत्वपूर्ण विषयवस्तु को रट लेते हैं और संयोगवश यदि वे प्रश्न प्रश्नपत्र में पूछ लिये जाते हैं तो वे अच्छे अंक प्राप्त कर लेने में सफल हो जाते हैं। इस प्रकार का संयोग वस्तुनिष्ठ प्रश्नपत्रों में सम्भव नहीं है। सम्पूर्ण पाठ्यक्रम से सम्बन्धित विषयवस्तु का ज्ञान होने पर ही विद्यार्थी अच्छे नम्बर प्राप्त करने में सफल हो पाते हैं।
वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के दोष (Demerits of Objective Test)
वस्तुनिष्ठ प्रश्नपत्र यद्यपि निबन्धात्मक प्रश्नपत्रों की तुलना में कहीं अधिक उपयोगी हैं। और इनसे छात्रों की सही योग्यता का अनुमान भी लगाया जा सकता है फिर भी इन प्रश्नपत्रों की अपनी कुछ सीमाएँ या अवगुण हैं।
(1) कुछ ऐसे विषय होते हैं जिनके ज्ञान के बारे में छात्रों द्वारा केवल वर्णन के माध्यम से ही उनकी योग्यता को आँका जा सकता है। इनका उत्तर हाँ या न में नहीं दिया जा सकता। ऐसे विषयों से सम्बन्धित ज्ञान को आँकने के लिए वस्तुनिष्ठ प्रश्नपत्र पूरी तरह से अनुपयोगी हैं। इनके द्वारा सीखने के गुणात्मक पक्षों का परीक्षण नहीं किया जा सकता।
(2) वस्तुनिष्ठ प्रश्नपत्रों में बालकों को चूँकि प्रश्नों के उत्तर हाँ या न अथवा बहुत लघु में देने होते हैं अतः वे आत्म प्रकाशन नहीं कर पाते जिमसे बालकों में आत्म प्रकाशन की क्षमता का विकास नहीं हो पाता।
(3) प्रश्नों के उत्तर चूँकि हाँ या न में देने होते हैं अतः इसमें अनुमान की सम्भावना बनी रहती है। छात्र अनुमान के आधार पर ही प्रश्नों का उत्तर हाँ या न में दे देते हैं और संयोगवश बहुत से उत्तर उन्हें उसका ज्ञान न होते हुए भी सही हो जाते हैं और वे अंक प्राप्त कर लेते हैं।
(4) वस्तुनिष्ठ परीक्षा से छात्रों के ज्ञानात्मक पक्ष का सही परीक्षण नहीं हो पाता।
(5) कुछ ऐसे विषय भी होते हैं जिनका उत्तर हाँ या न में नहीं दिया जा सकता, जैसे- हिन्दी अथवा अंग्रेजी का ऐसे विषयों को वस्तुनिष्ठ परीक्षापत्रों में सम्मिलित किये। जाने में कठिनाई होने के कारण परीक्षक इन्हें छोड़ देते हैं।
(6) वस्तुनिष्ठ परीक्षापत्रों में छात्रों की भाषा, लेखन शैली आदि को आँका नहीं जा सकता बालकों में तथ्यों के स्पष्टीकरण की क्षमता विकसित नहीं हो पाती और छात्र अपने विचारों को प्रभावात्मक ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाते।
(7) वस्तुनिष्ठ परीक्षापत्रों के निर्माण में भी परीक्षक को कठिनाई का सामना करना पड़ता है। तक परीक्षक को पाठ्यक्रम की सम्पूर्ण विषयवस्तु का ज्ञान नहीं होगा व उपयोगी वस्तुनिष्ठ प्रश्नपत्र तैयार नहीं कर पायेगा।
(8) कभी-कभी प्रश्नपत्रों में प्रश्नों की संख्या इतनी अधिक होती है कि छात्र उनमें उलझकर रह जाते हैं और प्रश्नों के बहुत से सही उत्तर जानते हुए भी उनका सही उत्तर नाही दे पाते।