Misconceptions of Yoga(योग की भ्रांतियां)
अज्ञानता वश जनसंशाधन में मिथ्स धनाए देखने को मिलती है इनमें से कुछ इस प्रकार है।
योग को मात्र योग आसनों की क्रियाओं तक सीमित मानने की भूल की जाती है जब भी योग का नाम लिया जाता है तो सभी उसका अर्थ योग आसनों जैसा कि पतंजलि ने अपने अष्टांग योग के द्वारा संदेश दिया है कि योग में विभिन्न आठ अंगों मे से एक है। जोकि योग साधना संबंधी सोपानों में तीसरे स्थान पर आता है यह शरीर को साधने के लिए है। शरीर को Control कर में मन पर भी Control करने और बाद में आत्मा को प्रमात्मा एकीकरण करने की बात योग में कही जाती है। अत: योग को मात्र योग आसनों के रूप में समझना ठीक नही है।
योग जनसाधारण के लिए नही है इसे तो साधु व सन्यासी अपनी तपस्या या भक्ति के लिए अपनाते है। या खिलाड़ी अपनी शारीरिक क्षमता के लिए अपनाते है। क्योंकि योग से सभी को लाभ मिलता है। यह सभी के लिए होती है।
योग साधना के लिए विशेष रहन सहन की प्रकार के वस्त्र और आवश्यकता होती है। साधारण जीवन यापन करते हुए Simple Condition में भी यह साधना क्योंन ही हो सकती। इस बात में भी कोई विशेष दम नही है। साधारण लोगों के लिए योग उनको Daily routine में करवाना चाहिए उसके लिए कोई ऐसे विशेष साधन नही जुटाने पडते । जिन्हें आम आदमी नही जुटा सकता।
कुछ लोग यह कहते है कि वे अब कितने बड़े हो गए है? अब योग साधना कैसे हो सकती है। इसके लिए तो शुरू से ही अभ्यास होना चाहिए यह धारणा भी मिथ्य है क्योंकि योग में किसी भी आयु कोई बंधन नही होता। किसी भी आयु में योग की शुरूआत अपनी सुविधा अनुसार की जा सकती है। योग साधना महिलाओं या लड़कियों के लिए ठीक नही यह बात भी झूठ है। क्योंकि योग के लिए किसी भी लिंग का बंधन नही होता। इसे Male या Female समान रूप से अपनी - 2 सुविधा अनुसार कर सकते है।
कहा जाता है कि योग साधना तथा क्रियाएँ बहुत ही Technique और जटिल कार्य है। इसके लिए training की अवश्यकता होती है। इसके अभाव में नुकसान हो सकता है। यह आवश्यकता बात भी जितनी डराने के लिए की जाती है। उतनी डर की बात योग साधना में नहीं होती, कोई भी आसान या क्रिया यदि Badeffect डालती है तो उसकी प्रतिक्रिया में हो दिखाई देने से योग करने वाले व्यक्ति सावधान होकर उसे बंद कर सकता है या फिर अनुभवी की सलाह लेकर आगे बढ़ सकता है। डर कर योग साधना बड़ी भूल होती है। अत: इस प्रकार न करना बहुत बड़ी भूल होती है।
यह भी समझा जाता है कि योग अनपढ व्यक्तियों के करने की साधना सभ्य सू. संस्कृत और प्रगतिशील कहे जाने वाले लोगों के लिए है। इसका कोई अर्थ नही परंतु यह बात भी मिथ्य है। क्योंकि योग तो आदर्श जीवन शैली है जिसकी आवश्यकता हम सभी को है अत: इस प्रकार की धारणा करना और प्रचार को समाप्त चाहिए।
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